‘हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती’। कैसे?


प्रत्येक समाज में सामाजिक विभिन्नता पायी जाती है। समाज में विभिन्न धर्म, जाति, भाषा, समुदाय, लिंग इत्यादि के लोग रहते हैं जो सामाजिक विभिन्नता का सूचक है। यह आवश्यक नहीं है कि ये राजनीतिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का आधार हो, क्योंकि भिन्न समुदाय के विचार भिन्न हो सकते हैं, लेकिन हित समान होगा। उदाहरण के लिए मुम्बई में मराठियों की हिंसा का शिकार व्यक्तियसों की जातियाँ भिन्न थीं, धर्म भिन्न थे और लिंग भी भिन्न हो सकता है, परन्तु उनका क्षेत्र एक ही था। वे सभी एक ही क्षेत्र विशेष के उत्तर भारतीय थे। उनका हित समान था। वे सभी अपने व्यवसाय और पेशा में संलग्न थे। उपर्युक्त कथनों के अध्ययन करने के पश्चात् यह स्पष्ट हो जायेगा कि हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं ले पाती है।




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=> सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम किन-किन चीजों पर निर्भर करता है?
=> सामाजिक विभाजनों को संभालने के संदर्भ में इनमें से कौन-सा बयान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर लागू नहीं होता?
=> निम्नलिखित व्यक्तियों में कौन लोकतंत्र में रंगभेद के विरोधी नहीं थे?
=> निम्नलिखित का मिलान करें क पाकिस्तान अ धर्मनिरपेक्ष ख हिन्दुस्तान ब इस्लाम ग इंग्लैंड स प्रोस्टेंट
=> भावी समाज में लोकतंत्र की जिम्मेवारी और उद्देश्य पर एक अक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
=> भारत में किस तरह जातिगत असमानताएँ जारी हैं ?
=> क्यों सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते? इसके _ : दो कारण बतावें। .
=> विभिन्न तरह की साम्प्रदायिक राजनीति का ब्योरा दें और सबके साथ एक-एक उदाहरण दें।
=> जीवन के विभिन्न पहलुओं का जिक्र कर जिसमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव है या वे कमजोर स्थिति में हैं ?
=> भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है ?
=> किन्हीं दो प्रावधानों का जिक्र करें जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाते हैं
=> भारत में यहाँ औरतों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है-
=> साम्प्रदायिक राजनीतिक के अर्थ संबंधी निम्न कथनों पर गौर करें। साम्प्रदायिक राजनीति किस पर आधारित है?
=> भारतीय संविधान के बारे में इनमें से कौन-सा कथन सही है ?
=> ……….पर आधारित विभाजन सिर्फ भारत में है।
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