सामाजिक विज्ञान समाधान के साथ प्रश्न

यूरोप में राष्ट्रवाद |

इस अध्याय में हम पढ़ेंगे यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय राष्ट्र की भावना की रचना यूरोप के अन्य भागों पर प्रभाव समाधान के साथ प्रश्न उत्तर और साथ साथ सारांश, नोट्स भी उपलब्ध है |

समाजवाद एवं साम्यवाद |

समाजवाद में उत्पादन के सभी साधनों एवं कारखानों पर सरकार का एकाधिकार होता है और उत्पादन निजी लाभ के लिये न होकर पूरे समाज के लिये होता है । पूँजीवाद की भावना के विकास के कारण पूँजीपतियों एवं मिल – मालिकों की मजदूर विरोधी नीतियों के कारण श्रमिकों का जीवन नारकीय बन गया ।

हिन्द-चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन

दक्षिण पूर्व एशिया में वियतनाम लाओस और कम्बोडिया ( 3 लाख वर्ग कि ० मी ० ) के क्षेत्र को ही हिन्द चीन देश कहा जाता है । वियतनाम पर चीन का प्रभाव था.परन्तु लाओस कम्बोडिया पर भारतीय संस्कृति का प्रभाव था ।

भारत में राष्ट्रवाद

राष्ट्रीय चेतना का उदय ही राष्ट्रवाद का शाब्दिक अर्थ होता है । राष्ट्रवाद को अभिव्यक्ति स्वतंत्रता संग्राम है । भारत में राष्ट्रवाद के उद्भव के कारण विविध शक्तियों और विभिन्न कारणों का परिणाम था ।

अर्थव्यवस्था और आजीविका

किसी भी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि एवं उद्योग होता है जिस पर लोगों की आजीविका निर्भर करती है । आधुनिक युग में कृषि की तुलना में उद्योगों का महत्व बहुत अधिक बढा है और देश की अर्थव्यवस्था में इनके योगदान में भी समानुपातिक वृद्धि है ।

शहरीकरण एवं शहरी जीवन

 शहरीकरण का अर्थ है किसी गाँव के शहर या कस्बे के रूप में विकसित होने की प्रक्रिया । गाँव और शहर के बीच काफी भिन्नताएँ है । गाँव की आबादी कम होती है और नगर की ज्यादा । समाजशास्त्री के अनुसार नगरीय जीवन तथा आधुनिकता एक दूसरे के पूरक है ।

व्यापार और भूमंडलीकरण

 आज के अर्थजगत में वाणिज्य और व्यापार के अन्तर्गत आने वाली विश्व बाजार की व्यापारिक सम्बन्ध प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता के साथ । परन्तु आधुनिक काल के उदय के साथ ही भौगोलिक खोज

प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

 प्रेस के बिना आज के युग की कल्पना ही असंभव है । छापाखाना या प्रेस का आविष्कार उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि आग , पहिया और लिपि का था । सर्वप्रथम पत्थर या लकड़ी पर खुदाई करके अपने अनुभव या सोच का प्रदर्शन किया जाता था ।

लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी

पिछली कक्षा में हमने लोकतंत्र की जानकारी प्राप्त की थी अब हम यह देखेंगे कि सामाजिक विषमता , जातीय विषमता , सांप्रदायिक विविधता , लिंग भेद जैसे तत्व लोकतंत्र को किस प्रकार प्रभावित करती है।

सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली

लोकतंत्र में राजनैतिक प्रक्रिया के मूल में सत्ता की साझेदारी का प्रयास होता है । इसके लिए लोकतांत्रिक संस्थाएँ सत्ता के विभाजन के विविध एवं व्यापक व्याख्यान करती हैं । हम सत्ता की सबसे प्रभावकारी कार्य

लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष

लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ताधारी भी अपने ऊपर पड़ने वाले प्रभावों एवं दबावों से अलग नहीं हो सकते । लोकतंत्र एक ऐसी आदर्श व्यवस्था है जिसमें समाज में रहनेवाले लोगों के पारस्परिक हितों में टकराव चलता रहता है ,

