1. हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों अपर्याप्त है?

बहुकोशिकीय जीवों को भोजन ग्रहण करने के लिए, गैसों का आदान-प्रदान करने के लिए या वर्ज्य पदार्थ के निष्कासन के लिए विशिष्टीकृत अंग होते हैं| इसलिए इन जीवों में सभी कोशिकाएँ अपने आसपास के पर्यावरण के सीधे संपर्क में नहीं रह सकतीं| यही कारण है कि हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण अपर्याप्त है|
 

2.कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदंड का उपयोग करेंगे?

कोई जीवित है या नहीं इसका निर्धारण ऐसी कोई भी दिखने वाली गति जैसे, चलना, साँस लेना या वृद्धि करने से किया जाता है| जबकि सजीवों में ऐसी गतियाँ भी होती है जिन्हें हम नग्न आँखों से नहीं देख सकते है| इसलिए जीवन-प्रक्रिया की उपस्थिति मौलिक मापदंड है जिससे तय किया जा सकता है कि कुछ जीवित है या नहीं|
 

3. किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है?

किसी जीव द्वारा निम्नलिखित कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है:

• ऊर्जा और सामग्री के स्रोत के रूप में भोजन|

• भोजन के टूट कर उससे ऊर्जा प्रोत करने के लिए ऑक्सीजन|

• शारीर के अन्दर भोजन तथा अन्य कार्यों के उचित पाचन के लिए पानी|

4.जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे?

जीवन के अनुरक्षण के लिए जैव प्रक्रिया जैसे, पोषण, उत्सर्जन, श्वसन, परिवहन आवश्यक है|
 

5. स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में क्या अंतर है?

स्वयंपोषी पोषण विषमपोषी पोषण
भोजन को सरल अकार्बनिक कच्चे माल जैसे जल और CO2 से संशलेषित किया जाता है| भोजन को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त किया जाता है| भोजन को एंजाइम के मदद से तोड़ा जाता है|
क्लोरोफिल की आवश्यकता होती है| क्लोरोफिल की कोई आवश्यकता नहीं होती|
सामान्यतः भोजन का निर्माण दिन के समय होता है| भोजन का निर्माण कभी भी किया जा सकता है|
सभी हरे पौधे तथा कुछ जीवाणुओं में इस प्रकार का पोषण होता है| सभी जीवों तथा कवक में यह पोषण होता है|

6. प्रकाशसंश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्त करता है?


प्रकाशसंश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्रियाँ निम्नलिखित है:
• कार्बन डाइऑक्साइड: पौधे कार्बन डाइऑक्साइड अपने पत्तियों के सतह पर बने सूक्ष्म छिद्रों के द्वारा प्राप्त करते हैं
• जल: पौधे जल की पूर्ति जड़ों द्वारा मिट्टी में उपस्थित जल के अवशोषण से करते हैं|
• सूर्य का प्रकाश: पौधे क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करते हैं|

7. हमारे आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है?

हमारे आमाशय में अम्ल की निम्नलिखित भूमिका है:

• माशय में स्थित हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भोजन के टुकड़ों को घोलने में मदद करता है तथा एक अम्लीय माध्यम तैयार करता है| इस अम्लीय माध्यम में एंजाइम पेप्सिनोजेन को पेप्सिन में परिवर्तित करता है जो कि एक प्रोटीन पाचक एंजाइम है|

• यह भोजन के साथ प्रवेश करने वाले बैक्टीरिया तथा सूक्ष्मजीवों को नष्ट करता है|

8.पाचक एंजाइमों का क्या कार्य है?

एमीलेस, लाइपेज, पेप्सिन, ट्रिप्सिन इत्यादि जैसे पाचन एंजाइम, भोजन को सरल कणों  में तोड़ने में मदद करते हैं| ये सरल कण रक्त द्वारा आसानी से अवशोषित हो जाते है और इस प्रकार शरीर के सभी कोशिकाओं तक पहुँचाते हैं|
 

9.पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुदांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है?

क्षुदांत्र के आन्तरिक आस्तर पर अनेक अँगुली जैसे प्रवर्ध होते हैं जिन्हें दीर्घरोम कहते हैं| ये अवशोषण का सतही क्षेत्रफल बढ़ा देते हैं| दीर्घरोम में रूधिर वाहिकाओं की बहुतायत होती है जो भोजन को अवशोषित करके शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाते हैं| यहाँ इसका उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने, नए ऊत्तकों के निर्माण और पुराने उत्तकों की मरम्मत में होता है|
 

10. श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस तरह लाभप्रद है?

