अध्याय की मुख्य बातें : शहरीकरण का अर्थ है किसी गाँव के शहर या कस्बे के रूप में विकसित होने की प्रक्रिया । गाँव और शहर के बीच काफी भिन्नताएँ है । गाँव की आबादी कम होती है और नगर की ज्यादा । समाजशास्त्री के अनुसार नगरीय जीवन तथा आधुनिकता एक दूसरे के पूरक है । शहर व्यक्ति को सन्तुष्ट करने के लिए अंतहीन संभावनाएँ प्रदान करता है । आधुनिक काल से पूर्व व्यापार एवं धर्म शहरों की स्थापना के महत्त्वपूर्ण आधार थे । शहरीकरण की प्रक्रिया बहुत लम्बी रही है लेकिन आधुनिक शहर के उदय का इतिहास लगभग दो सौ वर्ष पुराना है । तीन ऐतिहासकि प्रक्रियाओं ने आधुनिक शहरों की स्थापना में निर्णायक भूमिका निभाई । पहला , औद्योगिक पूंजीवाद का उदय , दूसरा विश्व के विशाल भूभाग पर औपनिवेशिक शासन की स्थापना और तीसरा लोकतांत्रिक आदर्शों का विकास ।
आर्थिक तथा प्रशासनिक संदर्भ में ग्रामीण तथा नगरीय व्यवस्था के दो मुख्य आधार है । जनसंख्या का घनत्व तथा कृषि आधारित आर्थिक क्रियाओं का अनुपात । अतः शहरों तथा नगरों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है । अधिकांश वस्तुएँ कृषि उत्पाद ही होती है जो आय का प्रमुख सोत होता है । अत कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था मूलतः जीवन निर्वाह अर्थव्यवस्था की अवधारणा पर आधारित थी । आधुनिक काल में औद्योगीकरण ने शहरीकरण के स्वरूप को गहन रूप से प्रभावित किया तथा औद्योगिक क्रांति की शुरुआत होने के कई दशक बाद तक भी अधिकतर पश्चिमी शहर मोटे तौर पर ग्रामीण किस्म के शहर ही थे । अठारहवीं शताब्दी में राजनीतिक तथा व्यापारिक पुनर्गठन के साथ पुराने नगर पतोन्मुख हुए और नये नगरों का विकास होने लगा । बहुत सारे शहरों में खैराती संस्थाओं और स्थानीय शासन की ओर से जाड़ों में रैन बसेरे और अजनबी घरों की व्यवस्था की जाती थी । गरीब व्यक्ति इन स्थानों पर बड़ी संख्या में एकत्रित होते थे ।
विश्वयुद्धों के दौरान 1919–39 में मजदूर वर्ग के लिए आवास का इन्तजाम कर्ने का उत्तरदायित्व ब्रिटिश राज्य ने लिया और स्थानीय शासन के द्वारा 10 लाख मकान बनाये गये , जो छोटे परिवारों को ध्यान में रखते हुए निर्मित हुए।शहरों के उद्भव ने मध्यम वर्ग को भी शक्तिशाली बनाया । एक नये शिक्षित वर्ग का अभ्युदये जहाँ विभिन्न देशों में रहकर भी औसतनु एक समान आय प्राप्त करने वाले वर्ग के रूप में उभर कर आए एवं बुद्धिजीवी वर्ग के रूप में स्वीकार किये गये । आधुनिक शहरों में जहाँ एक ओर पूँजीपति वर्ग का अभ्युदय हुआ तो दूसरी ओर अमिक वर्ग । सामंती व्यवस्था के अनुरूप विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग के द्वारा सर्वहारा वर्ग का शोषण प्रारंभ हुआ जिसके परिणामस्वरूप शहरों में दो परस्पर विरोधी वर्ग उभर कर आये । श्रमिक वर्ग ने अपने हितों की सुरक्षा के लिए श्रमिक संघ कायम किये । बाद में संसद् के द्वारा कुछ फैक्टरी नियम बनाये गये । इंग्लैंड में 1825 में सरकार को मजदूरों के वेतन बढ़ाने तथा काम के घंटे कम करवाने के लिए तथा संगठित ढंग से काम करने का अधिकार स्वीकार करना पड़ा ।
हमारे राज्य में पटना नगर का विकास शहरीकरण की इस प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है । प्राचीनकाल में पाटलीपुत्र नामक विख्यात यह एक महानगर था जिसकी तुलना विश्व के समकालीन सुप्रसिद्ध नगरौं से की जाती थी । इसकी स्थापना छठी शताब्दी ई ० पू ० में मगध के शासक अजातशत्रु के द्वारा एक सैनिक शिविर के रूप में की गई थी । कालान्तर में यह मगध साम्राज्य की राजधानी बना । मौर्य शासनकाल के कंधार से कर्नाटक तक विस्तृत साम्राज्य की राजधानी इसी पाटलीपुत्र नगर का गौरव बना रहा ।
शहरीकरण की प्रक्रिया बहुत लम्बी रही है । ग्रामीण एवं सामंती व्यवस्था से हटकर कृषि व्यवस्था से आगे बढ़ते हुए एक नई आर्थिक व्यवस्था लागू हुई जिसने व्यपार , वाणिज्य उद्योग के विकास पर बल दिया । शहरों के इस विकासक्रम से लोगों की नई चेतना प्रदान की और सुविधाएँ दी , तो दूसरी ओर नई समस्याओं को भी जन्म दिया जिनके निदान की आवश्यकता आज है । एक संतुलित सामाजिक व्यवस्था का निर्माण आधुनिकीकरण के साथ उन आदर्शों के संश्लेषण के साथ ही संभव है , जिन्हें हम . शहरी व्यस्तता के अन्तर्गत छोड़ते जा रहे है ।