मृदा पारितंत्र का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह न केवल पौधों के विकास का मध्यम है। बल्कि पृथ्वी पर विविध जीव समुदायों का पोषण भी करती है। मृदा में निहित उर्वरता मानव के आर्थिक क्रियाकलाप को प्रभावित करती है और देश की नियति का भी निर्धारण करती है। मृदा निर्माण एक लंबी अवधि में पूर्ण होने वाली जटिल प्रक्रिया है। इसके नष्ट होने के साथ संपत्ति एवं संस्कृति दोनों ध्वस्त हो जाती है।
मदा का अपने स्थान से विविध क्रियाओं द्वारा स्थानांतरित होना भ-क्षरण कहलाता है। यह मृदा की एक बहुत बड़ी समस्या है। मृदा का क्षरण कई कारणों जैसे वायु और जल के तेज बहाव से, जलक्रांतता से, अतिपशुचारण से, खनन रसायनों का अत्यधिक उपयोग जैसी मानवीय अनुक्रियाओं द्वारा होता है। – वृक्षारोपण, पट्टिका कृषि, फसलचक्रण, समोच्च कृषि इत्यादि द्वारा भू-क्षरण को रोकना मृदा संरक्षण का मुख्य तरीका है।
वृक्षारोपण मृदा संरक्षण की सबसे बड़ी शर्त है; जिससे मृदा को बाधा पहुँचती है और इनकी पत्तियों से प्राप्त ह्यूमस मृदा की गुणवत्ता को बढ़ाने में सहायक होते हैं।
रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद का उपयोग मृदा संरक्षण में सहायक होता है।
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