रूसी क्रांति के कारण निम्नलिखित हैं-
- जार की निरंकुशता-जार निकोलस II जिसके शासनकाल में क्रांति हुई, वह दैवी अधिकारों में विश्वास करता था। उसे आम लोगों की कोई चिन्ता नहीं थी। उसके द्वारा नियुक्त अफसरशाही व्यवस्था अस्थिर, जड़ और अकुशल थी। अतः जनता की स्थिति बद से बदतर होती गयी।
- कृषकों की दयनीय स्थिति कृषकों के पास पूँजी का अभाव था तथा वे करों के बोझ से दबे हुए थे। ऐसे में उनके पास क्रांति के सिवाय कोई चारा नहीं था।
- मजदूरों की दयनीय स्थिति मजदूरों को अधिक काम के बदले कम मजदूरी मिलती थी। उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता था, उन्हें कोई राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। वे अपने मांगों के समर्थन में हड़ताल भी नहीं कर सकते थे।
- औद्योगिकीकरण की समस्या-रूस में राष्ट्रीय पूँजी का अभाव था। यहाँ औद्योगिकीकरण के लिए विदेशी पूँजी पर निर्भरता थी। विदेशी पूँजीपति आर्थिक शोषण को बढ़ावा दे रहे थे। अतः । चारों ओर असंतोष था।
- रूसीकरण की नीति—जार निकोलस द्वितीय ने विभिन्नताओं का ख्याल न करते हुए देश के सभी लोगों पर रूसी भाषा, शिक्षा और संस्कृति को लादने का प्रयास किया, जिससे जनता में राजतंत्र के प्रति असंतोष बढ़ने लगा।
- विदेशी घटनाओं का प्रभाव क्रीमिया के युद्ध में रूस की पराजय ने आर्थिक सुधारों का युग आरम्भ किया। तत्पश्चात 1904-05 के रूस-जापान युद्ध ने रूस में प्रथम क्रांति और प्रथम विश्वयुद्ध ने बॉल्शेविक क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया।
मार्क्सवाद का प्रभाव तथा बुद्धिजीवियों का योगदान लियो टॉलस्टाय, दोस्तोवस्की, तुर्गनेव जैसे चिंतक वैचारिक क्रांति को प्रोत्साहन दे रहे थे, रूस के औद्योगिक मजदूरों पर कार्ल मार्क्स के समाजवादी विचारों का पूर्ण प्रभाव था। रूस का पहला साम्यवादी प्लेखानोव जारशाही का अंत कर साम्यवादी व्यवस्था की स्थापना चाहता था। उसने 1898 में रशियन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना की। 1903 में साधन एवं अनुशासन के मुद्दे पर पार्टी में फूट पड़ गयी। बहुमत वाला दल बोल्शेविक सर्वहारा क्रांति का पक्षधर था जबकि मेनशेविक मध्यवर्गीय क्रांति के पक्षधर थे। 1901 में सोशलिस्ट रिवोल्यूशनरी पार्टी का गठन हुआ जो किसानों की मांगों को उठाता था। इस प्रकार मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित मजदूर एवं किसानों के संगठन रूस की क्रांति का एक महान कारण साबित हुए।
प्रथम विश्व युद्ध में रूस की पराजय–रूसी सेनाओं की हार को ध्यान में रखते हुए जार ने सेना का कमान अपने हाथों में ले लिया जिससे उनके खिलाफ षड्यंत्र का मौका मिला और राजतंत्र की प्रतिष्ठा और भी गिर गई।