“रोजगार एवं सेवाएँ” का अभिप्राय यहाँ इन बातों से है जब व्यक्ति अपने परिश्रम एवं शिक्षा के आधार पर जीविकोपार्जन के लिए धन एकत्रित करता है और एकत्रित धन को जब पूँजी के रूप में व्यवहार किया जाता और उत्पादन के क्षेत्र में निवेश किया जाता है तो सेवा क्षेत्र उत्पन्न होता है। अतः रोजगार एवं सेवा एक-दूसरे के पूरक हैं। रोजगार एवं सेवाएँ आर्थिक क्रियाओं के विकास और विस्तार से उपलब्ध होती हैं इसलिए कहा जाता है कि आर्थिक प्रगति के कारण देश के विकास के साथ सेवा क्षेत्र का विकास होता है जिसके फलस्वरूप लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होने लगते हैं।