अवतल दर्पण के मुख्य अक्ष के समांतर आपतित सभी किरणें परावर्तित होकर मुख्य अक्ष के एक बिंदु पर प्रतिच्छेद करती हैं। यह बिंदु अवतल दर्पण का मुख्य फोकस कहलाता है।
एक गोलीय दर्पण की वक्रता त्रिज्या \(20 \mathrm{~cm}\) है। इसकी फोकस दूरी क्या होगी?
उत्तर दिया है-
\(
\begin{aligned}
&\mathrm{R}=20 \mathrm{~cm} \\
&\mathrm{R}=2 f \\
&f=\frac{\mathrm{R}}{2}, \quad f=\frac{20}{2}=10 \mathrm{~cm}
\end{aligned}
\)
दिया है-
\(
\begin{aligned}
&\mathrm{R}=20 \mathrm{~cm} \\
&\mathrm{R}=2 f \\
&f=\frac{\mathrm{R}}{2}, \quad f=\frac{20}{2}=10 \mathrm{~cm}
\end{aligned}
\)
वाहनों में उत्तल दर्पण को पश्च-दृश्य दर्पण के रूप में वरीयता निम्न कारणों से देते हैं
- यह सदैव सीधा एवं छोटा प्रतिबिंब बनाते हैं।
- इनका दृष्टि-क्षेत्र बहुत अधिक होता है क्योंकि ये बाहर की ओर वक्रित होते हैं। अतः समतल दर्पण की तुलना में उत्तल दर्पण ड्राइवर को अपने पीछे के बहुत बड़े क्षेत्र को देखने में सक्षम बनाते हैं।
उत्तल दर्पण की वक्रता-त्रिज्या \(\quad R=32 \mathrm{~cm}\)
अतः
\(
f=\frac{\mathrm{R}}{2}=\frac{32}{2}=16 \mathrm{~cm}
\)
अतः उत्तल दर्पण की फोकस दूरी 16cm होगी।
\[
\begin{aligned}
&\begin{array}{lrl}
& {1}{l}{\begin{array}{l}
\text { बिंब-दूरी } \\
\text { आवर्धन }
\end{array}} & m=-3 \mathrm{~cm} \\
& m & =-3 \text { चूँकि प्रतिबिंब वास्तविक है। } \\
\text { बिंब-दूरी } & & u=-10 \mathrm{~cm} \\
\text { आवर्धन } & m & =-3 \text { चूँकि प्रतिबिंब वास्तविक है। } \\
& \because & m & =\frac{-v}{u} \\
\Rightarrow & -3 & =\frac{-v}{-u} \Rightarrow v=-30 \mathrm{~cm} \\
\because \quad & m= & \frac{-v}{u} \\
\Rightarrow & -3 & =\frac{-v}{-u} \Rightarrow v=-30 \mathrm{~cm}
\end{array}\\
&\text { अतः प्रतिबिंब दर्पण के सामने } 30 \mathrm{~cm} \text { की दूरी पर बनता है। }
\end{aligned}
\]
प्रकाश की किरण जब वायु से जल में गमन करती है तो यह अभिलंब की ओर झुकेगी, क्योंकि जल, वायु की तुलना में सघन माध्यम है। अर्थात् प्रकाश की किरणें विरल से सघन माध्यम में प्रवेश करने पर अभिलंब की ओर झुकेगी।
दिया है-
निर्वात में प्रकाश की चाल
(c) \(=3 \times 10^{8} \mathrm{~m} / \mathrm{s}\)
काँच की प्लेट का अपवर्तनांक
\(\left(n_{m}\right)=1.50\)
\(n_{m}=\frac{c}{v} ; v=\) काँच में प्रकाश की चाल
\(\Rightarrow\)
\(\begin{aligned} 1.50 &=\frac{3 \times 10^{8}}{v} \\ v &=\frac{3 \times 10^{8}}{1.5}=2 \times 10^{8} \mathrm{~m} / \mathrm{s} \end{aligned}\)
