अध्याय की मुख्य बातें : आज के अर्थजगत में वाणिज्य और व्यापार के अन्तर्गत आने वाली विश्व बाजार की व्यापारिक सम्बन्ध प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता के साथ । परन्तु आधुनिक काल के उदय के साथ ही भौगोलिक खोजो पुनर्जागरण तथा राष्ट्रीय राज्यों के उदय जैसी घटनाओं से जिससे वाणिज्य क्रांति को जन्म दिया सही मायने में विश्व बाजार का स्वरूप इसके बाद ही उभर कर सामने आया | इसका पूर्ण विस्तार औद्योगिक क्रांति के बाद हुआ ऐसी राजनीतिक आर्थिक प्रणाली जो प्रत्यक्ष रूप से एशिया और अविकसित अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका में यूरोपीय देशों द्वारा त्याग किया गया- इसका एकमात्र उद्देश्य इन देशों का आर्थिक शोषण करना | अौपनिवेशिक देशों के ऐसी श्रमिक जिन्हें एक निश्चित समझौता द्वारा निश्चित समय के लिए अपने शासित क्षेत्रों में ले जाते थे , इन्हें मुख्यतः नगदी फसलों जैसे गन्ना के उत्पादन में लगाया जाता था | भारत के भोजपुरी भाषी क्षेत्रों पूर्वी उत्तर प्रदेश ,पश्चिम बिहार, पंजाब ,हरियाणा से गन्ना की खेती के लिए जमैका ,फिजी एवं टोबैगो मॉरीशस आदि देशों में ले जाया गया |
आर्थिक गतिविधियों को स्वतंत्र रूप से संचालित होने को सुनिश्चित करने के लिए बाजार के स्वरूप का विश्वव्यापी होना जरूरी है । व्यापारियों , श्रमिकों , पूँजीपतियों आम मध्य वर्ग आम उपभोक्ताओं के द्वितों को बाजार का विश्वव्यापी स्वरूप सुरक्षित रखता है । किसानों को अपने उपज का अच्छा रिटर्न प्राप्त होता है । आधुनिक विचार और चेतना के प्रसार में भी इसका बड़ा महत्व होता है ।
शहरीकरण का विस्तार और जनसंख्या में महत्वपूर्ण वृद्धि वैश्विक व्यापार का एक बड़ा लाभकारी परिणाम था । विश्व बाजार के फैलते स्वरूप ने यूरोपीय देशों में सम्पन्नता के एक नये दौर को पैदा किया , लेकिन इस सम्पन्नता के पीछे का सच बहुत कड़वा था । विश्व बाजार ने एशिया और अफ्रीका में साम्राज्यवाद , उपनिवेशवाद के एक नये युग को जन्म दिया , साथ ही साथ भारत जैसे पुराने उपनिवेशों का शोषण और तीव्र हुआ । उपनिवेशों की अपनी स्थानीय आत्म निर्भर अर्थव्यवस्था जिसका आधार कृषि और लघु तथा कुटीर उद्योग था , नष्ट हो गया । औपनिवेशिक देशों में विश्व बाजार ने अकाल भूखमरी , गरीबी जैसे मानवीय कटों को भी जन्म दिया जैसे भारत में 1850 से 1920 के बीच कई बड़े अकाल पड़े जिसमें लाखों लोग मर गये । इसने विश्व के सामने एक ऐसा संकट पैदा किया , जिसकी कल्पना विश्व ने नहीं की थी । ‘
प्रथम महायुद्ध ने यूरोप को अर्थव्यवस्था को बिल्कुल तबाह कर दिया । अर्थतन्त्र में आने वाली वैसी स्थिति जब उसके तीनों आधार कृषि , उद्योग और व्यापार का विकास अवरुद्ध हो जायें , लाखों लोग बेरोजगार हो जायें , बैंको , और कंपनियों का दिवाला निकल जाये तथा वस्तु और मुद्रा दोनों की बाजार में कोई कीतम ना रहे , तो वैसी परिस्थिति में आर्थिक मंदी होती है । 1929 के आर्थिक मंदी का बुनियादी कारण स्वयं इस अर्थव्यवस्था के स्वरूप में ही समाहित था । प्रथम महायुद्ध के चार वर्षों में यूरोप को छोड़कर बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का विस्तार होता चला गया । उसके मुनाफे बढ़ते चले गये , दूसरी तरफ अधिकांश लोग गरीबी से जुझते रहे । नवीन तकनीकी प्रगति तथा बढ़ते हुए मुनाफे के कारण उत्पादन में जो भारी वृद्धि हुई उससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई कि जो कुछ उत्पादित किया जाता था , उसे खरीद सकने वाले लोग बहुत कम थे । अपनी वस्तुओं को विदेशी वस्तुओं के आमद से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए विदेशी वस्तु पर ऊँची आयात शुल्क लगाये गये । जनकल्याग की एक बड़ी योजना से संबंधित नई नीति जिसमें आर्थिक क्षेत्र के अलावा राजनीति और प्रशासनिक नीतियो को भी नियमित किया गया ।
भूमंडलीकरण राजनीतिक , आर्थिक , सामाजिक , वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विश्वव्यापी समायोजन की एक प्रक्रिया है जो विश्व के विभिन्न भागों के लोगों को भौतिक व मनोवैज्ञानिक स्तर पर एकीकृत करने का सफल प्रयास करती है अर्थात् जीवन के सभी क्षेत्रों में लोगों के द्वारा किये जाने वाले क्रियाकलापों में विश्वस्तर पर पाया जाने वाला एकरूपता या समानता भूमंडलीकरण के अन्तर्गत आयगा ।
1919 के बाद विश्वव्यापी अर्थतंत्र में यूरोप के स्थान पर संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस का प्रभाव बढ़ा , जो द्वितीय महायुद्ध के बाद विश्व व्यापार और राजनैतिक व्यवस्था में निर्णायक हो गया ।
1919 के बाद विश्व बाजार के अन्तर्गत ही एक नवीन आर्थिक प्रवृति भूमंडलीकरण का उत्कर्ष हुआ जो निजीकरण और आर्थिक उदारीकरण से प्रत्यक्षतः जुड़ा था । भूमंडलीकरण ने सम्पूर्ण विश्व के अर्थतंत्र का केन्द्र बिन्दु संयुक्त राज्य अमेरिका को बना दिया । उसकी मुद्रा डॉलर , पूरे विश्व की मानक मुद्रा बन गई । उसकी कपनियों को पूरी दुनिया में कार्य काने की अनुमति मिल गयी । आज विश्व एक ध्वीय स्वरूप में बदलकर प्रभावशाली देश संयुक्त राज्य अमेरिका के आर्थिक नीतियों के हिसाब से चल रहा है । आर्थिक क्षेत्र में भूमंडलीकरण ने अमेरिका के नवीन आर्थिक साम्राज्यवाद को जन्म दिया । इसका असर आज सम्पूर्ण विश्व में महसूस किया जा रहा है ।