1.स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत सरकार ने कब और किस उद्देश्य से राष्ट्रीय आय समिति का गठन किया ?

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत सरकार ने अगस्त 1949 ई. में प्रो. पी. सी. महालनोबिस (P.C. Mahalanobise) की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय आय समिति का गठन किया था; जिसका उद्देश्य भारत की राष्ट्रीय आय के संबंध में अनुमान लगाना था। इस समिति ने अप्रैल
1951 में अपनी प्रथम रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इसमें सन् 1948-49 के लिए देश की कुल राष्ट्रीय आय 8,650 करोड़ रुपये बताई गई तथा प्रति व्यक्ति आय 246.9 रुपये बताई गई। सन् 1954 के बाद राष्ट्रीय आय के आँकड़ों का संकलन करने के लिए सरकार ने केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Satatistical Organisation) की स्थापना की। यह संस्था नियमित रूप से राष्ट्रीय आय के आँकड़े प्रकाशित करती है। राष्ट्रीय आय के सृजन में अर्थव्यवस्था के तीनों क्षेत्रों का विशेष योगदान होता है।

2.राष्ट्रीय आय की परिभाषा दें। इसकी गणना की प्रमुख विधि कौन-कौन सी है ?

राष्ट्रीय आय का मतलब किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के कुल मूल्य से लगाया जाता है। दूसरे शब्दों में वर्ष भर में किसी देश में अर्जित आय की कुल मात्रा को राष्ट्रीय आय (National Income) कहा जाता है।
राष्ट्रीय आय को स्पष्ट करने के लिए कुछ प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों की परिभाषा निम्नलिखित है

प्रो. अलफ्रेड मार्शल के अनुसार “किसी देश की श्रम एवं पूंजी का उसके प्राकृतिक साधनों पर प्रयोग करने से प्रतिवर्ष भौतिक तथा अभौतिक वस्तुओं पर विभिन्न प्रकार की सेवाओं का जो शुद्ध समूह उत्पन्न होता है। उसे राष्ट्रीय आय कहते हैं। प्रो. पीगू के शब्दों में “राष्ट्रीय लाभांश किसी समाज की वस्तुनिष्ठ अथवा भौतिक आय वह भाग है, जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित होती है और जिसकी मुद्रा के रूप में माप हो सकती है।”

एक अन्य प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. फिशर ने राष्ट्रीय आय की परिभाषा देते हुए कहा है कि “वास्तविक राष्ट्रीय आय वार्षिक शुद्ध उत्पादन का वह भाग है, जिसका उस वर्ष के अन्तर्गत प्रत्यक्ष रूप से उपयोग किया जाता है।”

राष्ट्रीय आय की गणना की प्रमुख विधि-राष्ट्रीय आय की गणना अनेक प्रकार से की जाती है। चूंकि राष्ट्र के व्यक्तियों की आय उत्पादन के माध्यम से अथवा मौद्रिक आयं के माध्यम से प्राप्त होती है। इसलिए इसकी गणना जब उत्पादन के योग के द्वारा किया जाता है तो उसे उत्पादन गणना विधि कहते हैं। जब राष्ट्रों के व्यक्तियों की आय के आधार पर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है तो उस गणना विधि को आय गणना विधि कहा जाता है। प्राप्त की गई आय व्यक्ति के अपने उपभोग के लिए व्यय के माप से किया जाता है, राष्ट्रीय आय की मापने की इस क्रिया को व्यय गणना विधि कहते हैं। हम देखते हैं कि उत्पादित की हुई वस्तुओं का मूल्य विभिन्न परिस्थितियों में व्यक्तियों के द्वारा किए गए प्रयोग से बढ़ जाता है, ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय ‘आय की गणना को मूल्य योग विधि कहते हैं। अंत में व्यावहारिक संरचना के आधार पर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है। व्यावसायिक आधार पर की गई गणना को व्यावसायिक गणना विधि कहते हैं।

3.प्रति-व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में अंतर स्पष्ट करें।

प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में अंतर निम्नलिखित है-
राष्ट्रीय आय में देश की कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है उसे प्रति-क्ति आय कहते हैं। जबकि राष्ट्रीय आय का मतलब किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के कुल मूल्य से लगाया जाता है। दूसरे शब्दों में वर्ष भर में किसी देश में अर्जित आय की कुल मात्रा को राष्ट्रीय आय कहा जाता है।

4.राष्ट्रीय आय में वृद्धि भारतीय विकास के लिए किस तरह से लाभप्रद है ? वर्णन करें।