अतः काँच में प्रकाश की चाल \(=2 \times 10^{8} \mathrm{~m} / \mathrm{s}\)
किरोसिन का अपवर्तनांक
तारपीन के तेल का अपवर्तनांक
जल का अपवर्तनांक
यहाँ जल का अपवर्तनांक न्यूनतम है। अत: केरोसिन तथा तारपीन के तेल की अपेक्षा जल में प्रकाश सबसे
अधिक तीव्र गति से चलता है।
क्योंकि \(\mathrm{v}=\frac{c}{n}\) के अनुसार न्यूनतम अपवर्तनांक वाले माध्यम में प्रकाश़ का वेग (चाल) अधिकतम होगा।
हमें ज्ञात है कि किसी माध्यम का अपवर्तनांक \(n_{m}=\frac{\text { वायु (या निर्वात) में प्रकाश की चाल }}{\text { माध्यम में प्रकाश की चाल }}\) अर्थात्
दिया है\(n_{m}=\frac{c}{v}\)
\(\Rightarrow\) \(c=3 \times 10^{8} \mathrm{~m} / \mathrm{s}\) तथा \(n_{m}=2.42\) \(v=\frac{c}{n_{m}}=\frac{3 \times 10^{8} \mathrm{~m} / \mathrm{s}}{2.42} \Rightarrow v=1.24 \times 10^{8} \mathrm{~m} / \mathrm{s}\)
1 डाइऑप्टर उस लेंस की क्षमता है, जिसकी फोकस दूरी 1 मीटर हो। अर्थात् 1D =1m-1 होती है।
चूँकि उत्तल लेंस द्वारा सुई का वास्तविक और उल्टा प्रतिबिंब लेंस से 50cm दूर बनता है। इसलिए,
\[
\begin{aligned}
&\begin{aligned}
v &=+50 \mathrm{~cm} \\
\text { इसालिए, } & \text { दिया है- प्रतिबिंब का साइज़ }\left(h^{\prime}\right)=\text { बिंब का साइज़ }(h) \\
\therefore & \frac{h^{\prime}}{h}=\frac{v}{u} \Rightarrow \frac{h}{h}=\frac{v}{u} \\
\Rightarrow \quad v &=50 \mathrm{~cm} \\
\text { परिपाटी के अनुसार } & u=-50 \mathrm{~cm} \\
\frac{1}{v}-\frac{1}{u} &=\frac{1}{f}=\frac{1}{(50 \mathrm{~cm})}-\frac{1}{(-50 \mathrm{~cm})} \\
&=\frac{1}{50}+\frac{1}{50}=\frac{1}{25} \mathrm{~cm} \\
\quad f &=+25 \mathrm{~cm}=+0.25 \mathrm{~m} \\
\quad \mathrm{P} &=\frac{1}{f}=\frac{1}{0.25 \mathrm{~cm}}=+4 \mathrm{D} \\
\therefore \text { लेंस की क्षमता } & \\
\text { इसलिए, } &=+50 \mathrm{~cm} \\
\text { दिया है- प्रतिबिंब का साइज़ }\left(h^{\prime}\right) &=\text { बिंब का साइज़ }(h) \\
\therefore & \frac{h^{\prime}}{h}=\frac{v}{u} \Rightarrow \frac{h}{h}=\frac{v}{u} \\
\Rightarrow \quad v=& u=50 \mathrm{~cm} \\
\text { परिपाटी के अनुसार } & u=-50 \mathrm{~cm}
\end{aligned}
\end{aligned}
\]
\[
\begin{aligned}
\frac{1}{v}-\frac{1}{u} &=\frac{1}{f}=\frac{1}{(50 \mathrm{~cm})}-\frac{1}{(-50 \mathrm{~cm})} \\
&=\frac{1}{50}+\frac{1}{50}=\frac{1}{25} \mathrm{~cm} \\
f &=+25 \mathrm{~cm}=+0.25 \mathrm{~m} \\
\therefore \text { लेंस की क्षमता } \quad \mathrm{P} &=\frac{1}{f}=\frac{1}{0.25 \mathrm{~cm}}=+4 \mathrm{D}