स्थलीय जीव वायुमंडलीय ऑक्सीजन लेते हैं, परंतु जलीय जीव जल में विलेय ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं| जल की तुलना में वायु में ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है| चूँकि वायु में ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है इसलिए स्थलीय जीवों को अधिक ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए तेजी से साँस लेने की आवश्यकता नहीं होती है| इसलिए जलीय जंतु के विपरीत, स्थलीय जीवों को गैसीय आदान-प्रदान के लिए अनुकूलन की आवश्यकता नहीं होती है|

11. ग्लूकोज़ के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं?

मांसपेशियों में ग्लूकोज ऑक्सीजन कि पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीकृत होकर ऊर्जा प्रदान करता है तथा लैक्टिक अम्ल बनता है। जीवों की कोशिकाओं में ऑक्सीकरण पथ निम्न होता है – 

  1. वायवीय श्वसन – इस प्रक्रम में ऑक्सीजन, ग्लूकोज का विखंडन कर के जल तथा CO2 में तोड़ देता है। ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा में ग्लूकोज़ का विश्लेषण होकर 3 कार्बन परमाणु या पाइरुवेट के दो अनु निर्मित करता है।
  2. अवायवीय श्वसन – ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में यीस्ट में किण्वन क्रिया होती है तथा पाइरुवेट इथेनॉल व CO2 का निर्माण होता है।
  3. ऑक्सीजन की कमी में लैक्टिक अम्ल का निर्माण होता है, जिससे मांसपेशियों में क्रैंप आते है।

12. मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?

 मनुष्य के शरीर में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड गैस का परिवहन रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन नामक वर्णक की मदद से होता है। यह वर्णक फेफड़ों के वायुकोष में उपस्थित वायु से ऑक्सीजन को ग्रहण कर इसे शरीर के विभिन्न कोशिकाओं में विसरित कर देता है। पुन: यह उपापचय क्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड गैस को कर रक्त परिवहन के दौरान फेफड़ों तक पहुँचाता है। फेफड़ों द्वारा इस कार्बन डाइऑक्साइड गैस को शरीर से बाहर निकल दिया जाता है।

13.गैसों के विनिमय के लिए मानव-फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अभिकल्पित किया है?

 मानव-फुफ्फुस में अनगिनत कुपिकाएँ होती है। यदि इनके सम्मिलित क्षेत्रफल का आकलन किया जाए तो वह लगभग 80 वर्गमीटर के बराबर होता है। अतः इन कुपिकाओं की ही अभिकल्पना करे तो हमारे फुफ्फुस को क्षेत्रफल अधिकतम हो जाता है।

14. मानव में वहन तंत्र के घातक कौन से हैं? इन घटकों के क्या कार्य हैं?

मानव में वहन तंत्र के घातक और उनके कार्य निम्न हैं – 
A. रुधिर – मानव ह्रदय से रुधिर गति में होकर शरीर के विभिन्न हिस्सों में अपने विशेष कारकों के माध्यम से पोषण पहुँचाता है। जिससे सभी कोशिकाएँ पोषण प्राप्त करती है।

B. रक्त वाहिकाएँ – रक्त वाहिका एक लचीली पाइपनुमा व्यवस्था होती है, जिसमे रुधिर सतत गति से बहता रहता है।

C. ह्रदय – यह मुठ्ठी के आकर का चार वेश्मी होता है। यह रुधिर को रुधिर वाहिकाओं के माध्यम से पम्प कर शरीर के विभिन्न हिस्सों में पहुँचाने का काम करता है।

15.स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विओक्सीजनित रुधिर को अलग करना क्यों आवश्यक है?

स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विओक्सीजनित रुधिर को अलग करने की आवश्यकता होती है इसका कारण यह है कि ऐसे जीवों में उनके शरीर के तप को नियंत्रित करने हेतु अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है अथवा उनकों कार्य करने के लिए भी अचानक ऊर्जा की आवश्यकता पड़ जाती है।

16. उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के घातक क्या है?

जाइलम – यह उत्तक जड़ों द्वारा मृदा से जल तथा लवण अवशोषित कर पौधों के विभिन्न भागों से होते हुए पत्तियों तक पहुँचाता है।

 फ्लोएम – यह उत्तक पत्तियों द्वारा निर्मित भोजन को पौधों के विभिन्न भागों तक आवश्यकतानुसार पहुँचाने का कार्य करता है।

17.पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है?

 पादप में जल तथा खनिज लवण का वहन जाइलम करता है, यह उत्तक जमीन से लवण तथा जल जब अवशोषित करता है तो यह क्रिया सांद्रता के अंतर पर सम्पादित होती है। मिट्टी के जल तथा लवण की सांद्रता तथा पादप में महीन नलिकाओं में उपस्थित जल तथा लवण की सांद्रता में अंतर होने के कारण जल ऊपर की ओर चढाने लगता है और पत्तियों तक पहुँच कर कुछ वाष्प में भी बदल जाता है। इस प्रकार यह क्रिया सतत बानी रहती है और जल का चूषण होता रहता है।

18.पादप में भोजन का स्थानांतरण कैसे होता है?

