औद्योगिक पूँजीवाद का उदय, विश्व के विशाल भूभाग पर औपनिवेशिक शासन की स्थापना एवं लोकतांत्रिक आदर्शों का विकास। यही तीन प्रक्रियाएँ हैं जिसने आधुनिक शहरों की स्थापना में निर्णायक भूमिका निभाई।
ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में समाज का वर्गीकरण निम्न आधारों पर किया जाता है – (i) आर्थिक तथा (ii) प्रशासनिक संदर्भ।
(i) जनसंख्या का घनत्व तथा (ii) कृषि आधारित क्रियाओं का अनुपात।
गाँवों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कृषि-संबंधी व्यवसाय से जुड़ा ह अधिकांश वस्तुएँ कृषि उत्पाद ही होती हैं जो इनकी आय का प्रमुख स्रोत होता है। आय का प्रमुख स्रोत होता होता है।
शहर राजनीतिक प्राधिकार का केन्द्र होता है जहाँ दस्तकार, व्यापारी और अधिकारी बसने लगते हैं।
परिवर्तन प्रकृति का अटूट नियम है। समय के साथ आ रहे बदलावों को हम आधुनिकता की श्रेणी में रखते हैं। यह परिवर्तन हमारे वेशभूषा, जीवन स्तर इत्यादि में आता है जो सर्वप्रथम शहरी क्षेत्रों में ही परिलक्षित होता है। आधुनिक संचार सुविधाएँ, आधुनिक घरेलू उपयोगी पदार्थों, नई-नई डिजाइनों वाले वेशभूषा इत्यादि, सर्वप्रथम नगरीय जीवन में ही दिखाई देता है क्योंकि उन्हें अपनाने के लिए वहाँ आवश्यक संसाधन एवं माध्यम उपलब्ध है।
किसी भी नगर में विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग अल्पसंख्यक होता है। ऐसी मान्यता का मुख्य कारण है पूँजी का असमान वितरण। पूँजी कुछ मुट्ठी पर लोगों के पास ही सीमित होती है जिसे पूँजीपति वर्ग कहते हैं और अपनी पूँजी के बल पर वह हर कार्यक्षेत्र में विशेष रूप से सफलता प्राप्त कर लेता है
नागरिक अधिकारों के प्रति एक नई चेतना का विकास मुख्यतः आर्थिक एवं राजनैतिक प्रयास से हुआ, क्योंकि लोगों को अपनी आर्थिक स्थिति को उन्नत करने के लिए राजनैतिक अधिकारों को जानना जरूरी हो गया।
व्यावसायिक पूँजीवाद ने नगरों के उद्भव में काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया क्योंकि इनके कारण ही नगरों में शिक्षा, यातायात, स्वास्थ्य सुविधाएँ आदि का विकास हुआ। व्यापार एवं धर्म शहरों की स्थापना के मुख्य आधार थे। व्यावसायिक पूँजीवाद के कारण अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होती गयी जिससे नगरों के उद्भव को बल मिला।
मध्यम वर्ग एक नए शिक्षित वर्ग के रूप में उभरा, जो विभिन्न पेशों में रहकर भी औसतन एक समान आय प्राप्त करने वाले वर्ग के रूप में उभर कर आया एवं बुद्धिजीवी वर्ग के रूप में स्वीकार किए गए। यह विभिन्न रूप में कार्यरत रहे जैसे शिक्षक, वकील, चिकित्सक, इंजीनियर, क्लर्क, एकाउंटेंट्स परन्तु इनके जीवन मूल्य के आदर्श समान रहे और आर्थिक स्थिति भी एक वेतनभोगी वर्ग के रूप में उभर कर आई।
शहरों में फैक्टरी प्रणाली की स्थापना के कारण ग्रामीण क्षेत्रों का भूमिविहीन कृषक वर्ग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने लगा।
शहरों ने निम्नलिखित नई समस्याओं को जन्म दिया
- आवास की समस्या,
- जलापूर्ति की समस्या,
- प्रदूषण की समस्या।