1.वर्तमान भारतीय राजनीति में लोकतंत्र की कौन-कौन-सी चुनौतियाँ हैं ? विवेचना करें।

भारतीय प्रजातंत्र के सामने अनेक चुनौतियाँ हैं जो निम्नलिखित हैं

  • शिक्षा का अभाव- भारत में शिक्षा की कमी है, ज्यादा लोग अशिक्षित हैं। फलस्वरूप जनता प्रजातंत्र का महत्व नहीं समझती हैं उसे अपने अधिकारों और कर्तव्यों की सही जानकारी नहीं होने के कारण सरकार के कामों में दिलचस्पी नहीं ले पाती।
  • सामाजिक असमानता- प्रजातंत्र की सफलता के लिए सामाजिक समानता जरूरी है। हमारे देश में जाति, धर्म, ऊँच-नीच का भेदभाव बहुत अधिक है। समाज के लोगों में सहयोग का अभाव है। समाज के सभी लोग अपनी भलाई पर विशेष ध्यान देते हैं।
  • आर्थिक असमानता- भारत में आर्थिक असमानता बड़े पैमाने पर है। कुछ लोग ही अमीर हैं, अधिकतर लोग गरीब हैं।
  • मतदान का दुरुपयोग भारतीय प्रजातंत्र में भारतीय जनता मतदान के महत्व को नहीं समझ पाती, अत: अपने मतदान का दुरुपयोग करती है। बूथ छापामारी या असामाजिक तत्वों के उपद्रव के कारण लोग अपना मतदान ठीक से नहीं कर पाते।
  • अव्यवस्थित राजनीतिक दल राजनीतिक दल प्रजातंत्र का प्राण होता है। राजनीतिक ग का नहीं होना भारतीय प्रजातंत्र के लिए दुर्भाग्य की बात है। छोटे-छोटे ‘राजनीतिक दल भारतीय प्रजातंत्र के लिए गंभीर समस्या हैं।

2.बिहार की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी लोकतंत्र के विकास में कहाँ तक सहायक है?

लोकतंत्र की सफलता के लिए महिलाओं का राजनीति में भागीदारी लोकतंत्र के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण है। देश की आधी आबादी महिलाओं की है। इसलिए महिलाओं ने आजादी ‘ के समय बढ़-चढ़कर भाग लिया था। उस समय की महत्वपूर्ण नारी नेता सरोजनी नायडू, अरुणा आसिफ अली, विजय लक्ष्मी पण्डित इत्यादि ने भारत की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

हमारे राज्य बिहार में स्वतंत्रता के समय महिलाएं अंग्रेजों के सामने डटी रहीं। इस प्रदेश में महिलाएं राजनीति के क्षेत्र में अपना नाम रौशन कर रही हैं। जिसका ज्वलंत उदाहरण वर्तमान में -15वीं लोकसभा के अध्यक्ष मीरा कुमार हैं। इससे पूर्व बिहार में राबड़ी देवी ने मुख्यमंत्री पद को सुशोभित किया है। महिला आरक्षण के लिए महिलाओं ने बिहार में आंदोलन किया है जिससे यह पता चलता है कि राजनीति की समझ महिलाओं में पैदा हुई है। बिहार की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी इस बात को लेकर और बढ़ी है कि महिला आरक्षण विधेयक संसद में पारित होने के लिए राज्य सभा में गया तो महिलाओं ने इस पर खुशी जाहिर की।

किसी भी देश के विकास के लिए महिलाओं को शिक्षित होना और सशक्त होना ज्यादा जरूरी है, क्योंकि महिलाओं की संख्या देश की आबादी की आधी है। बिहार की लगभग सभी पार्टियों ने चुनाव में लड़ने के लिए महिलाओं को टिकट दी है जिससे यह पता चलता है कि लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में महिलाएँ राजनीति के क्षेत्र में अपना योगदान अच्छी तरह से दे सकती हैं। अतः बिहार की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बहुत ही महत्वपूर्ण होगी।

बिहार की महिलाएं राष्ट्र की प्रगति के लिए पुरुषों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। खेतीबारी से लेकर वायुयान उड़ाने और अंतरिक्ष तक जा रही है। इसके बावजूद वे दोयम दर्जे की शिकार हैं। ग्रामीण महिलाओं के लिए सरकार ने नई पंचायती राजव्यवस्था में आरक्षण का प्रावधान किया है। गाँवों में आज महिलाएं पंच और सरपंच चुनी जा रही हैं। अतः हम कहते हैं कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी से बिहार राज्य का निरन्तर विकास होगा और लोकतंत्र की जड़ बिहार में और मजबूत होगी।

3.परिवारवाद और जातिवाद बिहार में किस तरह लोकतंत्र को प्रभावित करता है ?