लोकतंत्र की उपलब्धियाँ

आज दुनिया के लगभग 100 देशों में लोकतंत्र किसी – न – किसी रूप में विद्यमान है । लोकतंत्र का विस्तार एवं उसे मिलनेवाला जनसमर्थन यह बताता है कि लोकतंत्र अन्य सभी शासन व्यवस्थाओं से बेहतर है ।

लोकतंत्र की चुनौतियाँ

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है । लोकतंत्र सिद्धांत एवं व्यवहार में लोकतंत्र जनता का , जनता द्वारा तथा जनता के लिए शासन है । भारतवर्ष में लगभग 71 करोड़ मतदाता हैं

अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास

भारतीय अर्थव्यवस्था की मूल जड़ें काफी गहरी हैं । आजादी से पहले भारत अंग्रेजों का गुलाम था । अंग्रेजों ने अपने शासन में भारत का भरपूर शोषण किया । अत : आजादी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था का सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक , सांस्कृतिक पुनरुत्थान कर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना एक चुनौती थी ।

राज्य एवं राष्ट्र की आय

आयः- समाज का हर व्यक्ति अपने परिश्रम के द्वारा जो अर्जित करता है, वह अर्जित संपत्ति उसकी आय मानी जाती है। व्यक्ति को प्राप्त होनेवाला आय मौद्रिक के रूप में, अथवा वस्तुओं के रूप में भी हो सकता है।

मुद्रा, बचत एवं साख

मुद्रा को आधुनिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। मुद्रा के विकास के इतिहास को मानव सभ्यता के विकास का इतिहास कहा जा सकता है। सभ्यता के प्रारंभिक अवस्था में जब मनुष्य की आवश्यकताएँ सीमित थी |

हमारी वित्तीय संस्थाएँ

वित्तीय संस्थाएँः- हमारी देश की वे संस्थाएँ जो आर्थिक विकास के लिए उधम एवं व्यवसाय के वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करता है एसी संस्थाओं को वित्तीय संस्था कहते हैं। वित्तीय संस्थाएँ दो प्रकार की होती हैं |

रोजगार एवं सेवाएँ

रोजगार का अर्थ देश के मानव संसाधन को ऐसे कार्यों में लगाना है जिससे देश की उत्पादकता बढ़े और सामान्य लोगों के लिए उसकी न्यूनतम आवश्यकाएँ रोटी, कपड़ा और मकान प्राप्त हो सकें। बेरोजगार- ऐसे लोग जो काम करने के लायक होते हैं और जिन्हें उचित पारिश्रमिक पर काम नहीं मिलता है, उसे बेरोजगार कहते हैं।

वैश्वीकरण

बीसवीं शताब्दी के नौवें दशक से विश्व बाजार में एक युग की शुरूआत हुई है। जिसे वैश्वीकरण (GGlobalization) कहते हैं। वैश्वीकरण के अंतर्गत पूरी दुनिया का बाजार एक-दूसरे के लिए मुक्त हो गया है।

उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण

प्रत्येक व्यक्ति का यह अधिकार है कि वह जिस वस्तु का उपभोक्ता है, उसके बारे में पूर्ण जानकारी लें, जैसे- वस्तु का गुण, मात्रा, वस्तु बनाने में लगा सामान और इससे होने वाले प्रभाव। यदि उपभोक्ता किसी विशेष वस्तु का उपभोग करता है और सामान खराब निकलता है

भारत : संसाधन एवं उपयोग

 मानव जीवन के उपयोग में आने वाली सभी वस्तुएँ संसाधन हैं । इसके अंतर्गत भूमि , मृदा , जल एवं खनिज इत्यादि भौतिक संसाधन तथा वनस्पति , वन्य जीव , जलीय जीव इत्यादि जैविक संसाधन हैं ।

प्राकृतिक संसाधन

भारत में कुल उपलब्ध भूमि का लगभग 43 प्रतिशत भाग पर मैदान का विस्तार है, जो बारहमासी नदियों को सुनिश्चित करता है। 27 प्रतिशत भूभाग पठार के रूप में विस्तृत है, जहाँ खनिज, जीवाश्म, ईंधन एवं वन सम्पदा के कोष संचित हैं।