भारतीय अर्थव्यवस्था की मूल जड़ें काफी गहरी हैं । आजादी से पहले भारत अंग्रेजों का गुलाम था । अंग्रेजों ने अपने शासन में भारत का भरपूर शोषण किया । अत : आजादी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था का सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक , सांस्कृतिक पुनरुत्थान कर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना एक चुनौती थी ।
भारतीय व्यवस्था – अंग्रेजों ने ” फूट डालो और शासन करो ” नीति के तहत भारत को अपना दास बनाकर रखा । ब्रिटिश शासन के पूर्व कृषि प्रधान होने के बावजूद उद्योग , व्यापार , यातायात , आधारभूत संरचना में भारत की स्थिति अच्छी थी लेकिन ब्रिटिश शासन काल में दमनकारी नीतियों के कारण भारत की स्थिति जर्जर हो गयी थी । प्रति व्यक्ति आय की स्थिरता , कृषि पर बढ़ती निर्भरता , हस्तशिल्प उद्योगों का पतन भारतीय अर्थव्यवस्था के पतन का परिणाम थी ।
अर्थव्यवस्था – हमारी वे सभी क्रियाएँ जिनसे हमें आय प्राप्त होती है , आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं । अर्थव्यवस्था एक ऐसा तंत्र है जिसके अंतर्गत आर्थिक क्रियाएँ एक ओर तो विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ एवं सेवाओं का संपादन करती हैं तो दूसरी ओर लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करती है ताकि वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय कर सकें । अत : अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से दो प्रकार का कार्य करती है ।
( i ) लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करना ।
(ii) रोजगार प्रदान करना । अत : बिहार की अर्थव्यवस्था का अर्थ बिहार की संपूर्ण आर्थिक क्रियाओं के अध्ययन से है जिसके अंतर्गत बिहारवासियों की मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए बिहार के संसाधनों का प्रयोग किया जाता है । आर्थिक क्रियाओं को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा जाता है
( i ) प्राथमिक क्षेत्र — इसके अंतर्गत कृषि , पशुपालन , मछली पालन , जंगलों से वस्तुएँ प्राप्त करना जैसे व्यवसाय आते हैं ।
( ii ) द्वितीयक क्षेत्र – इसे औद्योगिक क्षेत्र भी कहा जाता है । इसके अंतर्गत खनिज व्यवसाय , निर्माण कार्य , जनोपयोगी सेवाएँ आदि आते हैं
( iii ) तृतीयक क्षेत्र – इसे सेवा क्षेत्र कहते हैं । इसके अंतर्गत बैंक एवं बीमा क्षेत्र , परिवहन , संचार एवं व्यापार आदि क्रियाएँ आती हैं । ये क्रियाएँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रों को सहायता . प्रदान करते हैं । राष्ट्रीय आय में इन तीनों क्षेत्रों का योगदान है । अर्थव्यवस्था तीन प्रकार की होती हैं –
( i ) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था — वैसी अर्थव्यवस्था जहाँ उत्पादन के साधनों का स्वामित्व निजी व्यक्तियों के हाथों में होता है , पूँजीवादी अर्थव्यवस्था कहलाती है । जैसे — अमेरिका , जापान आदि ।
( ii ) समाजवादी अर्थव्यवस्था — वैसी अर्थव्यवस्था जहाँ उत्पादन के साधनों का स्वामित्व देश की सरकार के पास होता है , समाजवादी अर्थव्यवस्था कहलाती है । जैसे – रूस , चीन
( iii ) मिश्रित अर्थव्यवस्था वैसी अर्थव्यवस्था जहाँ उत्पादनों के साधनों पर सरकार तथा निजी व्यक्तियों के पास है , मिश्रित अर्थव्यवस्था कहलाती है । जैसे — भारत । भारत में अर्थव्यवस्था के विकास की अपनी कहानी है ।
अर्थव्यवस्था का विकास मुख्यतः दो भागों में विभाजित है ।
आर्थिक विकास – आर्थिक विकास आवश्यक रूप से परिवर्तन की क्रिया है । इसके कारण प्रति व्यक्ति की आय बदलती है । आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों में उत्पादकता का ऊँचा स्तर प्राप्त करना होता है । आर्थिक नियोजन का अर्थ एक समयबद्ध कार्यक्रम के अंतर्गत पूर्व निर्धारित सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अर्थव्यवस्था में उपलब्ध संसाधनों को नियोजित समन्वय एवं उपयोग करता है ।
भारत में नियोजन का उद्देश्य आर्थिक विकास की दर को बढ़ाना , कृषि एवं उद्योगों का आधुनिकीकरण करना , आत्मनिर्भरता को प्राप्त करना तथा सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना है ।
