सत्ता की साझेदारी- लोकतंत्र में सरकार की सारी शक्ति किसी एक अंग में सीमित नहीं रहती है, बल्कि सरकार के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बँटवारा होता है। यह बँटवारा सरकार के एक ही स्तर पर होता है। उदाहरण के लिए सरकार के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के बीच सत्ता का बंटवारा होता है और ये सभी अंग एक ही स्तर पर अपनी-अपनी शक्तियों का प्रयोग करके सत्ता में साझेदार बनते हैं। सत्ता के ऐसे बँटवारे से किसी एक अंग के पास सत्ता का जमाव एवं उसके दुरुपयोग की संभावना खत्म हो जाती है। साथ ही हरेक अंग एक-दूसरे पर नियंत्रण रखता है। इसे नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था भी कहते हैं। विश्व के बहुत सारे लोकतांत्रिक देशों जैसे–अमेरिका, भारत आदि में यह व्यवस्था अपनायी गयी है।
सरकार के एक स्तर पर सत्ता के ऐसे बँटवारे को हम सत्ता का क्षैतिज वितरण करते हैं। सत्ता में साझेदारी की दूसरी कार्य प्रणाली में सरकार के विभिन्न स्तरों पर सत्ता की बँटवारा होता है। सत्ता के ऐसे बँटवारे को हम सत्ता का ऊर्ध्वाधर वितरण कहते हैं। इस तरह की व्यवस्था में पूरे देश के लिए एक सामान्य सरकार होती है। प्रांतीय और क्षेत्रीय स्तर पर अलग सरकारें होती हैं। दोनों के बीच सत्ता के स्पष्ट बंटवारे की व्यवस्था संविधान या लिखित दस्तावेज के द्वारा की जाती है। केन्द्रीय राज्य या क्षेत्रीय स्तर की सरकारों से नीचे की स्तर की सरकारों के बीच भी सत्ता का बँटवारा होता है। इसे हम स्थानीय स्वशासन के नाम से जानते हैं।
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