यूनान तुर्की साम्राज्य के अधीन था। फलतः तुर्की शासन से स्वयं को अलग करने के लए आन्दोलन चलाये जाने लगे। यूनान सारे यूरोपवासियों के लिए प्रेरणा एवं सम्मान का पर्याय था, जिसकी स्वतंत्रता के लिए समस्त यूरोप के नागरिक अपनी सरकार की तटस्थता के बावजूद भी उद्यत थे। इंगलैंड का महान कवि लार्ड बायरन यूनानियों की स्वतंत्रता के लिए यूनान में ही शहीद हो गया। इससे यूनान की स्वतंत्रता के लिए सम्पूर्ण यूरोप में सहानुभूति की लहर दौड़ने लगी। इधर रूस भी अपनी साम्राज्यवादी महत्वकांक्षा तथा धार्मिक एकता के कारण यूनान की स्वतंत्रता का पक्षधर था।
यूनान में स्थिति तब विस्फोटक बन गयी जब तुर्की शासकों द्वारा यूनानी स्वतंत्रता संग्राम में संलग्न लोगों को बुरी तरह कुचलना शुरू किया गया। 1821 ई. में अलेक्जेंडर चिप-सिलांटी के नेतृत्व में यूनान में विद्रोह शुरू हो गया। परन्तु वह मेटरनिख के दबाव में खुलकर सामने नहीं आ पा रहा था। परन्तु जब जार निकोलस आया तो उसने खुलकर यूनानियों का समर्थन किया। अप्रैल 1826 में ग्रेट ब्रिटेन और रूस में एक समझौता हुआ कि वे तुर्की-यूनान विवाद में मध्यस्थता करेंगे।
फ्रांस का राजा चार्ल्स दशम भी यूनानी स्वतंत्रता में दिलचस्पी लेने लगा। 1827 में लंदन में एक सम्मेलन हुआ जिसमें इंगलैंड, फ्रांस तथा रूस ने मिलकर तुर्की के खिलाफ तथा यूनान के समर्थन में संयुक्त कार्यवाही करने का निर्णय लिया। इस प्रकार तीनों देशों की सेना नावारिनो की खाड़ी में तुर्की के खिलाफ एकत्र हुई। युद्ध में तुर्की की सेना पराजित हुई और अंततः 1829 में एड्रियानोपल की संधि हुई। जिसके तहत तुर्की की नाममात्र की प्रभुता में यूनान को स्वायत्तता देने की बात हुई। परन्तु यूनानी राष्ट्रवादियों ने संधि की बातों को मानने से इंकार कर दिया। उधर इंगलैंड तथा फ्रांस भी यूनान पर रूस के प्रभाव की अपेक्षा इसे स्वतंत्र देश बनाना बेहतर मानते थे। फलतः 1832 में यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया गया। बवेरिया के शासक ओटो’ को स्वतंत्र यूनान का राजा घोषित किया गया।
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