भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनों में गाँधी जी के योगदान की विवेचना करें।


भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनों में गांधी जी के योगदान की विवेचना कर सूर्य को दीपक दिखाने जैसा कार्य होगा। गाँधी जी के बिना राष्ट्रीय आन्दोलनों की चर्चा ही बेमानी है।

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद उत्पन्न परिस्थितियों ने राष्ट्रीय आन्दोलनों में गाँधीवादी चरण (1919-47) के लिए पृष्ठभूमि के निर्माण का कार्य किया। जनवरी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गाँधीजी ने रचनात्मक कार्यों के लिए अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की। चम्पारण एवं खेड़ा में कृषक आन्दोलन और अहमदाबाद में श्रमिक आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान कर गाँधीजी ने प्रभावशाली राजनेता के रूप में अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाई। प्रथम विश्वयुद्ध के अन्तिम दौर में इन्होंने कांग्रेस, होमरूल एवं मुस्लिम लीग के नेताओं के साथ भी घनिष्ठ संबंध स्थापित किया। ब्रिटिश सरकार की उत्पीड़नकारी नीतियों एवं रौलेट एक्ट के विरोध में इन्होंने ” सत्याग्रह की शुरूआत की।

नवम्बर 1919 में ही महात्मा गाँधी अखिल भारतीय खिलाफत आन्दोलन के अध्यक्ष बने। इसे गांधीजी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के महान अवसर के रूप में देखा।

सितम्बर 1920 के भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के कलकता अधिवेशन में गाँधी जी की प्रेरणा से अन्यायपूर्ण कार्यों के विरोध में दो प्रस्ताव पारित कर असहयोग आन्दोलन चलाने का निर्णय लिया, जो प्रथम जनान्दोलन बन गया।

ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ गाँधीजी के नेतृत्व में 1930 ई. में छेड़ा गया सविनय अवज्ञा आन्दोलन दूसरा ऐसा जन-आन्दोलन था जिसका सामाजिक आधार काफी विस्तृत था। इस आंदोलन की शुरूआत गाँधी जी ने 12 मार्च 1930 ई. को दांडी यात्रा से की। उन्होंने 24 दिनों में 250 कि. मी. की पदयात्रा के पश्चात् 5 अप्रैल को दांडी पहुँचे एवं 6 अप्रैल को समुद्र के ..पानी से नमक बनाकर ब्रिटिश कानून का उल्लंघन किया।