बिहार में परिवारवाद और जातिवाद लोकतंत्र को कई मायने में प्रभावित कर रहा है। हाल के दशकों में यहाँ पर परम्परा बनी कि जिस जनप्रतिनिधि के निधन या इस्तीफे के कारण कोई सीट खाली हुई उसके ही परिवार के किसी व्यक्ति को चुनाव का टिकट दे दिया जाये। यह बिहार के लोकतंत्र के साथ-साथ भारतीय लोकतंत्र को भी प्रभावित करता है। जातिवाद के आधार पर बिहार का जाति के आधार पर बंटवारा यहाँ के लोकतंत्र को एक खतरा है।

बिहार की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में हम कह सकते हैं कि जातिवाद और परिवारवाद लोकतंत्र को कमजोर बनाता है। चुनाव के समय परिवारवाद और जातिवाद के आधार पर टिकटों का बँटवारा होता है जिससे योग्य प्रतिनिधि या उम्मीदवार नहीं आ पाते हैं। जातीय समीकरण बनाने के चक्कर में कभी-कभी अयोग्य उम्मीदवार का चयन हो जाता है जो लोकतंत्र के लिए काफी घातक है। उसी तरह परिवारवाद लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। उदाहरण के लिए 2009 में सम्पन्न बिहार विधान सभा के उपचुनाव के दौरान जनता दल यू. ने परिवार को तरजीह नहीं दिया जिससे पार्टियों में आंतरिक कलह उत्पन्न हो गया और लोकतंत्र को उससे काफी नुकसान पहुंचा।

4.क्या चुने हुए शासक लोकतंत्र में अपनी मर्जी से सब कुछ कर सकते हैं ?

लोकतंत्र में जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनाव के माध्यम से संसद या विधानसभा में भेजती है। चुने हुए प्रतिनिधि जनता की समस्याओं को सरकार के समक्ष प्रस्तुत करते हैं और उन समस्याओं के निराकरण के लिए सरकार से मांग करते हैं। प्रतिनिधि अपनी मर्जी से सब कुछ नहीं कर सकते हैं क्योंकि लोकतंत्र में जनता सर्वमान्य होती है। यदि शासक अपनी मर्जी का काम करते हैं तो जनता उसके विरुद्ध आंदोलन करती है जिससे शासक को खतरा होने लगता है कि ‘ वे सरकार से बाहर हो सकते हैं या जनता भविष्य में उसे नकार न दें। यह भय शासक को अपनी मर्जी से काम करने से बचाता है। परन्तु हाल के वर्षों में यह देखने में आया है कि शासक वर्ग अपनी मनमानी करते हैं जिससे लोकतंत्र को खतरा होने लगता है। वास्तव में लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है साथ ही ताकतबर होती है। वह चाहे तो शासक को अपनी मर्जी का काम करने से रोक सकती है।

5.न्यायपालिका की भूमिका लोकतंत्र की चुनौती है कैसे? इसके सुधार के उपाय क्या हैं?

भारतीय लोकतंत्र प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र है। इसमें शासन का संचालन जन-प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। भारतीय लोकतंत्र के तीन अंग हैं-कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका। लोकतंत्र में न्यायपालिका की भूमिका लोकतंत्र के लिए चुनौती बनती जा रही है। वह अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर कार्यपालिका एवं विधायिका को प्रभावित करती है जिससे संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जब विधायिका कानून पारित करती है तो न्यायपालिका उस कानून को व्यावहारिक-सौर पर उसमें फेर-बदल के लिए विधायिका पर दबाव डालने की कोशिश करती है जिससे टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है।

न्यायपालिका को विधायिका द्वारा बनाये गये कानून पर मनन करना चाहिए जिससे तीनों अंग कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका सामंजस्य बनाकर लोकतंत्र को मजबूत कर सकते हैं।

6.आतंकवाद लोकतंत्र की चुनौती है। स्पष्ट करें।

किसी स्थापित व्यवस्था का विनाश कर अव्यवस्था तथा आतंक फैलाना आतंकवाद है। आतंकवाद के जन्म के मूल कारणों में धार्मिक कट्टरता या आर्थिक विषमता होती है। हिंसा किसी भी राजनीतिक व्यवस्था के लिए अच्छी नहीं होती है। लोकतंत्र में हिंसा या आतंक उत्पन्न हो जाता है जिससे लोकतांत्रिक काम-काज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अतः आतंकवाद लोकतंत्र के लिए चुनौती होता जा रहा है।

आतंकवाद पूरे विश्व में एक ज्वलंत मुद्दा बन गया है। जिसका समाधान विश्व स्तर पर भी हो रहा है। फिर भी आतंकवाद दुनिया के लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था में चुनौती है। यह चुनौती लोकतंत्र के लिए घातक बनता जा रहा है।

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