प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन: भूकंप एवं सुनामी


  • पृथ्वी के अन्दर प्लेटों की हलचल या अन्य भूगर्भीय क्रियाओं के कारण पृथ्वी की सतह पर जब कंपन होता है, तो उसे भूकंप कहते हैं।
  •  हिमालय की तराई को पूरा भाग और पश्चिमी भाग भूकंप के सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र हैं।
  • भूकंप की तीव्रता मापने की इकाई ‘रिक्टर पैमाना’ है।
  • 7 या इससे अधिक रियक्टर के भूकंप अत्यधिक विनाशकारी होते हैं।
  • पृथ्वी के अन्दर के तरंगों को ‘रैले तरंगें’ और सतह के पास की तरंगों को ‘लव तरंगें’ कहते हैं। ये नाम वैज्ञानिकों के नाम के आधार पर रखे गए हैं।
  • सुनामी जापानी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘भयंकर समुद्री दैत्य’।
  • समुद्र की पेंदी के पास भूकंप होने से सुनामी लहरें उत्पन्न होती हैं। किनारे आने पर ये विकराल रूप धारण कर लेती है।
  • भारत का दक्षिण-पूर्वी तट और द्वीप समूह सुनामी से अधिक प्रभावित होते हैं।
  • भूकंप संवेदनशीलता के आधार पर क्षेत्रों का वर्गीकरण-
  • जापान में भूकंप आना प्रायः सामान्य बात है।

भारत की राष्ट्रीय भूभौतिकी प्रयोगशाला, भूगर्भीय सर्वेक्षण, भारतीय मौसम विभाग और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के विगत लगभग 1,200 भूकंपों का गहन विश्लेषण कर इसे निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया है-

  • अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र कच्छ, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल के तराई क्षेत्र, संपूर्ण पूर्वोत्तर राज्या
  • अतिसंवेदनशील पूर्वोत्तर गुजरात, जम्मू-कश्मीर का तराई का भाग, हिमालय प्रदेश, . पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी महाराष्ट्र और उड़ीसा का पूर्वोत्तर कोना।
  • मध्यम संवेदनशील क्षेत्र देश का पश्चिमी क्षेत्र, सतपुरा, विंध्याचल के साथ लगी मध्य पेटी, मैदानी भाग का मध्य भाग एवं कुछ पूर्वी तटीय क्षेत्र।
  • निम्न संवेदनशील क्षेत्र मध्यम संवेदनशील क्षेत्रों से सटी हुई भीतरी पट्टी।
  • न्यनतम संवेदनशील क्षेत्र कर्नाटक, पूर्वी महाराष्ट्र, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के . पश्चिमी भाग, राजस्थान का पूर्वी भाग। राजस्थान का पूर्वी भाग।

भूकंप के विभिन्न प्रभाव
(क) भूतल पर दरारें पड़ना, भूस्खलन; जमीन के भीतर से पानी निकल जाना; भू-दबाव एवं अन्य संभावित श्रृंखला प्रतिक्रियाएँ।
(ख) मानव निर्मित कृतियों पर दरारें पड़ना, उलट जाना, आकुंचन, निपात, धन, जन , और निर्माणों की हानि एवं अन्य संभावित शृंखला प्रतिक्रियाएँ।
(ग) जल पर लहरें उत्पन्न होना, समुद्रों में सुनामी जैसी आपदा उत्पन्न होना एवं अन्य। संभावित श्रृंखला प्रतिक्रियाएँ।

भूकम्प की वैज्ञानिक व्याख्या-पृथ्वी के भीतर विभिन्न क्रियाओं के कारण भूकंप हो सकता है, जैसे-

  • ज्वालामुखी सक्रियता-भयानक ज्वालामुखी विस्फोटों से निकटवर्ती क्षेत्रों में भूकंप का अनुभव हो सकता है।
  • पृथ्वी का संकुचन-पृथ्वी के संकुचन से भीतरी भागों में दबाव बढ़ जाता है। जिससे चट्टानों में टूट-फूट की क्रिया होती है और इसका फल तल के ऊपर भूकंप के रूप में मिलता है।
  • पहाड़ों या ऊंचे स्थानों से जब कुछ भाग कटकर नीचे की ओर जमा होने लगता है तो इसके फलस्वरूप कहीं चट्टानें नीचे खिसकती हैं कहीं ऊपर। इस हलचल से भी भूकंप हो सकता है।
  • भ्रंशनकिसी कारण से चट्टानें जब टूटती है तो इधर-उधर खिसकने लगती हैं। इन भ्रंशित क्षेत्रों में इन चट्टानों का क्रम कभी भी बदल सकता है और ये क्षेत्र भूकंप के लिए संवेदनशील हो जाते हैं, जैसे भारत में कृष्णा नदी के तट के साथ लातूर की भ्रंशित रेखा।
  • प्रत्यास्थ्य प्रतिक्षेप-चट्टानों में लचीलापन होता है। दबाव बढ़ने पर ये कुछ सिकुड़ जाता हैं और कम होने पर पुनः फैल जाती हैं। परंतु इसकी भी एक सीमा होती है। इस प्रत्यास्थता सीमा से अधिक दबाव पड़ने पर ये टूट जाती हैं। इस क्रिया से भी भूकंप हो सकता है।
  • जल-रिसाव-गहरे समुद्र में यदि निचले तल में दरार हो तो उससे पानी रिसकर नीचे जाता है, जहाँ तापमान की अधिकता के कारण यह वाष्प बन जाता है, इससे 1200 गुने से भी . अधिक दबाव उत्पन्न होता है और इससे पृथ्वी की सतह में कंपन उत्पन्न होता है। …..
  • पृथ्वी की प्लेटों के बीच पारस्परिक क्रिया-पृथ्वी के प्लेटें खिसकते समय दूसरी अन्य प्लेटों को धक्का देती है या उनके बीच घर्षण होता है अथवा वे एक-दूसरे से दूर हटती हैं। इन परिस्थितियों में में भी कंपन से भूकंप होता है।
  • अन्य कारण-भूस्खलन, समुद्री तटों पर मिट्टी टूटकर नीचे गिरना, चूना प्रदेशों की कंदराओं की छतों का बह जाना, बर्फीला अवधान या हिमपिंडों के खिसकने से स्थानीय भूकंप हो सकते हैं।




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