प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद


अध्याय की मुख्य बाते : प्रेस के बिना आज के युग की कल्पना ही असंभव है । छापाखाना या प्रेस का आविष्कार उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि आग , पहिया और लिपि का था । सर्वप्रथम पत्थर या लकड़ी पर खुदाई करके अपने अनुभव या सोच का प्रदर्शन किया जाता था । सर्वप्रथम चीन में 105 ई . में कपास एवं मलमल की पट्टियों से कागज बनाया गया । 10 वीं सदी के पूर्वार्द्ध में ब्लाकप्रिटिंग द्वारा मुद्रापत्र छापे गये । मुद्रणकला के आविष्कार का श्रेय चीन को जाता है । परन्तु इसका विकास यूरोप में अधिक हुआ । जर्मनी के गुटेनवर्ग ने हैण्डप्रेस का प्रथमवार मुद्रण कार्य में प्रयोग किया और उसमें उसके बाद क्रांति आ गयी । 16 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में प्रेस आधुनिक रूप में विश्व के अन्य देशों में पहुँच गयी । मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप किताबें समाज के सभी वर्गों तक पहुँची । और एक नया पाठक वर्ग पैदा हुआ । 18 वीं सदी के मध्य तक मुद्रण क्रांति के कारण प्रगति और ज्ञानोदय का प्रकाश पूरे विश्व में हो चुका था और लोग निरंकुश शासन से लड़ने हेतु नैतिक साहस का परिचय देने लगे थे । उत्तरोत्तर विकास करते हुए 20 वीं सदी के प्रारंभ में बिजली से चलने वाली छापेखाना ने काम करना शुरू कर दिया । भारत में सर्वप्रथम पूर्तगाली धर्म प्रचारकों द्वारा 16 वीं सदी में प्रिंटिग प्रेस लाया गया । भारत में समाचार पत्रों का उदय 19 वीं सदी की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी जिसने अंग्रेजी नीतियों एवं शोषण के विरुद्ध जागृति लाये एवं देशप्रेम की भावना जागृत कर राष्ट्रनिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किर्यां ।

भारतीय द्वारा प्रकाशित प्रथम समाचारपत्र 1816 ई ० में गंगाधर भट्टाचार्या का साप्ताहिक बंगाल गजट था । 1821 में बंगाली में संवाद कौमुरी तथा 1822 मे फारसी में प्रकाशित मिरातुल अखबार के साथ प्रगतिशील राष्ट्रीय प्रवृत्ति के समाचार पत्रों का प्रकाशन प्रारंभ हुआ । इस बीच अंग्रजों द्वारा संपादित समाचारपत्र भी थे और भारतीयों द्वारा संपादित भी । अंग्रेजों द्वारा संपादित समाचार पत्र शासक के पक्षधर  थे और भारतीयों द्वारा संपादित राष्ट्रवादी भावनाओं से ओतप्रोत । 1858 ई 0 में ईश्वरचन्द्र विधासागर ने सोम प्रकाश और 1875 में केशवचन्द्र सेन ने सुलभ समाचार निकाला । इस तरह पूरे भारतवर्ष में अनेक समाचार पत्रों का प्रकाशन होने लगा । इन पत्रों का जनमानस पर व्यापक प्रभाव पड़ा । 1910-20 के बीच उर्दू पत्रकारिता का भी विकास हुआ । मौलाना आजाद के संपादन में 1912 में अलहिलाल तथा 1913 ईस्वी में असविलग कोलकाता से प्रकाशित होना शुरू हुआ । प्रेस ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के हर पत्र चाहे वह राजनीतिक , सामाजिक , व्यावसायिक दृष्टिकोण से पत्रकारिता को नहीं अपनाया बल्कि इसे मिशन के रूप में अपनाया । प्रेस ने अंग्रेजों के प्रति व्यापक असंतोष को सरकार के समर्श पहुँचाने का कार्य प्रेस ने किया । सामाजिक सुधार के क्षेत्र में प्रेस ने सामाजिक रूढ़ियों , रीति – रिवाजों अधविश्वासों तथा अंग्रेजी सभ्यता के प्रभाव राम् में गांधी के प्रयासों का भी भारतीय प्रेस ने गंभीरतापूर्वक उल्लेख किया । देश आदि जैसे समाज सुधारकों ने जनमत हेतु प्रेस को अपना हथियार बनाया ।

दक्षिण अफ्री का प्रेस स विरोध का मार्ग प्रशस्त किया । इस प्रकार प्रेस ने सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में विभिन्न समुदायों के बीच की दूरी समाप्त करने एवं शोषण के विरुद्ध जनमत तैयार करने का कार्य कर राष्ट्रीय आदोलन एवं राष्ट्र निर्माण को तीव्र किया । प्रारंभ में कंपनी शासन के दौरान समाचार पत्रों के लिये आदर्श आचार संहिता नहीं थी । कंपनी की स्वेच्छा पर निर्भर था कि समाचार पत्र या संपादक के प्रति वह अपने अनुकूल कार्य न करने पर दण्ड नि ििरत करे । अतः समाचार पत्रों को नियंत्रित करने के लिये कई अधिनियम बनाये गये जिनमें से निम्नलिखित महत्वपूर्ण हैं
(i ) 1799 का समाचार पत्रों को पत्रेक्षण अधिनियम । ( ii ) 1823 के अनुज्ञप्ति नियम ।
( iii ) भारतीय समाचार पत्रों की स्वतंत्रता 1835 1 ( iv ) 1857 का अनुज्ञप्ति अधिनियम ।
( v ) 1867 का पंजीकरण अधिनियम ।
( vi ) देशी भाषा समाचार पत्र अधिनियम वर्नावलूयर प्रेस ऐक्ट 1878 !
( vii ) 1908 का समाचार पत्र अधिनियम ।
( viii ) 1910 का भारतीय समाचार पत्र अधिनियम । ( ix ) 1931 का भारतीय समाचार पत्र अधिनियम । ( x ) समाचार पत्र जाँच समिति
( xi ) 1951 का समाचार पत्र ( आपत्तिजनक विषय ) अधिनियम कई पत्रकार संगठनों द्वारा विरोध करने पर सरकार ने न्यायाधीश जी. एस. राजाध्यक्ष की  अध्यक्षता में एक प्रेस कमीशन नियुक्त किया । इसने 1954 ई . में अखिल भारतीय समाचार ने मान लिया । आज भारत में पत्रकारिता साहित्य मनोरंजन , ज्ञान – विज्ञान प्रशासन राजनीति आदि को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रहा है । आज के इस आधुनिक दौर में प्रेस , साहित्य और समाज की चेतना की घरोहर है और पत्र पत्रिकाएँ दैनिक गतिशीलता की लेखा है । अत : आज लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने हेतु सजग प्रहरी के रूप में हमारे सामने खड़ा है । इस तरह प्रेस अपने विकास के प्रथम चरण से आज तक भिन्न – भिन्न परिस्थितियों से गुजरते हुए समस्त परम्पराओं एवं मूल्यों की रक्षक तथा वर्तमान सामाजिक , वैज्ञानिक एवं राजनीतिक गतिविधियों को समझने एवं जानने के मुख्य स्रोत के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है ।


नीचे दिये गए प्रश्नों के उत्तर के रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। जो आपको सर्वाधिक उपयुक्त लगे उनमें सही का चिह्न लगायें। (View Answer)


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