पाठ की मुख्य बातें – दक्षिण पूर्व एशिया में वियतनाम लाओस और कम्बोडिया ( 3 लाख वर्ग कि ० मी ० ) के क्षेत्र को ही हिन्द चीन देश कहा जाता है । वियतनाम पर चीन का प्रभाव था.परन्तु लाओस कम्बोडिया पर भारतीय संस्कृति का प्रभाव था । चौथी शताब्दी में कम्बुज राज्य की स्थापना हुई और वहाँ एक भारतवंशीय राजा बना । कम्बुज भारतीय संस्कृति का प्रधान केन्द्र बना और 12 वीं शताब्दी में राजा सूर्यवर्मा द्वितीय ने अंकोर मंदिर का निर्माण करवाया । परन्तु 16 वीं शताब्दी में कम्बुज का पतन हो गया और आंतरिक संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गयी । 1498 ई 0 के बादपूर्तगाली , डच , इंग्लैंड फ्रांसिसीयों का व्यापार हेतु आगमन हुआ । परन्तु फ्रांसिसीयों ने यहाँ राजनीतिक प्रभुता कायम करने की कोशिश की और 20 वीं सदी के आरंभ तक सम्पूर्ण हिन्द – चीन फ्रांस की अधीनता में आ गया । फ्रांस का हिन्दचीन को उपनिवेश बनाने के पीछे ब्रिटिश , डच कंपनियों से व्यापारिक स्पर्धा थी भारत में फ्रांसिसी पिछड़ रहे थे तथा कच्चे माल की आपूर्ति भी उपनिवेशों से होती थी और बाजार भी उपलब्ध था । कोयला , टीन , जस्ता , क्रोमियम और रबर का दोहन शुरू हो गया । किसानों का शोषण भी शुरू हुआ । इसके साथ ही फ्रांसिसीयों ने कृषि उत्पादकता बढ़ाने हेतु नहरों की व्यवस्था , साथ ही कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल भी बढ़ाया गया , जिसके फलस्वरूप . 1931 ई 0 तक वियतनाम विश्व का तीसरा बड़ा निर्यातक देश बन गया । साथ ही रेल नेटवर्क , सड़कों का जाल बिछाया गया , परन्तु किसानों और मजदूरों की स्थिति दिनोंदिन दयनीय होती चली गयी ।
क्योंकि सारी व्यवस्था ही शोषण मूलक थी । शिक्षा में भी फ्रांसिसीयों को इसके प्रसार के सकारात्मक प्रभावों का डर था । अतः स्थानीयों को शिक्षा से दूर रखने का प्रयास किया जाता था और अंतिम साल में अधिकतर स्थानीय बच्चों को फेल कर दिया जाता था । हनोई विश्वविद्यालय को बन्द कर दिया गया । इन सभी के बीच राष्ट्रीयता की भावना का भी विकास शुरू हो गया और शोषण के विरुद्ध छिटपुट विद्रोह शुरू हो गये । 1905 ई ० में जापान द्वारा रुस को हराया जाना हिन्दचीनियों के लिये प्रेरणास्रोत बन गया । छात्रों ने वियतनाम मुक्ति एशोसियशन की स्थापना की । प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हजारों स्थानीय लोगों को सेना में भरती किया गया और उन्हें फ्रोस बेगार करने के लिये लाया गया । युद्ध की प्रथम पंक्ति में इन्हें ही रखा जाता और ये बड़ी संख्या में मारे जाते । इन्हीं सब बातों की प्रक्रिया स्वरूप 1914 ई 0 में देशभक्तों ने एक ” वियतनामी राष्ट्रवादी दल ” नामक संगठन बनाया जिसका पहला अधिवेशन कैंण्टन में हुआ । फ्रांस ने इसे कुचल डाला और दूसरी तरफ जनता की हालत और दयनीय होती चली गयी । इन्हीं सब परिस्थितियों के बीच हो – ची मिन्ह ( 1917 ई ० ) नामक एक वियतनामी छात्र ने पेरिस में ही साम्यवादियों का एक गुट बनाया , बाद में 1925 ई ० में वियतनामी क्रांतिकारी दल का गठन किया और सैनिक प्रशिक्षण भी लियो । आंदोलन अंदर ही अंदर खौलता रहा ।
