जब कोई व्यक्ति किसी प्रकार का शारीरिक अथवा मानसिक कार्य करता है और उस व्यक्ति को उसके कार्यों के बदले जो पारिश्रमिक मिलता है उसे उस व्यक्ति की आय कहते हैं।
एक देश की सीमा के अन्दर किसी भी दी गई समयावधि, प्रायः एक वर्ष में उत्पादित समस्त अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं का कुल बाजार या मौद्रिक मूल्य, उस देश का सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है।
राष्ट्रीय आय में देश की कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है उसे प्रति व्यक्ति आय कहते हैं।
प्रति व्यक्ति आय का आंकलन निम्न फार्मूले द्वारा किया जाता है।
भारत में सर्वप्रथम राष्ट्रीय आय 1868 ई. में दादा भाई नौरोजी द्वारा की गई थी।
भारत में राष्ट्रीय आय की गणना केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organisation) द्वारा होती है।
राष्ट्रीय आय की गणना में निम्नलिखित कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं (i) आंकड़ों को एकत्र करने में कठिनाई (Difficulty in collecting data) (ii) दोहरी गणना की सम्भावना (Possibilities of double counting) (iii) मूल्य के मापने में कठिनाई (Difficulty in measuring the value)
गरीबी का प्रति व्यक्ति आय पर प्रभाव पड़ता है। गरीबी के कारण बचत का स्तर निम्न होता है। कम बचत के कारण पूँजी निर्माण दर कम होती है, जिससे विनियोग भी कम होता है जिसकी परिणाम स्वरूप प्रति व्यक्ति आय पुनः निम्न स्तर कर कायम रहती है।