The Pace for living

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I saw a play in Dublin not long ago in which the chief character was an elderly corn-merchant in a small Irish country town. He was a man of many anxieties-his heart was dicky, his nephew was cheating him, his wife had the fantastic notion of spending £10 on a holiday. Altogether the pace of life was getting too much for him, and in a moment of despair he uttered a great cry from the heart: “They tell me there’s an aeroplane now that goes at 1,000 miles an hour. Now that’s too fast!”

कुछ समय पहले मैंने डयूब्लीन में एक नाटक देखा जिसका मुख्य पात्र एक उम्रदराज मक्का व्यापारी, जो आयरलैंड का था। उसकी बहुत चिन्तायें थीं। वो छोटे दिल का था, उसका भतीजा उसे धोखा दे रहा था और उसकी पत्नी £10 एक छुट्टी में खर्च करती थी। उसका जीवन बहुत तेज चल रहा था। दुख के एक क्षण में वह खुशी से चिल्लाता है “वो कहता है कि एक हवाई जहाज है जो 1000 मील प्रति घंटा चलता है। ये काफी तेज है” ।

For me that was the most enchanting line in the play – the man’s complaint was so gloriously irrelevant to his own situation. And besides being comic, it struck me as a perfect illustration of the way the Irish get at subtle truths by the most unlikely approaches. You saw what the old fool meant.

मेरे लिए ये लाइन सबसे प्रभावशाली था। वो व्यक्ति की बात उसी के जीवन के विपरीत थी। ये मजाकीय तो था ही साथ ही मुझे ये भी लगा कि कैसे आयरलैंड के लोग सच तक पहुंचते हैं। समझे वो बेवकूफ क्या कहना चाहता था।

Not that I have any dislike of rapid movement myself. I enjoy going in a car at ninety miles an hour – so long as I am driving and so long as it is not my car. I adore the machines that hurl you about at Battersea. To dine in London and lunch in New York next day seems to me a most satisfactory experience: I admit it excludes all the real pleasures of travel – the sort of fun you get from a country bus in Somerset or Spain – but it gives you a superficial sense of drama; it was a sort of excitement our ancestors had to do without, and we might just as well accept it gratefully. No, where speed becomes something unfriendly to me is where the mental activites of our time tend – as they naturally do – to follow the pace of the machines.

ऐसा नहीं है कि मैं तेज जिन्दगी के खिलाफ हूँ। मुझे कार में 90 मील/घंटा जाना पसन्द है। यदि मैं कार चला रहा होऊँ और यदि कार मेरी नहीं हो तो । मैं उन मशीनों को पूजता हूँ जो आपको बैटर समुद्र के चारों तरफ घेरे हुए है। लंदन में रात का भोजन और सुबह न्यूयॉर्क में मुझे भी बहुत संतुष्टजनक लगता है। इसमें यात्रा का सही आनंद नहीं रह जाता पर ये एक आधारहीन नाटक का भाव देता है। उस प्रकार का आमोद प्रमोद जो आप समरसेट या स्पेन में ग्रामीण बस से पाते हैं। किन्तु यह आपको नाटक का छिछला भाव देता है। ये एक प्रकार की उत्तेजना थी, ये बहुत सुखद है कि हमारे पूर्वजों को इसके बगैर ही काम चलाना पड़ता था और हमें भी इसे खुशी से मान लेना चाहिए। जब गति हमारे लिए नकारात्मक हो तो जहाँ हमारे समय की मानसिक क्रियाशीलताओं का झुकाव है-जैसा वो स्वभाव से करते हैं क्योंकि उस समय मशीन के स्पीड को पकड़ना पड़ता है।

I speak with prejudice, because I belong to the tribe of slow thinkers, those who are cursed with l’esprit de l’escaliert: people who light on the most devastating repartee about four hours after the party’s over. I am one of those who are guaranteed to get the lowest marks in any intelligence test, because those tests or all the ones I have come across seem to be designed to measure the speed of your mind more than anything else. Obviously we slow thinkers are terribly handicapped in the business of getting a living. But what I am thinking about just now is not so much the practical use of one’s mind as its use for enjoyment.

