1.1929 के आर्थिक संकट के कारणों को संक्षेप में स्पष्ट करें।

  • नवीन तकनीकी प्रगति तथा बढ़ते हुए मुनाफे के कारण उत्पादन में जो भारी वृद्धि हुई उससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई कि जो कुछ उत्पादित किया जाता था, उसे खरीद सकने वाले लोग बहुत कम थे।
  • विश्व के सभी भागों में कृषि उत्पादन एवं खाद्यान्नों के मूल्य की विकृति।

2.औद्योगिक क्रान्ति ने किस प्रकार विश्व बाजार के स्वरूप को विस्तत किया ?

औद्योगिक क्रान्ति ने बाजार को तमाम आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र बना दिया। इसी के साथ जैसे-जैसे औद्योगिक क्रान्ति का विकास हुआ बाजार का स्वरूप विश्वव्यापी होता चला गया और 20वीं शताब्दी के पहले तक तो इसने सभी महादेशों में अपनी उपस्थिति कायम कर ली।

3.विश्व बाजार के स्वरूप को समझावें।

औद्योगिक क्रान्ति के फैलाव के साथ-साथ बाजार का स्वरूप विश्वव्यापी होता गया। इसने व्यापार, श्रमिकों का पलायन और पूंजी का प्रवाह इन तीन आर्थिक प्रवृत्तियों को जन्म दिया।
व्यापार मुख्यतः कच्चे मालों को इंगलैंड और अन्य यूरोपीय देशों तक पहुँचाने और वहाँ के कारखानों में निर्मित वस्तुओं को विश्व के कोने-कोने में पहुंचाने तक सीमित था।

4.भूमंडलीकरण में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के योगदान (भूमिका) को स्पष्ट करें।

1980 के दशक के बाद आर्थिक रूप से काफी जर्जर हो चुकी स्थिति के प्रभाव को कम करने में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का योगदान काफी सराहनीय रहा जिसने भूमंडलीकरण को बढ़ावा दिया।

5.1950 के बाद विश्व अर्थव्यवस्था के पुनर्निमाण के लिए किए जाने वाले प्रयासो का उल्लेख करें।

द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने के बाद उससे उत्पन्न समस्या को हल करने तथा व्यापक तबाही से निबटने के लिए पुनर्निर्माण का कार्य अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आरंभ हुआ। 1957 में यूरोपीय आर्थिक समुदाय, यूरोपीय इकॉनॉमिक कम्युनिटि (ई. ई. सी.) की स्थापना की गयी। इसमें फ्रांस, प. जर्मनी, बेल्जियम, हालैण्ड, लग्जमबर्ग और इटली शामिल हुआ। इन देशों ने एक साझा बाजार स्थापित किया। 1960 में ग्रेट ब्रिटेन इसका सदस्य बना। तत्कालीन विश्व के दोनों महत्वपूर्ण आर्थिक शक्तियाँ सं. रा. अमेरिका एवं सोवियत रूस अपना प्रभाव स्थापित करना चाहते थे। इस प्रयास में अमेरिका की सहायता, विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भरपूर सहायता की। जबकि रूस ने अपने विचारों और राजनैतिक शक्ति का इस्तेमाल ज्यादा किया। दोनों देशों ने अपनी नीतियों के अनुसार विश्व के दो देशों का सहयोग किया।

6.विश्व बाजार के लाभ-हानि पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

विश्व बाजार के लाभ-विश्व बाजार ने व्यापार और उद्योग को तीव्रगति से बढ़ाया। आधुनिक बैंकिंग व्यवस्था के उदय में सहायता की। औपनिवेशिक देशों में यातायात के साधनों, खनन, बागवानी जैसे संरचनात्मक क्षेत्र का विकास हुआ। कृषि उत्पादन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। नवीन तकनीकों को सृजित किया। शहरीकरण के विस्तार में सहायता की।

विश्व बाजार की हानि – इससे औपनिवेशिक देशों का शोषण और तीव्र हो गया। लघु तथा कुटीर उद्योग नष्ट होने लगे।

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