\end{aligned}
\]
बिंब का दर्पण से दूरी का परिसर 0 cm से 15cm के बीच होना चाहिए, क्योंकि जब बिंब दर्पण के ध्रुव P तथा मुख्य फोकस F के बीच स्थित होता है, तभी उसका सीधा प्रतिबिंब बनता है।
किरण आरेख-
प्रतिबिंब की प्रकृति- आभासी तथा सीधा, प्रतिबिंब का साइज़ बिंब से बड़ा है।
- कार की हैडलाइटों में अवतल दर्पण का प्रयोग किया जाता है। बल्ब दर्पण के मुख्य फोकस पर रख दिया जाता है ताकि प्रकाश की किरणें दर्पण से परावर्तन के बाद उसके मुख्य अक्ष के समांतर हो जाएँ तथा प्रकाश का सीधा और शक्तिशाली किरण पुंज मिले।
- किसी वाहन के पाश्र्व/पश्च-दृश्य दर्पण के लिए उत्तल दर्पण का प्रयोग किया जाता है क्योंकि ये सदैव छोटा परंतु सीधा प्रतिबिंब बनाते हैं। बाहर की ओर वक्रित होने के कारण इनका दृष्टि क्षेत्र भी ज्यादा होता अवतल दर्पण है, जिसके कारण ड्राइवर पीछे के बहुत बड़े क्षेत्र को देखने में समर्थ होता है।
- सौर भट्टी में सूर्य के प्रकाश को केंद्रित करने के लिए बड़े अवतल दर्पणों का उपयोग किया जाता है। आपतित सूर्य की किरणें अनंत दूरी से आने वाली समांतर किरणें होती हैं जो अवतल दर्पण से परावर्तित होकर इसके फोकस बिंदु पर फोकसित होती हैं, जिससे ताप तेजी से 180°C-200°C तक बढ़ जाता है।
हाँ, किसी उत्तल लेंस का आधा भाग काले कागज़ से ढक देने पर भी उत्तल लेंस दिए गए बिंब का पूरा प्रतिबिंब बनाता है। प्रायोगिक विधि द्वारा जाँच-सर्वप्रथम एक उत्तल लेंस लीजिए तथा इसके आधे भाग को काले कागज़ से ढक दीजिए। अब लेंस को किसी स्टैंड के सहारे दी गई आकृति के अनुसार रखिए। लेंस के एक तरफ़ जलती हुई मोमबत्ती तथा दूसरी तरफ़ एक सफ़ेद पर्दा रखिए। हम पाते हैं कि पर्दे पर मोमबत्ती का पूरा उल्टा प्रतिबिंब बनता है।
अवतल लेंस के लिए u तथा f ऋणात्मक है क्योंकि प्रतिबिंब आभासी होता है।
\[
\begin{aligned}
f &=+15 \mathrm{~cm} \text { (उत्तल दर्पण की फोकस दूरी धनात्मक होती है) } \\
\mathrm{u} &=-10 \mathrm{~cm}
\end{aligned}
\]
अत: दर्पण सूत्र द्वारा-
\[
\begin{gathered}
\frac{1}{f}=\frac{1}{v}+\frac{1}{u} \Rightarrow \frac{1}{15}=\frac{1}{v}+\frac{1}{(-10)} \\
\Rightarrow \quad \frac{1}{15}+\frac{1}{10}=\frac{1}{v} \Rightarrow \frac{1}{v}=\frac{2+3}{30}=\frac{5}{30} \\
\Rightarrow \quad v=\frac{30}{5}=+6 \mathrm{~cm}
\end{gathered}
\]
उत्तर
\(\because\)
\[
\begin{aligned}
&m=\frac{-v}{u}=\frac{h^{\prime}}{h} \\
&+1=\frac{-v}{u}=\frac{h^{\prime}}{h} \\
&v=-u \text { तथा } h=\mathrm{h}^{\prime}
\end{aligned}
\]
