आज दुनिया के लगभग 100 देशों में लोकतंत्र किसी – न – किसी रूप में विद्यमान है । लोकतंत्र का विस्तार एवं उसे मिलनेवाला जनसमर्थन यह बताता है कि लोकतंत्र अन्य सभी शासन व्यवस्थाओं से बेहतर है । इस व्यवस्था में नागरिकों को मिलने वाला समान अवसर , स्वतंत्रता एवं गरिमा इसकी लोकप्रियता कारण हैं । इसमें आपसी टकराव को कम करने और गुण – दोष के आधार पर सुधार की संभावनाएँ इसे जनता के बीच लोकप्रिय बनाती हैं । लोकतंत्र में फैसले किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं बल्कि सामूहिक सहमति से लिए जाते हैं । यह इसकी विशेषता है ।
इन सारी विशेषताओं के कारण लोगों की उम्मीदें इतनी ज्यादा हो जाती हैं कि इसकी थोड़ी – सी कमजोरी भी खलने लगती है । इस तरह लोगों का अतिवादी दृष्टिकोण लोगों में इसके प्रति उपेक्षा पैदा करता है । आजादी के पश्चात् विगत 60 वर्षों से इतिहास में भ्रष्टाचारी राजनीतिज्ञों के कारनामों की कमी नहीं है । लेकिन इन तमाम कमजोरियों के बाद भी हमारा लोकतंत्र पश्चिम के लोकतंत्र से बेहतर है जो विकास की ओर अग्रसर है । अतः हमें लोकतंत्र को एक सर्वोत्तम शासन व्यवस्था के रूप में देखना चाहिए । लोकतंत्र में लोग चुनावों में भाग लेते हैं , अपने प्रतिनिधियों को चुनने का कार्य करते हैं । आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से मजबूत लोगों का दबदबा होने के बावजूद जनता में जागरूकता की संभावना बनी रहती है । शिक्षा के व्यापक प्रचार – प्रसार के कारण आज लोग अपने मतों की अहमियत को समझने लगते हैं । पहले अभिवचित वर्ग के लोगों को कभी समाज के श्रेष्ठजनों द्वार मुताधिकार से वंचित किया जाता था , लेकिन आज वे अपने मताधिकार का प्रयोग खुलकर करते हैं । जनता सरकार के कार्यों में भी हस्तक्षेप करती है । अत : सरकार को जनता के प्रति उत्तरदायी बनना पड़ता है क्योंकि उसे जनता द्वारा नकारने का खतरा बना रहता है ।
लोकतंत्र में फैसलों को विधायिकाओं की लंबी प्रक्रियाओं से में विलंब होता है । दूसरी तरफ गैर – लोकतांत्रिक व्यवस्था में फैसलों को लंबी विधायी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है । अत : फैसलों नहीं गुजरना पड़ता है । अतः गैर लोकतांत्रिक व्यवस्था में फैसले शीघ्र एवं प्रभावी ढंग से लिए जाते हैं । लेकिन गैरलोकतांत्रिक व्यवस्था के फैसलों में नक्तिगत पूर्वाग्रहों की अधिकता रहती है जो जनकल्याण की दृष्टि से सही नहीं होती है , इसके विपरीत लोकतांत्रिक व्यवस्था में मार्गदर्शिता एवं संतोष का भाव प्रलक्षित होता है तथा जनता को यह जानने का हुक होता है कि फैसले कैसे एवं किस प्रकार लिए जाते हैं । सरकार अगर कोई कानून बनाती है तो उस पर जनप्रतिनिधियों के साथ – साथ आम जनता के बीच भी खुलकर चर्चाएँ होती हैं । लोकतांत्रिक व्यवस्था वैद्य एवं जनता के प्रति उत्तरदायी होती है । लोकतांत्रिक व्यवस्था नागरिकों को शांतिपूर्ण जीवन जीने में सहायक होती है । लोकतंत्र विभिन्न जातियों के बीच की प्रांतियों को पूरा करने में सहायक होता है । अपने देश में टकरावों एवं सांप्रदायिक उन्मादों को व्यापक स्तर पर रोकने में लोकतंत्र सहायक हुआ है । ऐसे मतभेदों के बने रहने की कई वजहें होती हैं । इनके बीच टकराव तक होता है , जब इनकी अनदेखी की जाती है । उदाहरण के लिए नेपाल में जनता की आकांक्षाओं की अनदेखी की गई एवं राजपरिवार के इशारे पर दमन चक्र चलाया गया लेकिन अंतत : जनता की ही जीत हुई । नागरिकों को गरिमा एवं उनकी आजादी की दृष्टि से भी लोकतंत्र सर्वोत्तम है , अर्थात् अपनी बातों को निर्भीकता से रखने एवं दूसरों की बातों को गंभीरता से सुनने की आजादी है । किसी दूसरी व्यवस्था में इस तरह की आजादी नहीं है । भारत में लोकतंत्र को कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है , अतः इसकी गति धीमी है ।
पहले जनता शासन – व्यवस्था में अपने आपको भागीदार नहीं मानती थी । वह भावनाओं में बहकर अपने वोट देती थी । धनाढ्य एवं दबंग उम्मीदवार जनता के मतों को खरीदने की ताकत रखते थे । लेकिन आज जनता अपने मतों की ताकत को समझती है । वर्ष 2009 के चुनावों में जनता ने आपराधिक छवि के उम्मीदवारों को खारीज कर दियाl
अर्थात् किसी तानाशाह के कार्यों का मूल्यांकन जनता भय के कारण कर नहीं पाती जबकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ता में बैठे लोगों के कामकाज का मूल्यांकन जनता हर रोज करती है । भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए जनता का शिक्षित होना आवश्यक है । शिक्षा उनके अंदर जागरूकता पैदा करती है । लोकतांत्रिक सरकारें बहुमत के आधार पर बनती हैं लेकिन यहाँ अल्पमत की आकांक्षाओं पर ध्यान देना भी आवश्यक होता है । लोकतंत्र की सफलताओं के लिए यह आवश्यक है कि सबों को अवसर मिले , लोकतांत्रिक संस्थाओं के अंदर लोकतंत्र हो , सार्वजनिक मुद्दों पर बहस हो लेकिन भारतवर्ष में राजनीतिक दलों में लोकतंत्र की स्वस्थ परंपरा का अभाव है । लेकिन हम इन कमियों को अपनी सक्रिय भागीदारी तथा लोकतंत्र में विश्वास से पूरा कर सकते है ।