मूत्र बनने की मात्रा इस प्रकार नियंत्रित की जाती है ताकि शरीर में जल का संतुलन बना रहे।
- सर्दियों में शरीर से पसीना न आने के कारण हमारे द्वारा पिए गए पानी का उत्सर्जन जरूरी हो जाता है। रक्त से पानी को दोबारा अवशोषित नहीं किया जाता, बल्कि इसे मूत्र के रूप में उत्सर्जित कर दिया जाता है, जिससे सर्दियों में मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है।
- गर्मियों में पसीने के कारण शरीर से पानी की हानि हो जाती है। इससे मूत्र में पानी को कम करने की जरूरत होती है ताकि शरीर में पानी की कमी न हो। इसीलिए वृक्काणु के विभिन्न भाग जल को दुबारा अवशोषित कर लेते हैं, जिससे गर्मियों में मत्र की मात्रा घट जाती है।