मेरी सोच नकारात्मक है क्योंकि मैं ऐसे ही सोचनेवाले समूह का हूँ जो शापित है। वैसे लोग जो गोष्टी समाप्त होने के चार घंटे बाद अत्यधिक विनाशक प्रत्युत्तर पर प्रकाश डालते हैं। उन लोगों में हूँ जो कि किसी भी बुद्धि की परीक्षा में सबसे कम नम्बर आएंगे क्योंकि वो परीक्षा हमारे दिमाग की जाति को नापते हैं। किसी और चीज से ज्यादा जरूर हम धीमा सोचने वालों की अपंगता है कि हमें कमाने में मुश्किलें आती हैं पर मैं मानता हूँ कि दिमाग का इस्तेमाल मनोरंजन के लिए करना चाहिए

As an example, when I go to the cinema I find myself in a hopeless fog, and after two or three minutes I have to turn to my wife for enlightenment. I whisper: “Is this the same girl as the one we saw at the beginning ?”And she whispers back: “No, there are three girls in this film – a tall blonde, a short blonde, and a medium-sized brunette. Call them A, B, and C. The hero is that man who takes his hat off when he comes  indoors. He is going to fall in love with girls B, C, A in that order.”And so it proves to be. There you have a mind which has trained itself to work in high gear-though as a matter of fact it can work in other gears just as well. But my point is that most of my fellow-patients in the cinema do think fast enough to keep up comfortably with rapid changes of scene and action. They think much faster than people did thirty years ago: possibly because those who do not think fast in the High Street nowadays may not get another chance in this world to think at all.

उदाहरण के लिए जब मैं सिनेमा जाता हूँ तो मेरे चारों तरफ धुंधला हो जाता है और कुछ मिनटों बाद अपनी पत्नी से धीरे से कहता हूँ “क्या । ये वहीं लड़की है जो शुरू में थी?” और वह जवाब देती है “नहीं ‘तीन लड़कियाँ हैं एक लम्बी, गोरी, बाल हल्के रंग के, दूसरी वैसी ही पर छोटी और तीसरी मध्य लम्बी भूरे बालों वाली उनका नाम ए, बी और सी हीरो वो है जो अन्दर आते हुए अपना टोपी निकालते हैं। वो लड़कियों से क्रमानुसार बी, सी, और ए, से प्यार करेगा” यहाँ दिमाग को ज्यादा गति से काम करने की आदत है। यद्यपि वास्तविक रूप से वह अन्य गति में भी काम कर सकता है। किन्तु मेरा विषय है कि अधिकांश मेरा साथी-मरीज सिनेमा में दृश्य और अभिनय के तीव्र परिवर्तन के साथ आराम से कदम-से-कदम मिलाते हुए काफी तेज सोचते हैं। क्योंकि तीस वर्ष पहले के लोग से हम बहुत तेज सोचते हैं क्योंकि अगर वो नहीं सोचेंगे तो कभी सोच नहीं पायेंगे  ।

ABOUT AUTHOR

R.C. HUTCHINSON, a British novelist, exhibits an exceptional flair for touching the sensitive isues of the contemporary society – with all its contradictions and paradoxes. In ‘The Pace for Living’, R.C. Hutchinson captures the agony of modern man. He brings out how the fast movement of men, things and objects hurts the normal rhythm and exerts undue pressure on men, women and children.

आर. सी. हचिंसन एक ब्रिटीश उपन्यासकार थे। वह समकालीन समाज में सभी अंतर्रविरोध और विरोधाभाष संवेदनशील मुद़दों को अपनी रचनाओं में प्रदर्शित किए हैं। द पेस फॉर लिभिंग में लेखक ने आधुनिक आदमी के मानसिक पिड़ा को निरूपित किया है। यह पाठ आदमी, वस्तु और चीझों के तेज गति जीवन के स्वाभाविक लय को खंडित करता है और पुरूषों, महिलाओं और बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालता है उसे चमत्कारपूर्वक ढंग से सामने रखता है।