Acceptance Speech

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Your Majesties, Your Excellencies, Ladies and Gentlemen,

महामहिम, महामान्य महिलाएँ और भद्र पुरुष,

I stand before you here today to accept on behalf of my mother, Aung San Suu Kyi, this greatest of prizes, the Nobel Prize for Peace. Because circumstances do not permit my mother to be here in person, I will do my best to convey the sentiments I believe she would express.

मैं आज आप सब के सामने खड़ा हूँ ताकि मैं अपनी माँ आंग सान सु की, के बदले नोबल शान्ति पुरस्कार ले सकूँ। परिस्थितियों के वजह से मेरी माँ यहाँ उपस्थित नहीं हो सकती है, इसलिए मैं उनकी भावनाओं को पूर्णतः व्यक्त करने की कोशिश करूंगा

Firstly, I know that she would begin by saying that she accepts the Nobel Prize for Peace not in her own name but in the name of all the people of Burma. She would say that this prize belongs not to her but to all those men, women and children who, even as I speak, continue to sacrifice their well being, their freedom and their lives in pursuit of a democratic Burma. Theirs is the prize and theirs will be the eventual victory in Burma’s long struggle for peace, freedom and democracy.

सबसे पहले, वो कहेंगी कि वो ये पुरस्कार सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि पूरे बर्मा के लोगों के लिए है। वो कहेंगी कि ये सिर्फ उनकी नहीं है पर उन सभी महिलाओं, पुरुषों और बच्चों का है जो, जैसा मैं कहती हूँ, अपना हित, अपनी स्वतंत्रता और अपनी जान लोकतांत्रिक बर्मा के प्रयत्न में अर्पित करते रहे । शांति, स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए बर्मा के लम्बे संघर्ष में उनकी ही अंतिम विजय होगी और उनका ही पुरस्कार होगा।

Speaking as her son, however, I would add that I personally believe that by her own dedication and personal sacrifice she has come to be a worthy symbol through whom the plight of all the people of Burma may be recognised. And no one must underestimate that plight. The plight of those in the countryside and towns, living in poverty and destitution, those in prison, battered and tortured; the plight of the young people, the hope of Burma, dying of malaria in the jungles to which they have fled; that of the Buddhist monks, beaten and dishonoured. Nor should we forget the many senior and highly respected leaders besides my mother who are all incarcerated. It is on their behalf that I thank you, from my heart, for this supreme honour. The Burmese people can today hold their heads a little higher in the knowledge that in this far distant land their suffering has been heard and heeded.

उनका बेटा होने के नाते मैं बताऊंगा कि वो अपने समर्पण और त्याग के कारण एक ऐसा बहमुल्य प्रतीक बन पाई जिससे बर्मा के लोगों के हाल को देखा जा सके और किसी के भी ये हाल कम नहीं आंकना चाहिए। हाल उनके जो देहात या शहर में रहते हैं, जो गरीबों और जरूरत में हैं, जो जेल में हैं, जो कष्ट झेल रहे हैं, नवयुवकों का हाल, बर्मा का आशा, मलेरिया होना उस जंगल में जहाँ से भागे है, बौध पंडीतों का मार खाना और बेइज्जती होना, ये इन सबका है। हमें उन वरिष्ठ नेता, मेरी माँ को लेकर भी नहीं भूलना चाहिए जो जेल में हैं। इन सबके बदले मैं आपको दिल से धन्यवाद देता हूँ कि आपने उन्हें इतना इज्जत दिया। आज बर्मा के लोग भी अपना सर थोड़ा ऊँचा कर सकते हैं क्योंकि यहाँ उनकी भी परेशानियों को सुना गया है।

We must also remember that the lonely struggle taking place in a heavily guarded compound in Rangoon is part of the much larger struggle, worldwide, for the emancipation of the human spirit from political tyranny and psychological subjection. The Prize, I feel sure, is also intended to honour all those engaged in this struggle wherever they may be. It is not without reason that today’s events in Oslo fall on the International Human Rights Day, celebrated throughout the world.