द्वितीय विश्वयुद्ध की परिस्थितियों ने वियतनामियों को एक निर्णायक रास्ता प्रदान किया । जापान का आत्मसर्मपण और फ्रांस की कमजोर स्थिति का लाभ उठाते हुए वियतनाम के राष्ट्रवादियों ने वियतमिन्ह के नेतृत्व में लोकतंत्रीय गणराज्य सरकार की स्थापना 2 सितम्बर 1945 ई ० को कर वियतनामा की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी । इस सरकार के प्रधान हो ची मिन्ह थे । द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात ब्रिटेन , हॉलैन्ड , अमेरिका एवं फ्रांस अपने साम्राज्यों की पुनर्रथापना में लग गये । इसके लिये – फ्रांस ने नये औपनिवेशिक तंत्र की योजना बनाई । परन्तु अंततोगत्वा दिएन – विएन फु के युद्ध में वियतानामियों को गुरिल्लों के हाथों फ्रांस के 16000 सैनिकों का आत्मसमर्पण करना पड़ा और फ्रांस पराजित हुआ । वहाँ पर साम्यवादी व्यवस्था लागू हो गयी और वियतमान को एवं चीन ने मान्यता प्रदान कर दी ।
अमेरिका इस बीच हिन्दचीन में हस्तक्षेप करना चाह रहा था । संघर्ष के दौर में ही 1954 ई ० में जेनेवा समझौता हुआ , जिसके अनुसार वियतनाम को दो भागो में बांट दिया गया और लाओस एवं कम्बोडिया में वैध राजतंत्र को मान्यता मिली । जेनेवा समझौता ने तात्कालिक रूप से कुछ शांति अवश्य दी परन्तु तुरन्त ही हिन्दी चीन में उथल – पुथल आरंभ हो गया । हिन्दचीन पर साम्यवादी प्रभाव बढ़ता जा रहा था और अमेरिका किसी भी परिस्थिति में इसे बढ़ने नहीं देना चाह रहा था । परन्तु लाख कोशिश के बाद भी अमेरिकी सैनिक हस्तक्षेप से वामपंथ के प्रसार को रोक नहीं पाया । 1954 ई 0 में स्वतंत्र राष्ट्र बनने के बाद राजकुमार नरोत्तम सिंहानुक कम्बोडिया का शासक बना । परन्तु उसे अमेरिकी प्रभाव स्वीकार न था ।16 वर्ग के लिए फलस्वरूप अमेरिका ने 1969 में कम्बोडिया में जहाजों द्वारा जहर की वारिश कर 40 हजार एकड़ रबड़ की खेती को नष्ट कर दिया । अमेरिकी पड़यंत्र से 1970 ई 0 में राष्ट्रीय संसद ने सिंहानुक को सत्ता से हटा दिया । परन्तु सिहानुक ने संघर्ष शुरू कर दिया । कम्बोडियायी छापामारी और अमेरिकी सेनाओं के बीच युद्ध चलता रहा । पाँच वर्षों के बाद 1975 में गृहयुद्ध समाप्त हो गया और सिंहानुक पुनः राष्ट्राध्यक्ष बने परन्तु 1978 में संन्यास ले लिया । अब कम्बोडिया का नाम कम्पुचिया कर दिया गया है ।
जेनेवा समझौते से दो वियतनामी राज्यों का जन्म अवश्य हो गया था परन्तु स्थायी शान्ति की उम्मीद नहीं के बराबर थी । क्योंकि उत्तरी वियतनाम में साम्यवादी सरकार थी और दक्षिणी में पूँजीवादी । अमेरिका वियतनाम में साम्यवाद को रोकना चाहता था । 1964 को अमेरिका ने उत्तरी वियतनाम पर हमला कर दिया । यह युद्ध काफी भयंकर , बर्बर और हिंसात्मक था । 1967 ई 0 तक अमेरिका ने वियतनाम पर इतने बम बर्षाये जितने जर्मनी ने द्वितीय विश्वयुद्ध में इंग्लैंड पर नही बर्षाये थे । दूसरी ओर वियतनामी अब साम्यवाद या किसी अन्य बातों के लिये नहीं बल्कि अपने अस्तित्व और अपने राष्ट्र के लिये लड़ रहे थे । अंततः 7 फरवरी 1973 को पेरिस में वियतनाम युद्ध की समाप्ति के समझौते पर हस्ताक्षर हो गया समाप्ति के 60 दिनों के भीतर अमेरिकी सेना वापस हो जायगी और उत्तर एवं दक्षिण वियतनाम परस्पर सलाह कर एकीकरण का मार्ग खोजेंगे । अमेरिका उन्हें असीमित आर्थिक सहायता देगा । जनवरी 1975 में दोनों वियतनाम का विलय हो गया । इस प्रकार सात दशकों से ज्यादा चलने वाला अमेरिका वियतनाम युद्ध समाप्त हो गया तथा धन – जन जिसमें युद्ध उत्तर – भानाम की बरबादी के अलावे अमेरिकी साख को गहरा धक्का लगा , पूरे हिन्दचीन में वह असफल रहा और हिन्द चीन के सभी देशों की संप्रभुता उसे स्वीकार करनी पड़ी ।
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