आर्थिक संकट के कारण- इसका बुनियादी कारण स्वयं इसकी अर्थव्यवस्था के स्वरूप में ही समाहित था जो निम्न है-
- बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का विस्तार- यूरोप को छोड़कर शेष सभी देशों में बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का विस्तार होता गया जिससे मुनाफे बढ़ते चले गये, दूसरी तरफ अधिकांश लोग गरीबी और अभाव में पिसते रहे।
- उत्पादन में वृद्धि नवीन तकनीकी प्रगति तथा बढ़ते हुए मुनाफे के कारण उत्पादन में – तो भारी वृद्धि हुई लेकिन उसे खरीदने वाले लोग कम थे।
- कृषि उत्पादन एवं खाद्यान्नों के मूल्य की विकृति-कृषि क्षेत्र में भी अति उत्पादन के कारण उत्पादों की कीमतें गिरने लगी जिससे किसानों की आय घटने लगी। अतः ज्यादा माल बेचकर अपनी आय स्तर को बनाए रखने के लिए किसानों में होड़ मच गयी।
- कर्म का प्रभाव-1920 के मध्य में बहुत सारे देशों ने अमेरिका से कर्ज लेकर युद्ध हो चुकी अपनी अर्थव्यवस्था को नए सिरे से विकसित करने का प्रयास किया। लेकिन में घरेल स्थिति में संकट के कुछ संकेत मिलने से वे लोग कर्ज वापस माँगने लगे। इससे के समक्ष गहरा आर्थिक संकट आ खड़ा हुआ।
- अमेरिका में संकट अमेरिका में संकट के लक्षण प्रकट होते ही उसने अपने संरक्षण के लिए आयात शुल्क में वृद्धि कर दी तथा आयात की मात्रा को सीमित कर दिया। संकट का असर धीरे-धीरे अन्य देशों में प्रकट होने लगा और वे प्रयास करने लगे कि अपनी आवश्यकता : अधिकांश वस्तुएँ स्वयं ही उत्पादित कर लें, जिसमें आर्थिक राष्ट्रवाद संकुचित होने लगा और व्यापार की कमर टूट गयी।
आर्थिक संकट के परिणाम-
- मंदी के कारण बैंकों ने लोगों को कर्ज देना बन्द कर दिए। कों की वसूली तेज कर दी।
- किसान अपनी उपज को नहीं बेच पाने के कारण बर्बाद हो गए।
- कारोबार के ठप पड़ने से बेरोजगारी बढ़ी, कर्ज की वसूली नहीं होने से बैंक बर्बाद हो गए।
- लगभग 110000 कंपनियाँ चौपट हो गई।