अध्याय की मुख्य बातें : – समाजवाद में उत्पादन के सभी साधनों एवं कारखानों पर सरकार का एकाधिकार होता है और उत्पादन निजी लाभ के लिये न होकर पूरे समाज के लिये होता है । पूँजीवाद की भावना के विकास के कारण पूँजीपतियों एवं मिल – मालिकों की मजदूर विरोधी नीतियों के कारण श्रमिकों का जीवन नारकीय बन गया । क्रूर शोषण के बीच उनकी आर्थिक और सामाजिक स्तर निरतर गिरती चली गयी । पूँजीवादी व्यवस्था मजबूत होती जा रही थी । फलस्वरूप मजदूरों की स्थिति और दयनीय होती चली गयी उन्हें संगठन बनाने का भी अधिकार नहीं था । इसी बीच विचारकों और लेखकों के मार्गदर्शन पर एक नई विचारधारा का प्रतिपादन किया गया जिसे समाजवाद का नाम दिया गया । इसके दो चरण थे – मार्क्स से समाजवाद पूर्व समाजवाद और मार्क्स के बाद के समाजवाद । मार्क्स के पूर्व के को यूटोपियन समाजवाद और वाद को वैज्ञानिक समाजवाद कहते हैं । । यूटोपियन समाजवादियों को दृष्टिकोण दे वर्ग संघर्ष के बदले वर्ग समन्वय के हिमायती थे ।
इनमें सेंट साईमन , चार्ल्स फौरियन , उनके कार्यक्रम की प्रकृति अव्यावहारिक थी । लूईब्लो और रॉयट ओवन प्रमुख थे । कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 ई 0 को जर्मनी में राइन प्रांत के ट्रियर नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था । मार्क्स ने बीन विश्वविद्यालय से विधि की शिक्षा ग्रहण किया । मार्क्स ने अमिक वर्ग के कष्टों एवं उनकी कार्य की दशाओं पर गहन विचार किया 1848 ई 0 में एक साम्यवादी घोषणा पत्र प्रकाशित किया जिसे आछ गुनिक समाजवाद का जनक कहा जाता है । फिर दास कैपिटल नामक पुस्तक की रचना की जिसे समाजवादियों का बाइबिल कहा जाता है।
कार्ल ने मजदूरों के बारे में कहा वे अपनी मुक्ति स्वयं ही और अपने प्रयत्नों द्वारा ही प्राप्त कर सकते हैं । है । इस प्रकार कार्ल मार्क्स के नेतृत्व में समाजवादी आंदोलन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत आधार मिलने पर श्रमिकों में विश्वास एवं आशा का संचार हुआ । बीसवीं सदी में रूस के सम्राट जार के एकतंत्रीय और निरंकुश शासन रूस में कृ षकों की दयनीय स्थिति , औद्योगीकरण की नीति और रूसीकरण की नीति के कारण 1917 ई . में क्रांति को जन्म दिया जिसे वोल्शो क्रांति कहते हैं । इस क्रांति के दौरान ही रूस मैं लेनिन का प्रादुर्भाव हुआ । लेनिन ने तीन नारे दिये – भूमि , शांति और रोटी । लेनिन ने जनता और सेना की मदद से तत्कालीन करेन्सकी सरकार की पलट दिया ।
इस प्रकार रूस की महान नवंबर क्रान्ति हुई ( इसे अक्टूबर क्रांति भी कहते हैं । ) इसने रूस में सत्ता वोल्शेविकों के पास आ गयी और लेनिन उसका अध्यक्ष बना । इस प्रकार लेनिन ने रूस में कार्यक्रम लाने की योजना बनाई । सर्वप्रथम रूस ने जर्मनी से संधि कर ली जिससे वह प्रथम विश्व युद्ध से हट गया । उसके बाद उसने रूस की आंतरिक समस्याओं पर ध्यान दिया । साहसपूर्वक सामना किया । लालसेना का गठन किया । उसके बाद लेनिन भूमि सुधार मामले में किसानों के बीच भूमि का पुनर्वितरण करने लगा । उत्पादन मामले में फैक्ट्री में प्रमिक हड़ताल पर रोक लगा दी । फैक्ट्री के उत्पादों पर भी रोक लगा दी तथा किसानों से अनाज की वसूली होने लगी । परिणामतः 1920-21 में उत्पादन काफी गिर गया और मजदूरों के लगे । विरोध के स्वर भी उठने लगे । फलस्वरूप लेनिन ने अपनी नीति में संशोधन किया इसी का परिणाम था नयी आर्थिक नीति । लेनिन एक कुशल सामाजिक चिंतक और व्यावहारिक राजनीतिज्ञ था । उसने देखा कि हलांकि एक नई नीति की घोषणा से मार्क्सवादी विचारधाराओं से कुछ हद तक समझौता करना पड़ा । लेनिन वास्तव में पिछले अनुभवों सीखकर व्यावहारिक कदम उठाना इस नीति का लक्ष्य था । इसमें विभिन्न स्तरों पर बैंक का खोलना , ट्रेड यूनियन की अनिवार्य सदस्यता समाप्त करना , सीमित तौर पर विदेशी पूँजी आमंत्रित करना , किसानों को व्यावहारिक रूप से जमीन देना , 20 से कम कर्मचारियों वाले उद्योगों को व्यक्तिगत रूप से चलाने की अनुमति प्रमुख थे । इन प्रयासों से औद्योगिक उत्पादन आशातीत वृद्धि हुई । परन्तु 1924 ई 0 में लेनिन की लिये गंभीर संघर्ष चले ।
इस संघर्ष में स्टालिन की विजय हुई । उसने तानाशाही रूख अख्तयार किया । सभी नेताओं को खत्म कर दिया । राजनीतिक लोकतत्र तथा भाषण और प्रेस की स्वतंत्रता नष्ट कर दी गयी । 1953 में खड़ी हुई । विभिन्न समूहों और नेताओं में सत्ता मृत्यू के बाद उत्तराधिकारी की समस्या आइतिहास की दुनियाँ 11 ई ० में अपनी मृत्यु तक स्टालिन तानाशाह बना रहा । परन्तु दूसरी ओर उसके अथक प्रयास से रूस विश्व का एक शक्तिशाली देश के रूप में उभरा । रूस की क्रान्ति के प्रभाव से विश्व विचारधारा के स्तर पर दो गुटों में विभाजित हो गया ‘ साम्यवादी विश्व एवं पूँजीवादी विश्व । पूँजीवादी विश्व और सोवियत रूस के बीच एक लबे शीतयुद्ध की शुरुआत हुई । इस क्रान्ति से रूस एक शक्तिशाली एवं आर्थिक रूप से विकसित राष्ट्र के रूप में उभरा । साथ ही एशिया और अफ्रीका के देशों में भी उपनिवेश मुक्ति को प्रोत्साहन मिला ।
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