किसी विद्युत धारा के सतत् तथा बंद पथ को विद्युत परिपथ कहते हैं। इससे विद्युत धारा प्रवाहित हो सकती है परंतु यदि परिपथ कहीं से टूट जाए या स्विच ऑफ कर दिया जाए, तो धारा का प्रवाह बंद हो जाता है।
विद्युत धारा का SI मात्रक ऐम्पियर है। यदि किसी चालक से प्रति सेकंड 1 कूलॉम आवेश प्रवाहित होता है, तो विद्युत धारा का मान 1 ऐम्पियर कहलाता है। अतः
हमें ज्ञात है कि 1 इलेक्ट्रॉन पर आवेश का मान e = 1.6 x 10-19C होता है।
अतः 1C आवेश की रचना करने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या (n) =
= 6.25×10-18 इलेक्ट्रॉन
चालक के सिरों पर विभवांतर बनाए रखने वाली उस युक्ति का नाम बैट्री है, जो एक या अधिक विद्युत सेलों से बनी होती है।
जब हम कहते हैं दो बिंदुओं के बीच विभवांतर 1V है, तो इसका यह तात्पर्य है कि एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक 1 कूलॉम (1C) आवेश को ले जाने में 1 जूल (1J) कार्य करना पड़ेगा।
किसी चालक का प्रतिरोध निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है
हम जानते हैं कि किसी चालक तार का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात्
चूँकि मोटे तार के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल अधिक होता है।
अतः मोटे तार का प्रतिरोध पतले तार के प्रतिरोध की अपेक्षा कम होगा, जिसके फलस्वरूप मोटे तार से विद्युत धारा आसानी से प्रवाहित होगी।
चूँकि प्रतिरोध, R =
(ओम के नियम से)
माना कि विभवांतर (V1) से घटाकर V2 कर दिया गया है। तक V2 = चूँकि बँक प्रतिरोध नियत रहता है।
अतः विभवांतर आधा हो जाने पर धारा भी आधी हो जाएगी।
विद्युत टोस्टरों तथा विद्युत इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्रधातु (या मिश्रातु) के इसलिए बनाए जाते हैं क्योंकि-
श्रेणी क्रम में संयोजन के लिए व्यवस्था आरेख-
यहाँ ऐमीटर को श्रेणीक्रम तथा वोल्टमीटर को 12Ω के प्रतिरोध
क के पाश्र्वक्रम में संयोजित किया गया है।
यदि R1 R2 R3…………….. पाश्र्वक्रम में संयोजित हैं तब इसके तुल्य प्रतिरोध [RP] का मान होगा-
स्पष्टतः पार्श्वक्रम में तुल्य प्रतिरोध का मान संयोजन में जुड़े अल्पतम प्रतिरोध से भी कम होता है।
वैद्युत युक्तियों को पाश्र्वक्रम में संयोजित करने के निम्नलिखित लाभ हैं-
(a) माना कि R1 = 2Ω, R2 = 3Ω तथा R3 = 6Ω है।
उत्तर
विद्युत डोरी तथा तापन अवयव दोनों श्रेणीक्रम में जुड़े होते हैं जिससे दोनों में समान धारा प्रवाहित होती है परंतु डोरी | का प्रतिरोध अत्यंत कम होता है जबकि तापन अवयव विशुद्ध रूप से प्रतिरोधक है जिसका प्रतिरोध काफी ज्यादा होता है। अतः जूल के नियम से HαR होता है। इसलिए विद्युत स्रोत की ऊर्जा पूर्ण रूप से ऊष्मा में बदलकर तापन अवयव उत्तप्त हो जाता है जबकि डोरी के ताप में नगण्य वृद्धि होती है।
उत्तर
किसी विद्युत धारा द्वारा प्रदत्त ऊर्जा की दर विद्युत शक्ति (p)” के द्वारा निर्धारित होती है।
विभवांतर मापने के लिए वोल्टमीटर को दो बिंदुओं के बीच पाश्र्वक्रम में संयोजित किया जाता है।
दिया है R1 = R2 = R3 = 6Ω
(ii) 4Ω कुल प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए निम्न आकृति के अनुसार।
6Ω के तीन प्रतिरोधकों को संयोजित करेंगे।
6Ω वाले दो प्रतिरोधकों को श्रेणीक्रम में तथा शेष बचे एक प्रतिरोध A क को पाश्र्वक्रम में।
Rs =6 + 6 = 12Ω [∵ 6Ω वाले दो प्रतिरोधक श्रेणी क्रम में हैं। 12Ω और शेष बचे 6Ω का तुल्य प्रतिरोध-
दिया है—प्रत्येक बल्ब की शक्ति P = 10W और वोल्टता V=220V है।
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