बिहार में परिवारवाद और जातिवाद लोकतंत्र को कई मायने में प्रभावित कर रहा है। हाल के दशकों में यहाँ पर परम्परा बनी कि जिस जनप्रतिनिधि के निधन या इस्तीफे के कारण कोई सीट खाली हुई उसके ही परिवार के किसी व्यक्ति को चुनाव का टिकट दे दिया जाये। यह बिहार के लोकतंत्र के साथ-साथ भारतीय लोकतंत्र को भी प्रभावित करता है। जातिवाद के आधार पर बिहार का जाति के आधार पर बंटवारा यहाँ के लोकतंत्र को एक खतरा है।
बिहार की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में हम कह सकते हैं कि जातिवाद और परिवारवाद लोकतंत्र को कमजोर बनाता है। चुनाव के समय परिवारवाद और जातिवाद के आधार पर टिकटों का बँटवारा होता है जिससे योग्य प्रतिनिधि या उम्मीदवार नहीं आ पाते हैं। जातीय समीकरण बनाने के चक्कर में कभी-कभी अयोग्य उम्मीदवार का चयन हो जाता है जो लोकतंत्र के लिए काफी घातक है। उसी तरह परिवारवाद लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। उदाहरण के लिए 2009 में सम्पन्न बिहार विधान सभा के उपचुनाव के दौरान जनता दल यू. ने परिवार को तरजीह नहीं दिया जिससे पार्टियों में आंतरिक कलह उत्पन्न हो गया और लोकतंत्र को उससे काफी नुकसान पहुंचा।
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