वस्तु विनिमय प्रणाली उस प्रणाली को कहा जाता है जिसमें एक वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु का आदान-प्रदान होता है। दूसरे शब्दों में, “किसी एक वस्तु का किसी दूसरी वस्तु के साथ बिना मुद्रा के प्रत्यक्ष रूप से लेन-देन वस्तु विनिमय प्रणाली कहलाता है। उदाहरण के लिए गेहूँ से चावल बदलना, सब्जी से तेल बदलना, दूध से दही बदलना आदि।
मौद्रिक प्रणाली का आविष्कार वस्तु विनिमय की कठिनाइयों को दूर करने के लिए हुआ। मौद्रिक प्रणाली में विनिमय का सारा कार्य मुद्रा की सहायता से होने लगा है। इस प्रणाली में पहले कोई व्यक्ति अपनी वस्तु या सेवा को बेचकर मुद्रा प्राप्त करता है और फिर उस मुद्रा से अपनी जरूरत की अन्य वस्तुएँ प्राप्त करता है। चूंकि इस प्रणाली में मुद्रा विनिमय के माध्यम का कार्य करती है। इसलिए इसे मौद्रिक विनिमय प्रणाली कहा जाता है।
साधारण बोलचाल की भाषा में मुद्रा का अर्थ धातु के बने सिक्कों से समझा जाता है। मुद्रा शब्द का प्रयोग मुहर या चिह्न के अर्थ में भी किया जाता है। यही कारण है कि जिस वस्तु पर सरकारी चिह्न या मुहर लगायी जाती थी, उसे मुद्रा कहा जाता था। अर्थशास्त्र में मुद्रा की अनेक परिभाषाएँ दी गई हैं। कुछ परिभाषाएं संकुचित हैं तो कुछ विस्तृत हैं तथा कुछ परिभाषाएँ अन्य बातों पर आधारित हैं। प्रो. होटले विट्स ने बताया है कि “मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करती है।” कोलबर्न का कहना है कि मुद्रा वह है जो मूल्य का मापक और भुगतान का साध न है। नैप के अनुसार “कोई भी वस्तु जो राज्य द्वारा मुद्रा घोषित की जाती है, मुद्रा कहलाती है।”
आर्थिक विकास के इस दौर में बैंकिंग संस्थाओं के द्वारा प्लास्टिक के एक टुकड़े को भी मुद्रा के रूप में उपयोग किया जाने लगा है। प्लास्टिक के मुद्रा का एक रूप एटीएम है। एटीएम का अर्थ है-स्वचालित टलर मशीन (Automatic Teller Machine)। यह मशीन 24 घंटे रुपये निकालने तथा जमा करने की सेवा प्रदान करता है।
क्रेडिट कार्ड भी प्लास्टिक मुद्रा का एक रूप है। क्रेडिट कार्ड के अंतर्गत ग्राहक की वित्तीय स्थिति को देखते हुए बैंक उसकी साख की एक राशि निर्धारित कर देती है जिसके अन्तर्गत वह अपने क्रेडिट कार्ड के माध्यम से निर्धारित, धनराशि के अन्दर वस्तुओं और सेवाओं को खरीद सकता है।
समाज के कुल आय को वस्तुओं एवं सेवाओं पर खर्च किया जाता है। वस्तुओं को दो भागों में बांटा जा सकता है।
(i) कुछ ऐसी वस्तुएँ होती हैं जिनका हम क्षणिक या तत्काल उपभोग करते हैं। इन्हें चालू वस्तुएँ (Current Goods) कहा जाता है। (ii) कुछ ऐसी वस्तुएँ होती हैं जो उत्पादन के कार्य में प्रयोग की जाती हैं। इन्हें टिकाऊ वस्तुएँ (Durable Goods) कहा जाता है। इस तरह समाज की कुल आय को इन्हीं दो तरह की वस्तुओं को खरीदने में खर्च किया जाता है। कुल आय का भाग जो चालू वस्तुओं पर खर्च किया जाता है उसे उपभोग (consumption) कहते हैं तथा कुल आय का वह भाग जो टिकाऊ वस्तुओं पर खर्च किया जाता है उसे बचत (saving) कहते हैं। अतः स्पष्ट है कि आय (Income) तथा उपभोग (consumption) का अंतर बचत कहलाता है।
साख का अर्थ है-विश्वास का भरोसा। जिस व्यक्ति पर जितना अधिक विश्वास या भरोसा किया जाता है उसकी साख उतनी ही अधिक होती है। अर्थशास्त्र में साख का मतलब ऋण लौटाने या भुगतान करने की क्षमता में विश्वास से होता है। यदि हम कहें कि अरूण की साख बाजार में अधिक है तो इसका मतलब है कि उसकी ऋण लौटाने की शक्ति में लोगों को अधिक विश्वास है। इसी विश्वास के आधार पर एक व्यक्ति या संस्था दूसरे व्यक्ति या संस्था को उधार देती है। प्रो. जीड (Gide) के अनुसार, “साख एक एक ऐसा विनिमय कार्य है जो एक निश्चित अवधि के बाद भुगतान करने के बाद पूरा हो जाता है।