एक औपनिवेशिक शहर के रूप में बम्बई शहर के विकास की समीक्षा करें।


बम्बई औपनिवेशिक भारत की वाणिज्यिक राजधानी थी। एक प्रमुख बंदरगाह होने के नाते यह अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र था जहाँ से कपास और अफीम जैसे कच्चे माल बड़ी तादाद में रवाना किए जाते थे। इस व्यापार के कारण न सिर्फ व्यापारी और महाजन बल्कि कारीगर एवं दुकानदार भी बम्बई में बसे। कपड़ा मिलें खुलने पर और अधिक संख्या में लोग इस शहर की ओर उन्मुख हुए। 1954 ई. में पहली कपड़ा मिल स्थापित हुई और 1921 ई. तक वहाँ 85 कपड़ा मिलें खुल चुकी थीं जिनमें लगभग 1,46,000 मजदूर काम कर रहे थे। 1931 तक लगभग एक चौथाई ही बम्बई के निवासी थे बाकी निवासी बाहर से आकर बसे थे। बम्बई का प्रति व्यक्ति क्षेत्रफल केवल 9.5 वर्ग गज था। वहाँ प्रति मकान में 20 व्यक्ति रहते थे।

मुम्बई का विकास सुनियोजित तरीके से नहीं हो सका। बल्कि 1800 के आसपास बम्बई फोर्ट एरिया का केन्द्र था और दो हिस्सों में बंटा हुआ था। एक हिस्से में ‘नेटिव’ रहते थे और दूसरे में यूरोपीय या ‘गोरे’ रहते थे। कोर्ट आबादी उत्तर में एक यूरोपीय उपनगर और औद्योगिक पट्टी में भी विकसित होने लगी थी। दक्षिण में इसी तरह की उपनगरीय आबादी और एक छावनी थी। यह नस्ली विभाजन अन्य प्रेसीडेंसी शहरों में भी रही।

19वीं शताब्दी के मध्य तक व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए और अधिक जमीन की जरूरत महसूस हुई तो सरकार और निजी कम्पनियों के द्वारा नयी योजनाएँ बनाई गईं। 1864 में मालाबार हिल से कोलबा के आखिरी छोर तक के पश्चिमी तट को विकसित करने का ठेका बैंक बेरिक्लेमेशन कम्पनी को मिला। 20वीं शताब्दी के आने तक जिस प्रकार आबादी तेजी से बढ़ी अधिक-से-अधिक जमीन को घेर लिया गया और समुद्री जमीन को विकसित किया जाने लगा।