भारत में रौलेट ऐक्ट 1919 का पारित होना इसी का सबूत है । महायुद्ध का एक महत्वपूण परिणाम यह हुआ कि अंग्रेजों की प्रतिष्ठा घटी और भारतीय जनता के मन से गोरों की श्रेष्ठता का भय जाता रहा । इसके पश्चात ही भारतीय परिदृश्य पर महात्मा गाँधी का आगमन हुआ । 1915 ई 0 में अफ्रीका से लौटने के पश्चात अहमदाबाद में सावरमती आश्रम की स्थापना की । चम्पारण एवं खेड़ा में कृषक आन्दोलन और अहमदाबाद में अमिक आन्दोलन का नेतृत्व किया और गाँधीजी ने अपनी राष्ट्रीय यहचान बनाई ।
इसके पश्चात रौले ऐक्ट के खिलाफ इन्होंने सत्याग्रह की शुरुआत की । सत्याग्रह में रौलेट ऐक्ट के खिलाफ पूरे देश में आंदोलन फैल गया । गिरफ्तारियों दी गयीं । 13 अप्रैल 1919 ई 0 को जलियाँवाला हत्याकांड के रूप में इसकी अतिम परिणति हुई । सारा देश आहत हुआ । रविन्द्रनाथ टैगोर ने ना नाइट की उपाधि त्याग दी । गाँधीजी से केसर – ए – हिन्द की उपाधि त्याग दी । इस हत्याकांड ने राष्ट्रीय आन्दोलन में एक नई जान फूंक दी । इसी बीच सितंबर 1920 ई ० में गाँधीजी की प्रेरणा से अन्यायपूर्ण कार्यों के विरोध में दो प्रस्ताव पारित कर असहयोग आन्दोलन चलाने का निर्णय लिया गया । प्रथम , खिलाफत मुद्दे पर ब्रिटिश सरकार का दृष्टिकोण एवं द्वितीय , पंजाब में निर्दोष लोगों की हत्या करने वाले पर अधिकारियों को दंडित करने में सरकार की विफलता । हलाँकि चौरा – चोरी की घटना इस असहयोग आदोलन को गांधीजी ने बीच में ही रोक दिया । लेकिन इस आंदोलन के प्रभाव से पहली बार पूरा देश एक साथ आंदोलित हुआ ।
पूरे देश को एक साइमन कमीशन में सभी अंग्रेज सदस्यों का होना , विश्वव्यापी मंदी से जनता का त्राहिमाम होना , और पूर्ण स्वराज की माँग ऐसे कुछ प्रमुख कारक थे जिसके कारण गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का 1930 ई 0 में सूत्रपात किया । इस आंदोलन की शुरुआत महात्मा ने दांडी मार्च कर ननक बनाकर कानून की अवज्ञा की । यह घटना नमक सत्याग्रह के नाम से प्रसिद्ध हुआ और देश में लोग सरकार की नीतियों का उल्लंघन करने लगे । पेशावर में खान अब्दुल गफ्फार खाँ ने पठानों के बीच राष्ट्रीय चेतना का प्रसार किया और खुदाई खिदमतगार नामक स्वयंसेवी संस्था का गठन किया!