अर्थात् m = +1 दर्शाता है कि प्रतिबिंब तथा बिंब के साइज़ बराबर हैं। m का धनात्मक चिह्न दर्शाता है कि प्रतिबिंब आभासी तथा सीधा है। साथ ही, प्रतिबिंब दर्पण से ठीक उतना ही पीछे बनता है, जितनी दूरी पर वस्तु (बिंब) इसके सामने स्थित है।
\[
\begin{aligned}
f &==15 \mathrm{~cm} \quad \text { (उत्तल दर्पण के लिए } \mathcal{f} \text { धनात्मक होता है) } \\
f &=+15 \mathrm{~cm}, u=-20 \mathrm{~cm}, h=5.0 \mathrm{~cm} \\
\frac{1}{v}+\frac{1}{u} &=\frac{1}{f} \\
\frac{1}{v}+\frac{1}{(-20)} &=\frac{1}{15} \\
\frac{1}{v}=\frac{1}{15}+\frac{1}{20} & \Rightarrow \frac{1}{v}=\frac{7}{60} \\
v &=\frac{60}{7} \mathrm{~cm} .=8.6 \mathrm{~cm}
\end{aligned}
\]
दर्पण सूत्र द्वारा-
\[
\frac{1}{v}+\frac{1}{u}=\frac{1}{f}
\]
\(\therefore\)
अतः प्रतिबिंब आभासी तथा सीधा और दर्पण के पीछे \(8.6 \mathrm{~cm}\) की दूरी पर बनता है।
\[
\begin{aligned}
m &=\frac{-v}{u}=\frac{\frac{-60}{7}}{-20}=\frac{3}{7} \\
\Rightarrow \quad \frac{h^{\prime}}{h}=\frac{3}{7} \Rightarrow \frac{h^{\prime}}{5} &=\frac{3}{7} \\
\Rightarrow \quad h^{\prime} &=\frac{15}{7}=2.2 \mathrm{~cm}
\end{aligned}
\]
\[ h=+7 \mathrm{~cm}, \quad u=-27 \mathrm{~cm}, f=-18 \mathrm{~cm}, \text { (अवतल दर्पण) } \] \[ \begin{aligned} \frac{1}{v}+\frac{1}{u}=\frac{1}{f} & ?^{\prime}=? \\ \text { दर्पण सूत्र द्वारा- } & \frac{1}{v}+\frac{1}{(-27)}=\frac{1}{(-18)} \\ \therefore & \frac{1}{v}=\frac{-1}{18}+\frac{1}{27}=\frac{-3+2}{54}=\frac{-1}{54} \\ & v=-54 \mathrm{~cm} . \\ \therefore & m=\frac{-v}{u}=\frac{-54}{-27}=-2 \\ & \frac{h^{\prime}}{h}=m \Rightarrow \frac{h^{\prime}}{7}=-2 \\ & \Rightarrow h^{\prime}=-14 \mathrm{~cm} . \end{aligned} \]
\(\therefore \quad \frac{1}{v}+\frac{1}{(-27)}=\frac{1}{(-18)}\)
\(\therefore \quad \frac{1}{v}=\frac{-1}{18}+\frac{1}{27}=\frac{-3+2}{54}=\frac{-1}{54}\)
\(v=-54 \mathrm{~cm}\).
साथ ही,
प्रतिबिंब का साइज़ 14cm है जो बिंब से आवर्धित (बड़ा) है।
प्रतिबिंब की प्रकृति- चूँकि v का मान ऋणात्मक है, इसलिए प्रतिबिंब वास्तविक तथा उल्टा है।
उत्तर
लेंस की क्षमता
\[
\begin{aligned}
&\mathrm{P}=-2.0 \mathrm{D} . \\
&\mathrm{P}=\frac{1}{f} \quad \therefore \quad f=\frac{1}{\mathrm{P}}=\frac{1}{-2.0 \mathrm{D}}=-0.5 \mathrm{~m} .
\end{aligned}
\]
चूँकि लेंस की क्षमता और फोकस दूरी का मान ऋणात्मक है, इसलिए यह एक अवतल लेंस या अपसारी लेंस (concave lens) है।