- जार की निरंकुशता एवं अयोग्य शासन-रूस में एक राजनीतिक संरचना स्थापित की थी। गलत सलाहकारों के कारण जार की स्वेच्छाचारिता बढ़ती गयी और जनता की स्थिति बाद से बदतर होती गयी।
- कृषकों की दयनीय स्थिति कृषकों के पास पूँजी का अभाव था तथा करों के बोझ से वे दबे हुए थे। ऐसे में किसानों के पास क्रांति के सिवाय कोई चारा नहीं था।
सोवियत रूस विभिन्न राष्ट्रीयताओं का देश था। यहाँ मुख्यतः स्लाव जाति के लोग रहते थे। इनके अतिरिक्त फिन, पोल, जर्मन, यहूदी आदि अन्य जातियों के लोग भी थे। वे भिन्न-भिन्न भाषा बोलते तथा इनका रस्म-रिवाज भिन्न-भिन्न था। परन्तु रूस के अल्पसंख्यक जार-निकोलस द्वितीय द्वारा जारी की गयी रूसीकरण की नीति से परेशान थे। इसके अनुसार देश के सभी लोगों पर रूसी भाषा, शिक्षा और संस्कृति को लादने का प्रयास किया गया। इससे अल्पसंख्यकों में हलचल मच गयी और 1868 ई. में इस नीति के विरुद्ध पोलो ने विद्रोह किया तो निर्दयतापूर्वक उसका दमन किया गया। इससे रूसी राजतंत्र के प्रति उनका आक्रोश बढ़ता गया।
कार्ल मार्क्स ने एंगल्स के साथ मिलकर 1848 में एक साम्यवादी घोषणा पत्र प्रकाशित किया जिसे आधुनिक समाजवाद का जनक कहा जाता है। इसमें आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया। इसने पूँजीवाद का विरोध कर वर्गहीन समाज * की स्थापना में महत्वपूर्ण योग दिया।
लेनिन एक कुशल सामाजिक चिंतक एवं व्यावहारिक राजनीतिज्ञ था। उसने यह स्पष्ट देखा कि तत्काल प्रभाव से पूरी तरह समाजवादी व्यवस्था लागू करना या एक साथ पूँजीवाद से टकराना संभव नहीं है अतः उसने एक नई आर्थिक नीति की घोषणा की जिसमें मार्क्सवादी मूल्यों
को भी तरजीह दिया ताकि पूँजीवाद और समाजवाद दोनों के बीच संतुलन बना रहे।
प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय रूसी क्रांति का तात्कालिक कारण बना क्योंकि युद्ध के मध्य जार द्वारा सेनापति का कमान अपने हाथों में लेने के कारण जरीना और उसके तथाकथित गुरु रासपुटिन (पादरी) जैसा निकृष्टतम व्यक्ति को षड्यंत्र करने का मौका मिल गया जिसके कारण राजतंत्र की प्रतिष्ठा और भी गिर गयी।