बिहार में समुद्रतट नहीं होने के कारण नमक सत्याग्रह संभव नहीं था । फलस्वरूप चौकीदारी करने के विरूद्ध में आंदोलन प्रारंभ हुआ । शीध ही इसने पूरे राज्य को अपने चपेट में ले लिया । अवज्ञा आंदोलन के दौरान छपरा जेल के कैदियों में विदेशी वस्त्र पहनने से इनकार कर दिया तथा नगी हड़ताल का आयोजन किया । इस प्रकार सविनय अवज्ञा आन्दोलन की व्यापकुता एवं उग्रता से हतप्रभ अंग्रजी सरकार समझौते के लिये बाध्य हो गयी । सरकार को गाँव से वार्ता करनी पड़ी और समझौते का नाम गाँधी इरविन पैक्ट दिया गया । हलांकि बात पूरी तरह से बनी नहीं फिर भी सविनय अवज्ञा आंदोलन के परिणाम से राष्ट्रीय आदोलन ने सामाजिक आधार पर बहुत विस्तार किया . महिलाओं की भागीदारी आदोलन में पहली बार आयी । इस आंदोलन से समाज के विभिन्न वर्गों में चेतना का उत्थान हुआ । विशेषकर कृषक एवं श्रमिक आंदोलन की मुख्यधारा में आ गये । इस प्रकार पहली बार ब्रिटिश सरकार ने समानता के आधार पर कांग्रेस से बातचीत की और भारत शासन अधिनियम 1935 ई 0 पारित किया । कालांतर में भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन श्रेत्रीय स्तरों पर प्रतिदिन बढ़ता गया और एक अखिल भारतीय स्तर के संगठन की आवश्यकता जोड पकड़ती गयी । अंततः 1885 ई 0 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना की गयी । काँग्रेस शब्द उत्तरी अमेरिका इतिहास से लिया गया है जिसका अर्थ लोगों का समूह होता है । अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु काँग्रेस आगे बढ़ती रही । गाँधी के कार्यक्रमों को काँग्रेस ने आत्मसात कर लिया । हलाकि कई बार काँग्रेस के आंतरिक स्थिति में उथल – पुथल नजर आया ।
परन्तु यह पार्टी उपने राष्ट्रीय एकता के प्रयास में सफल रही और अंततः इसी के नेतृत्व में हमें आजादी मिली । 1857 ई ० के विद्रोह में हिन्दु – मुस्लिम एकता एक मिशाल थी । अंग्रेज इससे अचम्भित थे । इस प्रकार फूट डालो और शासन करो की नीति को अंग्रेजों ने अपनाया । धर्म का सहारा राष्ट्रवादियों ने भी अपनाया । इस प्रकार एक पृष्ठभूमि तैयार हो रही थी क्योंकि कुछ सझात मुस्लिम भी अंग्रेजी समर्थन पाकर अपने समाज को उपेक्षा से बाहर निकाल कर विकास के रास्ते पर लाना चाहते थे । फलस्वरूप 30 दिसम्बर 1905 ई ० को ऑल इण्डिया मुस्किल लीग की नीव ढाका में रखा गया । अंग्रेजों ने इस घटना को युगांतकारी मानते हुए मैंचार किया कि उन्होंने 7 करोड़ मुसलमानों को अपने पक्ष में कर लिया ।
हलांकि यह बात पूरी तरह सत्य नहीं थी । राष्ट्रवार्दी मुसलमान नेताओं अजमल खाँ , डॉ ० किचलू , अबुल कलाम , मजहरूल हक का कांग्रेस के साथ होना यह प्रमाणित करता था कि गंग्रेस ही देश को नेतृत्व देने वाली एकमात्र पार्टी थी । इसी क्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ , स्वराज्य पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी आदि का गठन हुआ । इन सभी पार्टियों का मूल उद्देश्य स्वतंत्रता ही थी । परन्तु अखिल भारतीय स्तर पर काँग्रेस पार्टी का ही बोलबाला था । इसके बाद मजदूर संगठनों के गठन का सिससिला शुरू हुआ । 1920 ई 0 में AITUC की स्थापना हुआ , 1926 ई 0 में अखिल भारतीय मजदूर किसान पार्टी बनी ।
अंग्रेजों द्वारा भारतीय कृषि व्यवस्था के संदर्भ में शोषणकारी नीति अपनाये जाने के कारण भारतीय कृषक वर्ग में व्यापक असंतोष पनप रहा था । औद्योगीकरण के कारण नये मजदूर वर्ग का उदय हुआ . जिन्हें दो परस्पर विरोधी तत्वों उपनिवेशवादी राजनीतिक शासन तथा विदेशी एवं भारतीय पूंजीपतियों के शोषण का सामना करना पड़ा । इसने मजदूरों को अपने अधिकारों और भविष्य के लिये जागरूक करने का काम किया । भारतीय श्रमिकों और किसानों ने अपने आंदोलन कई चरणों में किये । इन आंदोलनों में प्रमुख थे चम्पारण आदोलन ( 1917 ) , खेड़ा आदोलन , मोपला विद्रोह , बारदोली सत्याग्रह , एका आदोलन । इस प्रकार देश के सभी वर्ग आंदोलन में चले आये । जनजातीय आदोलन उड़ीसा और बिहार में उभर रहे थे । खोड़ों के आंदोलन को उनके गाँवों को जलाकर दमन किया गया । भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान आदिवासियों ने तीव्र राष्ट्रवादी भावना का परिचय देते हुए जबर्दस्त सहयोग किया ।
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