प्रथम विश्वयुद्ध औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप उत्पन्न औपनिवेशिक व्यवस्था, भारत सहित अन्य एशियाई एवं अफ्रीकी देशों में उसकी स्थापना और उसे सुरक्षित रखने के प्रयासों के क्रम में लड़ा गया। ब्रिटेन के सभी उपनिवेशों में भारत सबसे महत्वपूर्ण था और इसे प्रथम महायुद्ध के अस्थिर माहौल में भी हर हाल में सुरक्षित रखना उसकी पहली प्राथमिकता थी। युद्ध आरंभ होते ही ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि भारत में ब्रिटिश शासन का लक्ष्य यहाँ क्रमशः एक जिम्मेवार सरकार की स्थापना करना है। 1916 में सरकार ने भारत में आयात शुल्क लगाया ताकि भारत में कपड़ा उद्योग का विकास हो सके।
विश्वयुद्ध के समय भारत में होनेवाली तमाम घटनाएँ युद्ध से उत्पन्न परिस्थितियों की ही. देन थीं। इसने भारत में एक नई आर्थिक और राजनैतिक स्थिति पैदा की जिससे भारतीय ज्यादा परिपक्व हुए। युद्ध प्रारम्भ होने के साथ ही तिलक और गाँधी जैसे राष्ट्रीवादी नेताओं ने ब्रिटिश सरकार के युद्ध गगा में हर संभव सहयोग दिया क्योंकि उन्हें सरकार के स्वराज सम्बन्धी आश्वासन में भरोसा था। तत्कालीन राष्ट्रवादी नेताओं जिसमें तिलक भी शामिल थे ने सरकार पर स्वराज प्राप्ति के लिए दबाव बने के तहत 1915-17 के बीच एनी बेसेन्ट और तिलक ने आयरलैण्ड से प्रेरित होकर भारत में भी होमरूल लीग आन्दोलन प्रारंभ किया। युद्ध के इसी काल में क्रांतिकारी आन्दोलन का भी भारत और विदेशी धरती दोनों जगह पर यह विकास हुआ।
महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1921 ई. में पंजाब और तुर्की के साथ हुए अन्यायों का प्रतिकार और स्वराज्य की प्राप्ति के उद्देश्य से असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ हुआ जिसके कारण निम्नलिखित हैं
इस आन्दोलन के परिणाम निम्न हैं-
ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ गाँधीजी के नेतृत्व में 1930 ई. में छेड़ा गया सविनय अवज्ञा आंदोलन दूसरा जन-आंदोलन था, जिसके कारण निम्नलिखित हैं
19वीं शताब्दी के आरम्भ होते ही मजदूर वर्ग के विकास के साथ राष्ट्रवादी . बुद्धिजीवियों में एक नई प्रवृत्ति का आविर्भाव हुआ। अब इन्होंने मजदूर वर्ग के हितों की शक्तिशाली पूंजीपतियों से रक्षा के लिए कानून बनाने की बात करनी शुरू कर दी। 1903 ई. में सुब्रह्मण्य अय्यर ने मजदूर यूनियन के गठन की वकालत की। स्वदेशी आन्दोलन का प्रभाव भी मजदूर आन्दोलन पर पड़ा। यद्यपि इसका मुख्य प्रभाव क्षेत्र बंगाल.था. परंतु इसके संदेश पूरे भारत में फैल रहे थे।
अहमदाबाद गुजरात के एक महत्वपूर्ण औद्योगिक नगर के रूप में विकसित हो रहा था। 1917 में अहमदाबाद में प्लेग फैला, अधिकांश मजदूर भागने लगे। मिल मालिकों ने उन्हें रोकने के लिए साधारण मजदूरी का 50% बोनस देने की बात कही परंतु बाद में उन्होंने बोनस देने से मना कर दिया। इसका श्रमिकों ने विरोध किया। गांधी जी को जब अहमदाबाद के श्रमिकों की हड़ताल का पता चला तो उन्होंने अम्बाला साराभाई नामक एक परिचित.मिल-मालिक से बातचीत की और इस समस्या में हस्तक्षेप करने का निर्णय लिया। परन्तु बाद में मिल-मालिकों ने बात करने से मना कर दिया और मिल में तालाबन्दी की घोषणा कर दी। बाद में गांधी जी ने 50% की जगह 35% मजदूरी बढ़ोतरी की बात कहकर समझौता होने तक भूख हड़ताल पर रहने की बात कही। अंततः मिल-मालिकों ने गांधी जी के प्रस्ताव को मानकर मजदूरों के पक्ष में 35% वृद्धि का निर्णय दिया और मजदूर आन्दोलन सफल हुआ।
कुछ अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं जैसे सोवियत संघ की स्थापना, कुमिन्टन की स्थापना तथा अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना जैसी घटनाओं से भारतीय श्रमिक वर्ग में एक नयी चेतना’ का प्रसार हुआ फलस्वरूप 31 अक्तूबर, 1920 को एटक की स्थापना की गई।
1920 के पश्चात साम्यवादी आन्दोलन के उत्थान के फलस्वरूप मजदूर संघ आन्दोलनों में कुछ क्रान्तिकारी और सैनिक भावना आ गयी। 1928 में गिरनी कामगार यूनियन के नेतृत्व में बम्बई टेक्सटाइल मिल में 6 माह लम्बी हड़ताल का आयोजन किया गया। उग्रवादी प्रभावों के परिप्रेक्ष्य में मजदूर संघ आंदोलनों की बढ़ती क्रियाशीलता के कारण सरकार चिन्तित हो गयी तथा इन आन्दोलनों पर रोक लगाने के लिए वैधानिक कानूनों का सहारा लेने का प्रयास किया। इस संबंध में सरकार ने श्रमिक विवाद अधिनियम 1929 तथा नागरिक सुरक्षा अध्यादेश 1929 बनाए।
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनों में गांधी जी के योगदान की विवेचना कर सूर्य को दीपक दिखाने जैसा कार्य होगा। गाँधी जी के बिना राष्ट्रीय आन्दोलनों की चर्चा ही बेमानी है।