हमें यह भी याद रखना चाहिए कि वो अकेला संघर्ष जो रंगुन के बंधे घेरे में चल रहा है वो इस बड़े संघर्ष का एक हिस्सा है। ये संघर्ष मानवता के सुधार, राजनैतिक शैतानी और मनोवैज्ञानिक बंधन के विरूद्ध है। ये पुरस्कार सभी लोग, वो जहाँ भी हैं, के लिए है। आज का ये उत्सव जो ओस्ले में मनाया जा रहा है ये उस दिन मनाया जा रहा है जब इन्टरनेशनल ह्युमन राइट्स डे हैं।

Mr. Chairman, the whole international community has applauded the choice of your committee. Just a few days ago, the United Nations passed a unanimous and historic resolution welcoming Secretary-General Javier Perez de Cuellar’s statement on the significance of this award and endorsing his repeated appeals for my mother’s early release from detention.

चेयरमैन साहब, आपके इस पसन्द को दुनिया ने सराहा है। कुछ दिन पहले युनाइटेड नेशन्स ने एक बिना विवाद के ऐतिहासिक फैसला लिया और सेक्रेटरी जेनेरल जीवएर परवेज डी सुवेलर के प्रस्ताव जो इस पुरस्कार और मेरी माँ को जल्दी छोड़ने के लिए था, को स्वागत किया।

Let it never be said by future generations that indifference, cynicism or selfishness made us fail to live up to the ideals of humanism which the Nobel Peace Prize encapsulates.

हमें ऐसा करना चाहिए कि हमारे आने वाले बच्चे ऐसा ना कहें कि स्वार्थ के वजह से वो मानवता के सिद्धान्तों पर नहीं चल सके जो नोबल पीस पुरस्कार में संक्षिप्त रूप में शामिल है।

Let the strivings of us all, prove Martin Luther King Jr. to have been correct, when he said that humanity can no longer be tragically bound to the starless midnight of racism and war.

चलो हमारा प्रयत्न मार्टीन लुथर कींग जु० को सही साबित करे, जब उन्होंने कहा कि अब मानवता को जातिवाद, नक्शलवाद और युद्ध में बांधा नहीं जा सकता है।

Let the efforts of us all, prove that he was not a mere dreamer when he spoke of the beauty of genuine brotherhood and peace being

precious than diamonds or silver or gold.

चलो हमारी कोशिशें ये साबित करें कि वो सिर्फ सपना नहीं देख रहे थे जब उन्होंने कहा था कि भाईचारा और शान्ति सोने चाँदी से भी महत्वपूर्ण है।

I stand before you here today to accept on behalf of my mother, Aung San Suu Kyi, this greatest of prizes, the Nobel Prize for Peace. Because circumstances do not permit my mother to be here in person, I will do my best to convey the sentiments I believe she would express.

मैं आज आप सब के सामने खड़ा हूँ ताकि मैं अपनी माँ आंग सान सु की, के बदले नोबल शान्ति पुरस्कार ले सकूँ। परिस्थितियों के वजह से मेरी माँ यहाँ उपस्थित नहीं हो सकती है, इसलिए मैं उनकी भावनाओं को पूर्णतः व्यक्त करने की कोशिश करूंगा

 

 

ABOUT AUTHOR

Aung San Suu Kyi, born on 19 June 1945 in Rangoon, is a pro-democracy activist and leader of the National League for Democracy in Burma. She won the Rafto Prize and the Sakharov Prize for Freedom of Thought in 1990 and the Nobel Peace Prize in 1991. The Acceptance Speech, given here was delivered on behalf of Aung San Suu Kyi by her son Alexander Aris, on the occasion of the award of the Nobel Peace Prize in Oslo, December 10, 1991.     

अर्थ- आंग सान सू की जन्म 19 जून, 1945 को रंगून में हुआ था, जो लोकतंत्र समर्थक, प्रतिक्रियावादी तथा बर्मा के नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के नेत्री (Leader) थी। उसने 1990 में फ्रीडम ऑफ थॉट के लिए रैफ्टो पुरस्‍कार और सखरोव पुरस्‍कार तथा 1991 में नोबेल शान्ति पुरस्‍कार प्राप्‍त किया। प्रस्‍तुत पाठ ऐसेप्‍टेन्स स्‍पीट ओसलो में 10 दिसम्‍बर 1991 में नोबेल शांति पुरस्‍‍कार के अवसर पर उसके पुत्र अलेक्‍जेण्‍डर एरिस द्वारा ‘आंग सान सू की’ की ओर से दिया गया भाषण था।