बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, असम, बंगाल इत्यादि राज्यों में जलोढ़ मिट्टी का विस्तार है। इस मृदा में गन्ना, चावल, गेहूँ, मक्का, दलहन इत्यादि फसलें उगाई जाती हैं।
पहाड़ी ढलानों पर जल के तेज बहाव से बचने के लिए सीढ़ीनुमा ढाल बनाकर की जाने वाली खेती को समोच्च कृषि कहते हैं। इससे मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।
समोच्च कृषि (Contour Farming) एक कृषि तकनीक है जिसमें खेतों को पहाड़ी या ढलान वाली भूमि की समोच्च रेखाओं (contour lines) के समानांतर जोता और फसलें लगाई जाती हैं। इस पद्धति का मुख्य उद्देश्य मिट्टी के कटाव को रोकना और पानी की बचत करना है। समोच्च रेखाएं वे काल्पनिक रेखाएं होती हैं जो एक समान ऊँचाई पर होती हैं।
समोच्च कृषि के लाभ:
- मिट्टी का कटाव कम करना: पानी की धारा को धीमा करके मिट्टी के बहाव को कम किया जाता है।
- जल संरक्षण: बारिश का पानी अधिक समय तक खेतों में बना रहता है, जिससे मिट्टी की नमी बनी रहती है।
- मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना: मिट्टी का पोषण तत्व बहने से रोककर उसकी उर्वरता बनाए रखी जाती है।
- फसल की उपज बढ़ाना: जल और मिट्टी की बेहतर प्रबंधन से फसल की उपज में वृद्धि होती है।
समोच्च कृषि विशेष रूप से उन क्षेत्रों में उपयोगी है जहाँ पर ढलानें अधिक होती हैं और मिट्टी का कटाव एक बड़ी समस्या है। यह तकनीक पारंपरिक कृषि विधियों की तुलना में अधिक स्थायी और पर्यावरण के अनुकूल मानी जाती है।
पवन अपरदन वाले क्षेत्रों में पट्टिका कृषि श्रेयस्कर है, जो फसलों के बीच घास की पट्टियाँ विकसित कर की जाती हैं।
गंगा नदी द्वारा पश्चिम बंगाल में, महानदी, कृष्णा, कावेरी और गोदावरी नदियों द्वारा पूर्वी तटीय मैदान में डेल्टा का निर्माण हुआ है।
इन क्षेत्रों में जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है। इस मिट्टी का गठन बालू, सिल्ट एवं मृतिका के विभिन्न अनुपात से होता है। इसका रंग धुंधला से लेकर लालिमा लिये भूरे रंग का होता है।
दो धान्य फसलों के बीच एक दलहन की फसल को उगाना, फसल चक्रण कहलाता है। इसके द्वारा मृदा के पोषणीय स्तर को बरकरार रखा जा सकता है, क्योंकि दलहनी पौधों की जड़ों में नाइट्रोजनी स्थिरीकारक जीवाणु पाये जाते हैं।