मुद्रण क्रांति ने आम लोगों की जिंदगी ही बदल दी। आम लोगों का जुड़ाव सूचना, ज्ञान, संस्था और सत्ता से नजदीकी स्तर पर हुआ। फलतः लोक चेतना एवं दृष्टि में बदलाव संभव हुआ।
मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप किताबें समाज के सभी तबकों तक पहुँच गईं। किताबों की पहुंच आसान होने से पढ़ने की नई संस्कृति विकसित हुई। एक नया पाठक वर्ग और तैयार हुआ चूंकि साक्षर ही पुस्तक को पढ़ सकते थे। अतः साक्षरता बढ़ाने हेतु पुस्तकों को रोचक तस्वीरों, लोकगीत और लोक कथाओं से सजाया जाने लगा। पहले जो लोग सुनकर ज्ञानार्जन करते थे अब पढ़कर भी कर सकते थे। इससे उनके अंदर तार्किक शक्ति का विकास हुआ।
पठन-पाठन से विचारों का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ तथा तर्कवाद और मानवतावाद का द्वारा खुला। स्थापित विचारों से असहमत होने वाले लोग भी अपने विचारों को फैला सकते थे।
मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप प्रगति और ज्ञानोदय का प्रकाश फैलने लगा। लोगों में निरंकुश सत्ता से लड़ने के लिए नैतिक साहस का संचार होने लगा था। वाद-विवाद की नई संस्कृति को जन्म दिया। पुराने परंपरागत मूल्यों, संस्थाओं और वायदों पर आम लोगों के बीच मूल्यांकन शुरू हो गया। धर्म और आस्था को तार्किकता की कसौटी पर कसने से मानवतावादी दृष्टिकोण विकसित हुए। इस तरह की नई सार्वजनिक दुनियाँ ने सामाजिक क्रांति को जन्म दिया।
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