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद उत्पन्न परिस्थितियों ने राष्ट्रीय आन्दोलनों में गाँधीवादी चरण (1919-47) के लिए पृष्ठभूमि के निर्माण का कार्य किया। जनवरी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गाँधीजी ने रचनात्मक कार्यों के लिए अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की। चम्पारण एवं खेड़ा में कृषक आन्दोलन और अहमदाबाद में श्रमिक आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान कर गाँधीजी ने प्रभावशाली राजनेता के रूप में अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाई। प्रथम विश्वयुद्ध के अन्तिम दौर में इन्होंने कांग्रेस, होमरूल एवं मुस्लिम लीग के नेताओं के साथ भी घनिष्ठ संबंध स्थापित किया। ब्रिटिश सरकार की उत्पीड़नकारी नीतियों एवं रौलेट एक्ट के विरोध में इन्होंने ” सत्याग्रह की शुरूआत की।
नवम्बर 1919 में ही महात्मा गाँधी अखिल भारतीय खिलाफत आन्दोलन के अध्यक्ष बने। इसे गांधीजी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के महान अवसर के रूप में देखा।
सितम्बर 1920 के भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के कलकता अधिवेशन में गाँधी जी की प्रेरणा से अन्यायपूर्ण कार्यों के विरोध में दो प्रस्ताव पारित कर असहयोग आन्दोलन चलाने का निर्णय लिया, जो प्रथम जनान्दोलन बन गया।
ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ गाँधीजी के नेतृत्व में 1930 ई. में छेड़ा गया सविनय अवज्ञा आन्दोलन दूसरा ऐसा जन-आन्दोलन था जिसका सामाजिक आधार काफी विस्तृत था। इस आंदोलन की शुरूआत गाँधी जी ने 12 मार्च 1930 ई. को दांडी यात्रा से की। उन्होंने 24 दिनों में 250 कि. मी. की पदयात्रा के पश्चात् 5 अप्रैल को दांडी पहुँचे एवं 6 अप्रैल को समुद्र के ..पानी से नमक बनाकर ब्रिटिश कानून का उल्लंघन किया।
वामपंथी शब्द का प्रथम प्रयोग फ्रांसीसी क्रांति में हुआ था परन्तु कालांतर में समाजवाद .. या साम्यवाद के उत्थान के बाद यह शब्द उन्हीं का पयार्यवाची बन गया।
20वीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल में ही भारत में साम्यवादी विचारधाराएँ फैलनी शुरू हो – गई थीं और बम्बई, कलकता, कानपुर, लाहौर, मद्रास आदि जगहों पर साम्यवादी सभाएँ बननी शुरू हो गईं। उस समय इन विचारों से जुड़े लोगों में मुजफ्फर अहमद, एस. ए. डांगे, मोलवी – बरकतुल्ला गुलाम, हुसैन आदि के नाम प्रमुख थे। इन लोगों ने अपने पत्रों के माध्यम से साम्यवादी – विचारों का पोषण शुरू कर दिया था। परन्तु रूसी क्रांति की सफलता के बाद साम्यवादी विचारों
का तेजी से भारत में फैलाव शुरू हुआ। उसी समय 1920 में मानवेन्द्र नाथ राय ने ताशकंद में .. भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी की स्थापना की। लेकिन अभी भारत में लोग छिपकर काम कर रहे थे। फिर असहयोग आन्दोलन के दौरान पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से उन्हें अपने विचारों को फैलाने का अच्छा मौका मिला। साथ ही ये लोग आतंकवादी राष्ट्रीय आंदोलनों से भी जुड़ने लगे थे। इसलिए असहयोग आन्दोलन समाप्ति के बाद सरकार ने इन लोगों का दमन शुरू किया और पेशावर षड्यंत्र केस (1922-23), कानपुर षड्यंत्र केस (1924), मेरठ षड्यंत्र केस (1929-33) के तहत 8 लोगों पर मुकदमे चलाए।
तब साम्यवादियों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया और राष्ट्रवादी “साम्यवादी शहीद” कहे जाने लगे। इसी समय इन्हें काँग्रेसियों का समर्थन मिला क्योंकि सरकार द्वारा लाए गए “पब्लिक सेफ्टी बिल” को कांग्रेसियों पारित नहीं होने दिए थे। यह कानून कम्युनिष्टों के विरोध में था। इस तरह अब साम्यवादी आन्दोलन प्रतिष्ठित होता जा रहा था कि दिसम्बर 1925 में सत्यभक्त नामक व्यक्ति ने भारतीय कम्युनिष्ठ पार्टी की स्थापना कर डाली।
अब इंगलैंड के साम्यवादी दल ने भी भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी में दिलचस्पी लेना शुरू किया। धीरे-धीरे वामपंथ का प्रसार मजदूर संघों पर बढ़ रहा था। सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान साम्यवादियों ने अपनी चाल-चलनी शुरू की। उन्होंने काँग्रेस का विरोध शुरू किया, क्योंकि काँग्रेस उद्योगपतियों और जमींदारों का समर्थन कर रही थी, जो मजदूरों का शोषण करते थे। धीरे-धीरे काँग्रेस और. कम्युनिष्ट पार्टी का संबंध टूट गया। इसी के परिणामस्वरूप सुभाषचन्द्र बोस द्वारा फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना की गयी।
HYPER ERA PVT.LTD | TERMS & CONDITIONS