मौद्रिक विकास — जब मुद्रा का विकास नहीं हुआ था तो लोग वस्तु से वस्तु का लेन – देन कुर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे । इस अवस्था को वस्तु विनिमय की प्रणाली कहते हैं । लेकिन बाद में जब मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ने लगी तो मुद्रा का विकास हुआ । फिर बैंकों का निर्माण हुआ जिससे मुद्रा का हस्तांतरण किया जाने लगा । आज मानव मस्तिष्क का सारा कार्य एक मशीन करती है जिसे हम कम्प्यूटर कहते हैं । पैसे के लेन – देन में कोर बैकिंग प्रणाली का प्रयोग होता है । एटीएम ( ATM ) के अलावे हमें आज डेबिट कार्ड तथा क्रेडिट कार्ड की भी सुविधा भी प्राप्त है । हम अपने आर्थिक विकास को मापने के लिए कई प्रकार के सूचकांकों का उपयोग करते हैं जैसे राष्ट्रीय आय , प्रति व्यक्ति आय , मानव विकास सूचकांक इत्यादि ।
निर्धनता की स्थिति को जानने के लिए मानव निर्धनता सूचकांक से काफी मिलता – जुलता है । उपभोक्ता व्यय को आर्थिक विकास का सूचक मानते हुए राष्ट्रीय मानव विकास रिपोर्ट में बताया गया कि विगत कुछ वर्षों में देश की ग्रामीण जनता की व्यय क्षमता में कमी आई है जबकि शहरी क्षेत्रों में इसमें काफी वृद्धि हुई है ।
साधनों के मामले में धनी होते हुए भी बिहार की स्थिति दयनीय है । बिहार के पिछड़ेपन के कई कारण हैं जैसे — तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या , आधारित संरचना का अभाव , कृषि पर निर्भरता , बाढ़ से सूखा क्षति , औद्योगिक पिछड़ापन , गरीबी , खराब विधि व्यवस्था , कुशल प्रशासन व्यवस्था का अभाव इत्यादिl
पूर्व राष्ट्रपति ए . पी . जे . अब्दुल कलाम ने कहा था ” बिहार के विकास के बगैर देश का विकास संभव नहीं है । ” बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने के निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं
( i ) राज्य की बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगाया जाए ।
( ii ) राज्य की आधारित संरचना अर्थात् सड़क , बिजली , सिंचाई का विकास किया जाए ।
( iii ) बिहार की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है । अत : इसका विकास आवश्यक है ।
( iv ) बिहार में बाढ़ तथा सूखे से हर साल क्षति होती है । 2008 में कोशी जल प्रलय इसका उदाहरण है । इसका समाधान आवश्यक है ।
( v ) बिहार में औद्योगिक विकास न के बराबर है । झारखंड के अलग होने से राज्य लगभग उद्योग विहिन हो गया है । अत : उद्योगों का पुनर्विकास आवश्यक हैl
( vi ) बिहार में 42 % से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे के हैं । इनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए रोजगार की व्यवस्था करनी चाहिए ।
( vii ) शांति का माहौल कायम कर व्यापारियों में विश्वास की भावना जगानी चाहिए जिससे आर्थिक विकास में वृद्धि होती है ।
( viii ) प्रशासन स्वच्छ , कुशल तथा ईमानदार होना चाहिए ।
( ix ) बिहार को विकास के लिए केन्द्र से अधिक मात्रा में संसाधनों को प्राप्त करने की आवश्यकता है ।
बिहार देश का एक ऐसा राज्य है जहाँ अत्यधिक उर्वर भूमि है । यहाँ दक्ष मानव संसाधनों की भी कमी नहीं है । देश के सूचना प्रौद्योगिकी में तथा पंजाब के कृषि विकास में बिहार के मानव संसाधनों का प्रमुख योगदान रहा है । अत : यहाँ के कर्मठ मानव संसाधन के योगदान से बिहार का विकास किया जा सकता है । देश के नागरिकों के रहने के लिए मकान , खाने के लिए रोटी तथा शरीर ढंकने के लिए कपड़ा उनकी न्यूनतम मूलभूत आवश्यकता है । विकास की अवधारणा आवश्यकता के पश्चात् ही शुरू होती है । समुचित न्यायपूर्ण सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लोगों को खाने के लिए रोटी उपलब्ध हो सकती है । यह योजना राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम शुरू की गई है । इसे विश्व का सबसे बड़ा रोजगार योजना माना जाता है । इस प्रकार के विकास से हम लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति होती है ।