पादप में भोजन का स्थानान्तरण फ्लोएम उत्तक द्वारा संपन्न होता है। पत्तियों द्वारा भोजन पर परासरण डाब बढ़ा दिया जाता है, जिससे निर्मित भोजन फ्लोएम उत्तका के माध्यम से पौधों के प्रत्येक वांछित स्थान तक पहुँचाया जाता है।

19. वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।

 वृक्क का निर्माण असंख्य सूक्ष्म कुण्डलित वृक्क नलिकाओं या नेफ्रॉन या वृक्काणु से होता है।
नेफ्रॉन के मुख्यत: दो भाग होते है – 
(i) मैलपीली कोष (Malpighian corpuscles)
(ii) स्त्रावी नलिका (Secretory tubule) मैलपीली कोष (Malpighian corpuscles) – मैलपीली कोष के भी दो भाग होते है –
पहला भाग एक प्यालेनुमा संरचना बोमैन सम्पुट (Bowman’s Capsule) तथा 
दूसरा भाग बोमैन सम्पुट की गुहा में रक्त केशिकाओं से बना केशिकगुच्छ (Glomerulus) होता है।

(ii) स्त्रावी नलिका (Secretory tubule) – बोमैन सम्पुट को छोड़कर वृक्क नलिका का शेष भाग स्त्रावी नलिका कहलाता है। यह समीपस्थ कुण्डलित नलिका, दूरस्थ कुण्डलित नलिका तथा हेनले के लूप में बँटी होती है। वृक्क नलिका का अंतिम भाग संग्रह नलिका (Collecting Tubule) में खुलता है।

क्रियाविधि (Mechanism)

बोमैन सम्पुट में परानिस्पंदन द्वारा रुधिर से उत्सर्जी पदार्थ व जल पृथक हो जाते है। प्रारम्भिक निस्यंद में कुछ पदार्थ जैसे ग्लूकोज, एमिनो अम्ल, लवण और प्रचुर मात्रा में जल रह जाते हैं। जैसे-जैसे मूत्र इस नलिका में प्रवाहित होता है, इन पदार्थों का चयनित पुनरवशोषण हो जाता है। जल की मात्रा पुनरवशोषण शरीर में उपलब्ध अतिरिक्त जल की मात्रा पर, तथा कितना विलेय वजर्य उत्सर्जित करना है, पर निर्भर करता है। प्रत्येक वृक्क में बनने वाला मूत्र एक लम्बी नलिका, मूत्रवाहिनी में प्रवेश करता है जो वृक्क को मूत्राशय से जोड़ती है। मूत्राशय में मूत्र भंडारित रहता है  जब तक कि फैले हुए मूत्राशय का दाब मूत्रमार्ग द्वारा उसे बाहर न कर दे। मूत्राशय पेशीय होता है अतः यह तंत्रिका नियंत्रण में है। परिणामस्वरूप हम प्राय: मूत्र निकासी को नियंत्रित कर लेते हैं। 

20.उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं।

 उत्सर्जी उत्पाद से छूटकारा पाने के लिए निम्न विधिया है –

  • प्रकाश-सश्लेषण में पौधे ऑक्सीजन उत्पन्न करते है तथा कार्बन-डाइआक्साइड श्वसन के लिए रंध्रो द्वारा उपयोग में लाते है।
  • पौधे अधिक संख्या में उपस्थित जल को वाष्पोत्सर्जन क्रिया द्वारा कम कर सकते है।
  • पौधे कुछ अपशिष्ट पदार्थ को अपने आस-पास के मृदा को उत्सर्जित कर देते है।

21. मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है?

 मूत्र बनने की मात्रा इस प्रकार नियंत्रित की जाती है ताकि शरीर में जल का संतुलन बना रहे।

  • सर्दियों में शरीर से पसीना न आने के कारण हमारे द्वारा पिए गए पानी का उत्सर्जन जरूरी हो जाता है। रक्त से पानी को दोबारा अवशोषित नहीं किया जाता, बल्कि इसे मूत्र के रूप में उत्सर्जित कर दिया जाता है, जिससे सर्दियों में मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है।
  • गर्मियों में पसीने के कारण शरीर से पानी की हानि हो जाती है। इससे मूत्र में पानी को कम करने की जरूरत होती है ताकि शरीर में पानी की कमी न हो। इसीलिए वृक्काणु के विभिन्न भाग जल को दुबारा अवशोषित कर लेते हैं, जिससे गर्मियों में मत्र की मात्रा घट जाती है।
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