किसी भी राष्ट्र की आर्थिक स्थिति के आंकलन का सर्वाधिक विश्वसनीय मापदण्ड है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने से ही प्रति-व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। भारत के विकास के लिए जो प्रयास किए जाते हैं वह उस राष्ट्र की सीमा क्षेत्र के अन्दर रहनेवाले लोगों की उत्पादकता अथवा उनकी आय को बढ़ाने के माध्यम से की जाती है। वर्तमान युग में प्रत्येक देश अपने-अपने तरीके से विकास की योजना बनाता है, जिसका लक्ष्य राष्ट्र के उत्पादक साधनों की क्षमता को – बढ़ाकर अधिक आय प्राप्त करना होता है। इसी तरह शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पूँजी विनियोग के द्वारा रोजगार का सृजन किया जाता है, जिससे लोगों को आय में वृद्धि होती है।

आर्थिक विकास करने के लिए मुख्य रूप से उत्पादन तथा आय में वृद्धि की जाती है। वस्तुओं का अधिक उत्पादन तथा व्यक्तियों की आय अधिकतम होने पर ही हम राष्ट्र में उच्चतम आर्थिक विकास की स्थिति पा सकते हैं। अतः हम यह कह सकते हैं कि राष्ट्रीय आय और प्रतिव्यक्ति आय ही राष्ट्र के आर्थिक विकास का. सही मापदण्ड है। बिना उत्पाद को बढ़ाए लोगों की आय  में वृद्धि नहीं हो सकती है और न ही आर्थिक विकास हो सकता है।

वास्तव में राष्ट्रीय आय में वृद्धि से भारत का समुचित विकास होगा। साथ ही हम विकसित देश की श्रेणी में आ सकेंगे।

5.विकास में प्रति-व्यक्ति आय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें

किसी भी राष्ट्र की सम्पन्नता एवं विपन्नता वहाँ के लोगों की प्रति-व्यक्ति आय से  भी जानी जाती है। यदि प्रति-व्यक्ति आय निम्न होगी तो राष्ट्र विपन्न होगा जबकि प्रति-व्यक्ति आय अधिक होगी तो राष्ट्र सम्पन्न होगा। प्रति-व्यक्ति आय के समग्र रूप को ही राष्ट्रीय आय कहा जाता है। प्रति-व्यक्ति आय में बढ़ोतरी होने से उत्पादन की मांग में बढ़ोत्तरी होगी। इस मांग को पूरा करने के लिए उत्पाद का अधिकतम उत्पादन करना होगा जिससे आर्थिक विकास की प्रक्रिया तेज होगी, रोजगार के अवसर बढ़े रहेंगे, पूंजी का विनियोग होगा एवं बेहतर शिक्षा लोग पा सकेंगे जिसके कारण राष्ट्र आर्थिक प्रगति की ओर बढ़ेगा। बिना उत्पाद को बढ़ाए प्रति-व्यक्ति आय में वृद्धि नहीं हो सकती। हर हाल में प्रति व्यक्ति आय को उच्च रखना होगा। फलतः उपरोक्त कथन के अनुसार कह सकते हैं कि आर्थिक विकास में प्रति व्यक्ति आय अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

6.क्या प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि राष्ट्रीय आय को प्रभावित करती है ? वर्णन करें।

प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है क्योंकि प्रति-व्यक्ति आय संयुक्त रूप से सभी व्यक्तियों की आय के योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है।

राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में परिवर्तन होने से इसका प्रभाव लोगों के जीवन स्तर पर पड़ता है। राष्ट्रीय आय वास्तव में देश के अंदर पूरे वर्ष भर में उत्पादित शुद्ध उत्पत्ति को कहते हैं। लेकिन उत्पत्ति में वृद्धि तभी होगी जब उत्पादन में अधिक श्रमिकों को लगाया जाए। इस प्रकार जैसे-जैसे बेरोजगार लोगों को अधिक रोजगार मिलेगा, श्रमिकों का वेतन बढ़ेगा, उनकी आय बढ़ेगी तथा उनका जीवन स्तर पूर्व की अपेक्षा बेहतर होगा। इस प्रकार प्रति-व्यक्ति आय में वृद्धि होने से व्यक्तियों का विकास संभव हो सकेगा। यदि इस प्रकार राष्ट्रीय आय के सूचकांक में वृद्धि होती है तो इससे लोगों के आर्थिक विकास में अवश्य ही वृद्धि होगी।

वास्तव में संयुक्त रूप से सभी व्यक्ति की आय के योग को राष्ट्रीय आय कहते हैं तथा प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। प्रति-व्यक्ति आय में वृद्धि होने में से समाज के आर्थिक विकास में वृद्धि होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रति-व्यक्ति आय ‘ में वृद्धि राष्ट्रीय आय को प्रभावित करती है।

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