1.सत्ता की साझेदारी से आप क्या समझते हैं

सत्ता की साझेदारी का तात्पर्य ऐसी साझेदारी से है जिसके अनतर्गत सत्ता का बँटवारा केन्द्रीय तथा प्रांतीय स्तर पर होता है। आम तौर पर सत्ता के बँटवारे को संघवाद कहा जाता है जिसमें दोहरी शासन व्यवस्था पायी जाती है। राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय सरकार तथा प्रांतीय स्तर पर राज्य सरकार जो अपने कार्य और शक्ति का बंटवारा करती हैं। नीचे स्तर की सरकारों के बीच भी सत्ता का बँटवारा होता है जिसे हम स्थानीय स्वशासन के नाम से जानते हैं।

2.सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र में क्या महत्व रखती है ?

लोकतंत्र एक ऐसी शासन-व्यवस्था है जो लोगों का, लोगों के लिए तथा लोगों द्वारा संचालित होती है। इसमें सत्ता का विकेन्द्रीरण होता है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था ही एकमात्र ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें ताकत सभी के हाथों में होती है। सभी को राजनीतिक शक्तियों में हिस्सेदारी या साझेदारी करने की व्यवस्था की जाती है। ये अपने अन्दर के विभिन्न समूहों के बीच प्रतिद्वन्द्विताओं एवं सामाजिक विभाजनों को संभालने की प्रक्रिया विकसित कर लेती है जिससे – इन टकरावों के विस्फोटक रूप लेने की आशंका कम हो जाती है।

कोई भी समाज अपने में व्याप्त विविधताओं और विभिन्नताओं को स्थायी तौर पर खत्म नहीं कर सकता है, पर इन अन्तरों, विभेदों और विविधताओं का आदर करने के लिए उन्हें सत्ता में साझेदार बनाकर समाज में सहयोग, सामंजस्य एवं स्थायित्व का सृजन किया जा सकता है। इस कार्य के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं सबसे अच्छी होती हैं, क्योंकि आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सत्ता की साझेदारी के बहुत सारे प्रावधान किये जाते हैं।

3.सत्ता की साझेदारी के अलग-अलग तरीके क्या हैं

सत्ता की साझेदारी- लोकतंत्र में सरकार की सारी शक्ति किसी एक अंग में सीमित नहीं रहती है, बल्कि सरकार के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बँटवारा होता है। यह बँटवारा सरकार के एक ही स्तर पर होता है। उदाहरण के लिए सरकार के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के बीच सत्ता का बंटवारा होता है और ये सभी अंग एक ही स्तर पर अपनी-अपनी शक्तियों का प्रयोग करके सत्ता में साझेदार बनते हैं। सत्ता के ऐसे बँटवारे से किसी एक अंग के पास सत्ता का जमाव एवं उसके दुरुपयोग की संभावना खत्म हो जाती है। साथ ही हरेक अंग एक-दूसरे पर नियंत्रण रखता है। इसे नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था भी कहते हैं। विश्व के बहुत सारे लोकतांत्रिक देशों जैसे–अमेरिका, भारत आदि में यह व्यवस्था अपनायी गयी है।

सरकार के एक स्तर पर सत्ता के ऐसे बँटवारे को हम सत्ता का क्षैतिज वितरण करते हैं। सत्ता में साझेदारी की दूसरी कार्य प्रणाली में सरकार के विभिन्न स्तरों पर सत्ता की बँटवारा होता है। सत्ता के ऐसे बँटवारे को हम सत्ता का ऊर्ध्वाधर वितरण कहते हैं। इस तरह की व्यवस्था में पूरे देश के लिए एक सामान्य सरकार होती है। प्रांतीय और क्षेत्रीय स्तर पर अलग सरकारें होती हैं। दोनों के बीच सत्ता के स्पष्ट बंटवारे की व्यवस्था संविधान या लिखित दस्तावेज के द्वारा की जाती है। केन्द्रीय राज्य या क्षेत्रीय स्तर की सरकारों से नीचे की स्तर की सरकारों के बीच भी सत्ता का बँटवारा होता है। इसे हम स्थानीय स्वशासन के नाम से जानते हैं।

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