वित्तीय संस्थाएँः- हमारी देश की वे संस्थाएँ जो आर्थिक विकास के लिए उधम एवं व्यवसाय के वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करता है एसी संस्थाओं को वित्तीय संस्था कहते हैं।
वित्तीय संस्थाएँ दो प्रकार की होती हैं- राष्ट्र स्तरीय वित्तीय संस्थाएँ और राज्य स्तरीय वित्तीय संस्थाएँ
सरकारी वित्तीय संस्थाएँः- सरकार द्वारा स्थापित एवं संपोषित वित्तीय संस्थाओ को सरकारी वित्तीय संस्थाएँ कहते हैं।
जैसे- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, इलाहाबाद बैंक इत्यादि।
राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ
इनके दो महत्वपूर्ण अंग हैंः-
- भारतीय मुद्रा बाजार
- भारतीय पूँजी बाजार
भारतीय मुद्रा बाजार को संगठित और असंगठित क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है। संगठित क्षेत्र में वाणिज्य बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक एवं विदेशी बैंक शामिल किए जाते हैं जबकि असंगठित क्षेत्र में देशी बैंकर जिनमें गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ शामिल की जाती हैं।
देश की संगठित बैंकिंग प्रणाली निम्नलिखित तीन प्रकार की बैंकिंग व्यवस्था के रूप में कार्यशील है-
संगठित बैंकिंग प्रणली
- केंद्रिय बैंक- RBI देश का केन्द्रीय बैंक है। यह देश में शीर्ष बैंकिंग संस्था के रूप में कार्यरत है।
- वाणिज्य बैंक- वाणिज्य बैंक के द्वारा बैंकिंग एवं वित्तीय क्रियाओं का संचालन होता हैं।
- सहकारी बैंक- आपसी सहयोग एवं सद्भावना के आधार पर जो वित्तीय संस्थाएँ कार्यशील है उसे सहकारी बैंक कहते हैं, यधपि ये राज्य सरकारों के द्वारा संचालित होती हैं।
भारतीय पूँजी बाजारः- भारतीय पूँजी बाजार मुख्यतः दीर्घकालीन पूँजी उप्लब्ध कराती है।
भारतीय पूँजी बाजार मूलतः इन्ही चार वित्तीय संस्थानों पर आधारित है जिसके चलते राष्ट्र-स्तरीय सार्वजनिक विकास जैसे- सड़क, रेलवे, अस्पताल, शिक्षण संस्थान, विद्युत उत्पादन संयंत्र एवं बड़े-बड़े निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग संचालित किए जाते हैं।
वित्तीय संस्थाएँ किसी भी देश का मेरूदंड माना जाता है।
राज्य में मुख्यतः दो प्रकार की वित्तीय संस्थाएँ कार्यरत हैं-
राज्य स्तरीय वित्तीय संस्थाएँ
- गैर संस्थागत वित्तीय संस्थाओं में निम्नलिखित वर्ग आते हैं-
- महाजन
- सेठ साहुकार
- व्यापारी
- रिश्तेदार एवं अन्य
- संस्थागत वित्तीय संस्थाओं में निम्नलिखित वर्ग आते हैं-
- सहकारी बैंक
- प्राथमिक सहकारी समितिय
- भूमि विकास बैंक
- व्यवसायिक बैंक
- क्षेत्रीय ग्रामिण बैंक
- नार्वाड एवं अन्य
- सहकारी बैंकः- इनके माध्यम से बिहार के किसानों को अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण की सुविधा उप्लब्ध होती हैं। राज्य में 25 केंद्रीय सहकारी बैंक जिला स्तर पर तथा राज्य स्तर पर एक बिहार राज्य सहकारी बैंक कार्यरत हैं।
- प्राथमिक सहकारी समितियाँः- इनकी स्थापना कृषि क्षेत्र की अल्पकालीन ऋणों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए की गई है। एक गाँव अथवा क्षेत्र के कोई भी कम-से-कम दस व्यक्ति मिलकर एक प्राथमिक शाख समिति का निर्माण कर सकते हैं।
- भूमि विकास बैंकः- राज्य में किसानों को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करने के लिए भूमि बंधक बैंक खोला गया था, जिसे अब भूमि विकास बैंक कहा जाता है।
- व्यावसायिक बैंकः- यह अधिक मात्रा में किसानों को ऋण प्रदान करते हैं। भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण 1969 ई. में हुआ था।
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक- सीमांत एवं छोटे किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की स्थापना 1975 ई. में किया गया। देश में अभी 196 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक है।
- नाबार्ड- यह कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए सरकारी संस्थाओं, व्यावसायिक बैंकों तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को वित्त की सुविधा प्रदान करता है। जो पुनः किसानों को यह सुविधा प्रदान करता है।
व्यावसायिक बैंक के प्रमुख कार्य-
- जमा राशि को स्वीकार करना- व्यावसायिक बैंकों का प्रमुख कार्य अपने ग्राहकों से जमा के रूप में मुद्रा प्राप्त करना है। लोग चोरी होने के भय से या ब्याज कमाने के उद्देश्य से बैंक में अपना आय का कुछ भाग जमा करते हैं।
- ऋण प्रदान करना- व्यावसायिक बैंकों का दूसरा महत्वपूर्ण काम लोगों को ऋण प्रदान करना है।
- समान्य उपयोगिता संबंधी कार्य- इसके अलावा व्यावसायिक बैंक अन्य बहुत से कार्य करते हैं, जिन्हें समान्य उपयोगिता संबंधी कार्य कहा जाता है।
जैसे- यात्री चेक एवं साख पत्र जारी करना- साख पत्र या यात्री चेक की मदद से व्यापारी विदेशों से भी आसानी से माल उधार ले सकते हैं।
लॉकर की सुविधा- लॉकर की सुविधा से ग्राहक बैंक में अपने सोने-चाँदी के जेवर तथा अन्य आवश्यक कागज पत्र सुरक्षित रख सकते हैं।
ATM और क्रेडिट कार्ड की सुविधा- ATM और क्रेडिट कार्ड की मदद से खाता धारक 24 घंटे रूपया निकाल सकते हैं।
व्यापारिक सूचनाएँ एवं आँकड़े एकत्रीकरण- बैंक आर्थिक स्थिति से परिचित होने के कारण व्यापार संबंधी सूचनाएं एवं आँकड़े एकत्रित करके अपने ग्राहकों को वित्तीय मामलों पर सलाह देते हैं।
- ऐजेंसी संबंधी कार्य- इसके अंतर्गत चेक, बिल और ड्राफ्ट का संकलन, ब्याज तथा लाभांश का संकलन तथा वितरण, ब्याज, ऋण की किस्त, बीमे की किस्त का भूगतान, प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय तथा ड्राफ्ट तथा डाक द्वारा कोष का हस्तांतरण आदि क्रियाएँ करती हैं।
स्वयं सहायता समुह- स्वयं सहायता समुह ग्रामीण क्षेत्रों में 15-20 व्यक्तिओं का एक अनौपचारिक समूह होता है जो अपनी बचत तथा बैंकों से लघु ऋण लेकर अपने सदस्यों के पारिवारिक जरूरतों को पूरा करते हैं और गाँवों का विकास करते हैं।