प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन : बाढ़ सुखाड़


  • केन्द्र और राज्य सरकारों के आपदा राहत और पुनर्वास विभाग तथा आपदा-प्रबंधन निर्माण तो है ही, साथ में, प्रखंड और पंचायत स्तर पर भी समितियाँ हैं। स्वयंसेवी संस्थाएँ बहुत उपयोगी होती हैं।
  • भारत की सभी बड़ी नदियों में बरसात में बाढ़ आ जाती है, परंतु दक्षिण भारत में प्रायः नदियों के अंतिम छोर पर ही इसका प्रभाव दिखाई पड़ता है जबकि हिमालय की नदियाँ अधिक बाढ़ग्रस्त रहती हैं।
  • हिमालय के बर्फ से पिघलने से भी कुछ नदियों में बाढ़ आ जाती है भले ही वर्षा न हुई हो।
  • कोसी की बाढ़ में बालू की परत जम जाती है, वहीं बगल में कमला नदी उपजाऊ पंक की परत बिछा देती है।
  • अधिक वर्षा से पूर्वोत्तर भाग में शिलांग सूखाग्रस्त और अल्पवर्षा का क्षेत्र है, क्योंकि यह वृष्टिछाया में स्थित है।
  • देश का पश्चिमी भाग और दक्षिण का मध्य प्रायः सूखाग्रस्त रहता है।
  • बाढ़ और सूखे से जानमाल की हानि का कारण आपदा प्रबंधन की कमी है।

बाढ के दुष्परिणाम-

  1. जन-धन की हानि होती है।
  2. पालतू पशु भी मर जाते हैं।
  3. फसलें बरबाद हो जाते हैं।
  4. मकान और ढाँचों के गिरने या क्षतिग्रस्त होने से आर्थिक हानि के साथ आवास की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है।
  5. परिवहन के साधन; जैसे- सड़कें, रेलमार्ग, पुल आदि टूट जाते हैं।
  6. बाढ़ के तुरंत बाद प्रभावित क्षेत्रों में कई प्रकार की बीमारियां फैलती हैं; जैसे-हैजा, आंत्रशोथ, हेपेटाइटिस और अन्य जल-जनित बीमारियाँ।

बाढ़ से लाभ

  1. नदियों के किनारे मजबूत तटबंध
  2. बाँध का निर्माण
  3. वनीकरण (वृक्षारोपण) जलग्रहण क्षेत्रों में जनसंख्या-जमाव पर नियंत्रण
  4. नदियों के मार्ग में स्थान-स्थान पर जल एकत्र करने की सुविधा जिससे अचानक बाढ़ आने से रोका जा सके तथा संचित जल का सिंचाई में या अन्य उपयोग हो सके।
  5. सूचना-तंत्र को सुदृढ़ करना।

सूखे का जन-जीवन पर निम्नांकित कई प्रकार से दुष्परिणाम पड़ता है-

  • फसलों के सूखने से उत्पादन कम होता है और खाद्य समस्या उत्पन्न हो जाती है। अधिकांश ग्रामीण की जीविका फसलों पर हो निर्भर करती है। फसलों के सूखने से उन्हें सबसे अधिक कष्ट होता है और भूखे मरने की स्थिति आ जाती है। फसलों के सूखने से राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक हानि होती है। इसे अकाल कहते हैं।
  • फसलों के सूखने पर मवेशियों के लिए चारा उपलब्ध नहीं हो पाता है। इसे तृण-अकाल कहते हैं।
  • वर्षा कम होने या अनावृष्टि होने, अर्थात सूखा पड़ने से जल की उपलब्धता एक समस्या बन जाए, यहाँ तक कि पेयजल की भी आपूर्ति नहीं हो, जो इसे जल-अकाल कहते हैं।
  • यदि उपर्युक्त तीनों परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाएं तो त्रि-अकाल या महाअकाल उत्पन्न होता है, जो विध्वंसक होता है।
  • सूखा-प्रभावित क्षेत्रों में मानव-प्रसास, पशुपालयन और मवेशियों की मौत एक सामान्य – घटना है।
  • जल कमी से उपलब्ध जल भी प्रायः दूषित होता है। सफाई की.कमी से और दूषित जल से पीने से प्रायः आंत्रशोथ, हैजा, पीलिया रोग (जौण्डिस), हेपेटाइटिस और इसी तरह की कई बीमारियां फैल जाती हैं और महामारी का रूप ले लेती है।

सूखे से बचाव के उपाय-
कुछ आवश्यक कदम उठाने से सूखे के प्रभाव को कम किया जा सकता है। जैसे-

1. तात्कालिक या अल्पकालिक योजनाएँ राष्ट्रीय या राज्य स्तर की योजनाएं बनाते समय सूखाग्रस्त क्षेत्रों की समस्याओं को ध्यान में रखना चाहिए। आवश्यक होने पर निम्न उपाय करना चाहिए-

(क) पेयजल का सरक्षित भंडारण एवं वितरण की समुचित व्यवस्था रहनी चाहिए।
(ख) जल-संबंधी बीमारियों के लिए आवश्यक दवाओं और अन्य चिकित्सीय सहायता का ‘प्रबंध होना चाहिए।
(ग) पशुओं के चारे का भंडार होना चाहिए जिससे आवश्यकता पड़ने पर आसानी से वितरित किया जा सके।
(घ) अधिक कठिन परिस्थिति में मवेशियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का प्रबंध होना चाहिए, जहाँ सचित जल उपलब्ध हो सके।
(ङ) आपदा प्रबंधन के अधीन अनाज का एक विशेष कोष रहना चाहिए, जिससे खाद्य-समस्या से लोगों को मुक्ति मिल सके।

2. दीर्घकालीन योजनाएँ-राष्ट्रीय स्तर पर कुछ योजना र दीर्घकालीन समस्या की दृष्टि में रखकर बनानी चाहिए; जैसे-

(क) भूमिगत जल के भंडार का पता लगाया जाना चाहिए। इस जल को नलकूपों द्वारा खींचकर सिंचाई या पीने के लिए उपयोग किया जा सकता है।
(ख) जल-प्रचुर क्षेत्रों से जल अभाव वाले क्षेत्रों में पहुंचाने के लिए नहर या पाईप लाइन का प्रबंध रहना चाहिए।
(ग) उपग्रहों की सहायता से भूमिगत जल की संभावना का पता लगाना चाहिए।
(घ) सड़कों के किनारों पर और खाली जमीन पर पर्याप्त वनरोपण को प्रोत्साहित करना जिससे हरियाली में वृद्धि हो और वर्षा की संभावना बढ़ सके।
(ङ) नदियों को परस्पर जोड़ना जिससे अधिक जल को ऐसे क्षेत्र में भेजा जा सके जहाँ इसकी आवश्यकता है। इससे बाढ़ और सुखाड़ दोनों को कम किया जा सकता है। भारत में चूंकि उतर भारत में बाढ़ आती है तो दक्षिण में जल का अभाव रहता है और दक्षिण में जब जाड़े में वर्षा होती है तो उत्तरी भाग में वर्षा नहीं होती। अतः नदियों को जोड़ने से पूरे देश की समस्या दूर की जा सकती है। हिमालय की सदानीरा नदियों का जल मध्य, पश्चिमी और दक्षिण क्षेत्र में सिंचाई के लिए सालोंभर उपलब्ध हो सकता है।




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