यद्यपि आपदाएँ और संकट प्राकृतिक क्रियाओं के प्रतिफल हैं, परंतु अविवेकपूर्ण मानवीय क्रियाएँ भी आपदाओं को आमंत्रित करती हैं।
आपदा के संवेदनशील क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन के लिए हमेशा तैयारी रखनी चाहिए, क्योंकि आपदाएं अप्रत्याशित रूप से घटित होती हैं।
बाढ़ और सूखे के संकट का आकलन कर उनसे निपटने की तैयारी सम्यक रूप से करनी ।
चाहिए।
आपदा प्रबंधन में स्थानीय लोगों का सहयोग ही सबसे अधिक कारगर होता है।
संचार साधनों का उपयोग आपदा से निपटने में बहुत प्रभावशाली होता है।
अभी तक आपदाओं में लाखों-करोड़ों लोगों की मृत्यु तब हुई हैं जब उन क्षेत्रों में एकाधिपत्य शासन रहा है। किसी लोकप्रिय प्रजातांत्रिक देश में बड़ी संख्या में लोगों की ‘ मौत नहीं हुई, क्योंकि वहाँ आपदा से निपटने के लिए उचित प्रयास करना संभव हो सका आपदा प्रबंधन के महत्व को इंगित करने के लिए यह उदाहरण सटीक है।
प्रकृति में होनेवाले कुछ परिवर्तन संकट और आपदाओं के कारण होते हैं।
अनेक संकटों और आपदाओं का कारण मनुष्य के क्रियाकलाप भी होते हैं।
प्रकृति के साथ अनावश्यक छेड़छाड़ संकटों और आपदाओं को आमंत्रित करती है।
संकट धीरे-धीरे उत्पन्न होते हैं और आपदाएँ अकस्मात विकास रूप ले लेती हैं।
भारत का उत्तरी तराई भाग भूकंप के लिए अत्यधिक संवेदनशील है।
ज्वालामुखी के प्रकोप से भारत प्रायः बचा हुआ है।
सुनामी से बंगाल की खाड़ी प्रभावित है, क्योंकि इससे पूर्वी भाग में इंडोनेशिया का तट बहुत अधिक संवेदनशील है।
भारत में चक्रवात प्रायः मई-जून तथा अक्टूबर-नवम्बर में अधिक आते हैं।
पूर्वोत्तर भारत में बाढ़ प्रायः प्रतिवर्ष आती है और यही व्यापक हानि होती है।
पंजाब, हरियाणा जैसे पश्चिमोत्तर से राज्यों में हिमालय की बर्फ पिघलने से बाढ़ आती है।
देश के पश्चिमी और दक्षिणी भाग में प्रायः सूखे की स्थिति रहती है; परंतु सभी भाग इसकी चपेट में आ सकते हैं।
बाढ़ का दुष्प्रभाव क्षणिक होता है जबकि सूखे से लोगों को लंबे समय तक कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
देश में बिहार एक ऐसा राज्य है जो किसी संकट और आपदा से अछूता नहीं है, सिवाय सुनामी के।