अध्याय की मुख्य बातें :किसी भी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि एवं उद्योग होता है जिस पर लोगों की आजीविका निर्भर करती है । आधुनिक युग में कृषि की तुलना में उद्योगों का महत्व बहुत अधिक बढा है और देश की अर्थव्यवस्था में इनके योगदान में भी समानुपातिक वृद्धि है । औद्योगीकरण अथवा उद्योगों की वृहत् रूप में स्थापना उस औद्योगिक क्रान्ति की दैन है , जिसमें वस्तुओं का उत्पादन मानव मम के द्वारा न होकर मशीनों के द्वारा होता साधारणतया औद्योगीकरण ऐसी प्रक्रिया है , जिसमें उत्पादन मशीनों द्वारा कारखानों में होता है । इस प्रक्रिया के तहत ही ब्रिटेन में सर्वप्रथम घरेलू उत्पादन पद्धति का स्थान कारखाना पद्धति ने ले लिया । सन् 1750 ई 0 तक ब्रिटेन मुख्य रूप से कृषि प्रधान देश था लेकिन धीरे – धीरे करके यहाँ बहुत सारे उद्योग चलाये जाने लगे । ब्रिटेन में स्वतंत्र व्यापार और अहस्तक्षेप की नीति ने ब्रिटिश व्यापार को बहुत अधिक विकसित किया ।
अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ब्रिटेन में नये – नये यंत्रों एवं मशीनों के अविष्कार ने उद्योग जगत में ऐसी क्रान्ति का सूत्रपात किया , जिससे औद्योगीकरण एवं उपनिवेशवाद दोनों का मार्ग प्रशस्त हुआ । सन 1169 में अल्टन निवासी रिचर्ड आर्कराइट ने सूत काटने की स्पिनिंग फेम नामक एक मशीन बनाई जो जलशक्ति से चलती थी । सन् 1785 में एडमंड कार्टराइट ने वाष्प से चलने वाला पावरलूम ‘ नामक करघा तैयार किया । मशीनों एवं नये – नये यंत्रों के आविष्कार ने फैक्ट्री प्रणाली को विकसित किया . फलस्वरूप उद्योग तथा व्यापार के नये – नये केन्द्रों का जन्म हुआ ।
मशीनों के आविष्कार तथा फैक्ट्रियों की स्थापना से उत्पादन में काफी वृद्धि हुई । अठारहवीं शताब्दी तक भारतीय उद्योग विश्व में सबसे अधिक विकसित थे । भारत विश्व का सबसे बड़ा कार्यशाला था , जो बहुत ही सुन्दर एवं उपयोगी वस्तुओं का उत्पादन करता था । जब तक मशीनों का आविष्कार नहीं हुआ था भारतीय हस्तकला , शिल्प आयोग तथा व्यापार पर ब्रिटिश नियंत्रण कायम था ।
औद्योगिक उत्पादन से भारत में कुटीर उद्योग तो बन्द हो गए , लेकिन वस्त्र उद्योग के लिए कई बड़ी – बड़ी फैक्ट्रियों देशी एवं विदेशी पूँजी लगाकर खोली गयीं , जिससे कारखाना उद्योग को बढ़ावा मिला । सर्वप्रथम सूती कपड़े की मिल की नींव 1851 ई 0 में बम्बई में डाली गयी । सन् 1854 से 1880 तक तीस कारखानों का निर्माण हुआ , जिसमें तेरह पारसियों द्वारा बनाये गये थे । सन् 1895 से 1914 तक के बीच सूती मिलों की संख्या 144 तक पहुंच गयी थी और भारतीय सूती धागे का निर्यात चीन को होने लगा था ।
भारत में कोयला उद्योग का प्रारंभ सन् 1814 में हुआ , जब सनीगंज , पश्चिम बंगाल में कोयले की खुदाई का काम प्रारम्भ किया गया था । सन् 1850-60 के पश्चात भारत में बागीचा उद्योग अर्थात् नील , चाय , कॉफी , रबर और पटसन मिले आरम्भ हो गयीं । सन 1916 में सरकार ने एक औद्योगिक आर्योग नियुक्त किया ताकि वह भारतीय उद्योग तथा व्यापार के भारतीय वित्त से संबंधित प्रयत्नों के लिए उन क्षेत्रों का पता लगाये जिसे सरकार सहायता दे सके । सन् 1921 में सरकार ने एक राजस्व आयोग नियुक्त किया । द्वितीय विश्वयुद्ध के समय मिलों द्वारा उत्पादित सूती कपड़ों की सम्पूर्ण माँग को अब भारतीय मिले ही पूरा कर रही थीं । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका भारत के व्यापार का एक मुख्य साझेदार हो गया । वह भारत को अब उपयोगी सामान देने लगा और भारत से कच्चा माल मेंगाने लगा । प्रथम विश्वयुद्ध के पहले तक यूरोप की कंपनियों व्यापार में पूँजी लगाती थीं ।
औद्योगीकरण ने नई फैक्ट्री प्रणाली को जन्म दिया , जिससे गृह उद्योगों के मालिक अब मजदूर बन गए जिनकी आजीविका बड़े – बड़े उद्योगपतियों द्वारा प्राप्त वेतन पर निर्भर करता था औरतों एवं बच्चों से भी 16 से 18 घंटे काम लिये जाते थे । अतः इन मजदूरों के मन में उत्तरोत्तर यह भावना दुव होती गयी कि ये नये कारखाने उनके प्रबल शत्रु है । चूंकि इन्ही कारखानों ने उन्हें बेरोजगार कर दिया था । धीरे – धीरे ये असगठित मजदूर राष्ट्रीय स्तर पर अपना संगठन बनाना शुरू कर दिए । 31 अक्टूबर 1920 ई 0 को ‘ अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की गयी और लाला लाजपत राय उसके प्रधान बनाये गर्य , सन 1920 में ही अन्दर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ के गठन से अभिकों की समस्याओं को अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका मिल गयी । सन् 1926 में मजदूर संघ अधिनियम पारित हुआ . जिसके द्वारा पंजीकृत मजदूर संघों को मान्यता प्रदान की गयी ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ भारत का विभाजन हो गया और इसके तुरत बाद भारत में बेरोजगारी बढ़ गयी । मजदूरों की आजीविका एवं उनके अधिकारों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने सन 1948 ई 0 में न्यूनतम मजदूरी कानून पारित किया , जिसके द्वारा कुछ उद्योगों में मजदूरी की दरें निश्चित की गई । मजदूरों की स्थिति में सुधार हेतु सन 1952 में केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय अभ आयोग स्थापित किया । इस तरह स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने उर्याग में लगे मजदूरों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए कई कदम उठाये हैं . चूंकि औद्योगीकरण के दौर में पूंजीपतियों द्वारा उनका शोषण किया जाता था ।