Two Horizons


Actually Two Horizons is a beautiful story by Binapani Mohanty in Oriya language. It has been translated into English to reveal the hardships of women by last decade of 20th century.

A middle class educated daughter writes to her own mother how does she struggule and trigs to keep everyone happy in her husbands native home. She does not expect any praise from in-laws. There is a reply from her mother in which expresses her resentment against male dominance and outdated womanhood. The story is a manifestation of contemporary situation of exploited and struggle womanhood.

There is an heart touching expression in the daughter’s letter to her mother. She writes, “I remember when I was leaning you had hugged me and said, “Daughter, don’t be afraid. No one can live on in this world in fear. One has to bring out that power from within oneself and face, the world. Our ways are dark. It’s only the light of one’s own eyes which show the way. Can one live with another all his life ? Still my soul will always be there beside you, like your own shadow.”

There is a natural gap between the sense of perseverance between the daughter and the mother. Mother tries to appease her lovely daughter. She writes her daughter, “You still remember, don’t you of the tale of the crocodile be friendly a monkey! The more one comes closer to someone, the more one eats into the other. But can one remain conscious and alert at all times? I realize now how my insides must have been eaten up. Or is it that I have thrown my heart away? Or else why should I be experiencing this vast emptiness after reading your letter ?

Such experience reveal the sentimental touch of a daughter’s feeling in front of a mother and a mother’s sense of appeasement to her lovely daughter.

वास्तव में द होराइजन्स (दो आसमान) बीनापानी मोहन्ती के द्वारा उड़िया में लिखी गई सुन्दर सी कहानी है। इसका अनुवाद अंग्रेजी में किया गया है ताकि बीसवीं सदी के अन्तिम दशक में महिलाओं की कठिनाइयों को उजागर किया जा सके। एक मध्यवर्गी शिक्षित बेटी अपनी माँ को लिखती है कि कैसे वह संघर्ष करती है और पति के घर में सबों को प्रसन्न रखने की कोशिश करती है।

वह अपने सास-ससुर से जरा भी बड़ाई की उम्मीद नहीं रखती है। उसकी माँ की ओर से जबावी पत्र मिलता है जिसके अन्तर्गत पुरुष प्रधानता एवं दकियानशी परानी महिलापन के खिलाफ के भाव व्यक्त किये गए हैं। कहानी आज की परिस्थिति का प्रतिबिम्ब भाव है जिसमें महिलाओं के शोषण एवं संघर्ष का स्पष्टीकरण दिया गया है।

हृदय को छूने वाले भाव की अभिव्यक्ति बेटी के पत्र में माँ को लिखी गई है। वह लिखती है, “जब मैं घर छोड़ रही थी मुझे यह याद है कि तुमने कहा था-बेटी घबराना (या डरना) नहीं है। कोई भी इस दुनियाँ में डर कर नहीं जी सकती। अपने अन्दर की छिपी हुई उस शक्ति
लानी चाहिए और दनियाँ का मकाबला करनी चाहिए। हमलोगों के रास्ते अंधेरे से भरा है। यह सिर्फ अपनी आँखों की रोशनी है जो रास्ता दिखलाती है। क्या कोई पूरी जिन्दगी किसी दुसरे के साथ रहकर बिता सकता है ? मेरी आत्मा अभी भी तुम्हारे पास तुम्हारी अपनी परछाई की तरह मौजुद है।”

एक प्राकृतिक या स्वाभाविक दूरी है बेटी और माँ के सूझ-बूझ में। माँ अपनी प्यारी बच्ची . को दिलाशा देने की कोशिश करती है। वे अपनी बेटी को समझाती हुई लिखती है।

अभी भी तम्हें कहानी याद कि नहीं मगरमच्छ और बन्दर वाली कहानी। जितना ही अधि क कोई किसी के करीब आ जाता है उतना ही अधिक वह दूसरे के लिए घातक भी होता है। लेकिन यह बात भी है कि हमेशा कोई कैसे सावधान रहे ? मैं महसुस करती हूँ कि मैं अन्दर से कितनी खोखाली हो चुकी हूँ। लेकिन क्या मैंने अपने हृदय को (धैर्य को) खोया ? और इसी प्रकार तुम्हारे इस पत्र से प्राप्त विशाल शुन्यता को भला मैं क्यों नहीं पढ़कर महसुस करूँगी ?

इस प्रकार इन विचारों की अभिव्यक्ति से भावनात्मक स्पर्श का बोध होता है जो कि बेटी अपनी माँ और माँ अपनी त्याग बेटी के लिए स्पष्ट तौर पर रखती है।