भूस्खलन के पाँच रूप होते हैं-
- बारिश के पानी के साथ मिट्टी और कचड़े का नीचे आना,
- कंकड़-पत्थरों का खिसकना
- कंकड़-पत्थर का गिरना
- चट्टानों का खिसकना
- चट्टानों का गिरना आदि से जानमाल की बर्बादी होती है।
इससे बचाव के लिए निम्न उपाय किए जाने चाहिए-
- मिट्टी की प्रकृति के अनुरूप उपयुक्त नींव बनाना।
- ढलवां स्थान पर मकान का निर्माण न करना।
- सामान्य एवं वैकल्पिक संचार प्रणालियों को समुचित व्यवस्था करना।
- वनस्पति विहीन ऊपरी ढालों पर उपयुक्त वृक्ष प्रजातियों का सघन रोपण कार्य करना।
- प्राकृतिक जल की निकासी का अवरुद्ध न होना।
- पुख्ता दीवारों का निर्माण किया जाना। ..
- बारिश की पानी और झरनों के प्रवेश सहित भूस्खलनों के संचलन पर काबू पाने के लिए समतल जल निकासी केन्द्र बनाना।
- भूमि के नीचे बिछाए जाने वाले पाईप लाइन, केबुल आदि लचीले होने चाहिए ताकि भूस्खलन से उत्पन्न दबाव का सामना कर सकें।
बाढ़ एक विनाशकारी प्राकृतिक आपदा है। इससे निजात पाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं
- बाढ़ की प्रवणता को कम करने के लिए वनों का विकास से निजात मिल सकती है।
- नदियों के दोनों तटबंधों पर बाँध बनाना। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की सुरक्षा प्रदान किया जा सकता है।
- मृदा क्षय को भी निर्यात किया जा सकता है।
- जल निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
- पर्वतीय भागों में नदियों के ऊपर बाँध और पृष्ठ भाग जलाशय का निर्माण कर जल को नियंत्रित किया जा सकता है
- बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में नहरों का जाल बिछाकर इसकी विभीषिका से बचा जा सकता है साथ ही सिंचाई का काम भी किया जा सकता है।
- बाढ़ से बचाव के लिए रिंग बांध भी सहायक होता है। नदियों की धाराओं में सुधार तथा नदियों के लिए वैकल्पिक मार्ग का निर्माण द्वारा इस समस्या का समाधान संभव है।
- बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में स्थान-स्थान पर खाद्यान्न बैंक का भी विकास होना चाहिए।
मुख्यत: आकस्कि प्रबंधन के तीन घटक हैं-
- स्थानीय प्रशासन
- स्वयंसेवी संगठन
- गाँव अथवा मुहल्ले के लोग।
1. स्थानीय प्रशासन- आकस्मिक प्रबंधन में स्थानीय प्रशासन की अहम भूमिका होती है। राहत शिविर का निर्माण, प्राथमिक उपचार की सामग्री की व्यवस्था, एम्बुलेंस, डॉक्टर, अग्निशामक इत्यादि की तत्काल व्यवस्था करना इसका प्रमुख कार्य है।
2. स्वयंसेवी संगठन- आकस्मिक प्रबंधन में स्वयंसेवी संस्था महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, अगर गाँव के युवकों तथा पंचायत प्रबंधन के बीच समन्वय हो। ऐसे प्रबंधन में जाति, धर्म, लिंग के भेदभाव का परित्याग करना पड़ता है। स्वयंसेवी संस्था आकस्मिक प्रबंधन में काफी योगदान दे सकती है।
3. गाँव अथवा महल्ले के लोग- आकस्मिक प्रबंधन में गाँव और मुहल्ले के लोग काफी योगदान दे सकते हैं। जैसे—युवकों को मानसिक रूप से सुदृढ़ और तकनीकी रूप से प्रशिक्षित करना और उनमें साहस का संचार कर सकते हैं।