1.लोकतंत्र से क्या समझते हैं ?

लोकतंत्र या प्रजातंत्र आंग्ल भाषा के डिमोक्रेसी शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। “डिमोक्रेसी’ शब्द दो यूनानी शब्दों के योग से बना है, ‘डेमोस’ और ‘क्रेशिया’, जिसका अर्थ है ‘जनता’ और ‘शासन’। इस प्रकार व्युत्पति की दृष्टि से लोकतंत्र का अर्थ है-जनता का शासन।
अतः लोकतंत्र शासन का वह रूप है जिसमें शासन की सम्पूर्ण शक्ति जनता में निहित रहती है। दूसरे शब्दों में, लोकतंत्र उस शासन व्यवस्था को कहते हैं, जहाँ जनता शासन-कार्यों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेती है। शासन जनता की इच्छाओं तथा आकांक्षाओं के अनुरूप संचालित होता है। अब्राहम लिंकन के शब्दों में “लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन है।’ डायसी के अनुसार”, “लोकतंत्र शासन का वह रूप है जिसमें शासक वर्ग सारे राष्ट्र की जनता का एक बड़ा अंश है।” सीले के विचारानुसार, “लोकतंत्र वह शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का भाग हो।” स्पष्ट है कि लोकतंत्र में शासन को जनता द्वारा निश्चित किया जाता है। आधुनिक समय में लोकतंत्र केवल शासन का रूप नहीं है, अपितु जीवन-दर्शन है।

2.गठबंधन की राजनीति कैसे लोकतंत्र को प्रभावित करती है?

स्पष्ट बहुमत नहीं आने पर सरकार बनाने के लिए छोटी-छोटी क्षेत्रीय पार्टियों का आपस में गठबंधन करना, वैसे उम्मीदवारों को भी चुन लिया जाना, दो दागी प्रवृत्ति या आपराधिक पृष्ठभूमि के होते हैं, लोकतंत्र के लिए एक अलग ही चुनौती है। गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल अपनी आकांक्षाओं और लाभों की संभावनाओं के मद्देनजर ही गठबंधन करने के लिए प्रेरित होते हैं, जिससे प्रशासन पर सरकार की पकड़ ढीली हो जाती है।

गठबंधन में राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि सरकार के कार्यक्रमों, कार्यों एवं नीतियों में हस्तक्षेप करते हैं जिससे सरकार को कल्याणकारी कामों में मुश्किल आती है जिससे काम-काज सुचारु रूप से चलाना मुश्किल हो जाता है। लोकतांत्रिक तरीके से काम-काज नहीं हो पाता अतः मठबंधन की राजनीति लोकतंत्र को प्रभावित करती है।

3.नेपाल में किस तरह की शासन व्यवस्था है ? लोकतंत्र की स्थापना में वहाँ क्या-क्या बाधाएँ हैं?

नेपाल में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था है। प्रयोग सफलता एवं असफलता के बीच फंस गया है। लोकतंत्र की स्थापना में वहाँ सख्त राजनीतिक दल का अभाव, योग्य एवं कर्मठ राष्ट्रीय नेता का अभाव एवं राष्ट्रशाही के प्रति जनता की स्थायी भक्ति इत्यादि बाधाएं लोकतंत्र की बहाली के मुद्दे हैं।

4.क्या शिक्षा का अभाव लोकतंत्र के लिए चुनौती है ?

अशिक्षा दुर्गुणों की जननी है। लोकतंत्र की सफलता के लिए शिक्षित नागरिक का होना अत्यन्त आवश्यक है। शिक्षित नागरिक ही अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में सही जानकारी रख सकते हैं और उनका सही उपयोग कर सकते हैं। लोकतंत्र का सफल परिचालन विभिन्न कार्यक्षेत्रों में नागरिक की सक्रिय सहभागिता पर ही निर्भर है। यह सहभागिता तभी प्रभावी हो सकती है जब नागरिक शिक्षित हों, उनमें उचित और अनुचित का विभेद कर सकने का विवेक हो, उन्हें अपने अधिकारों एवं दायित्वों का ज्ञान हो। यह विवेक, ज्ञान, शिक्षा के बिना सम्भव नहीं है। अशिक्षित व्यक्ति और पशु में कोई अधिक अन्तर नहीं होता।

वह अच्छे और बुरे की सही पहचान नहीं कर पाता। वह रूढ़ियों, अन्धविश्वासों और पाखण्ड की दुनिया से ऊपर उठकर आधुनिक वैज्ञानिक युग को समझ भी नहीं सकता। विज्ञान ने मानव-प्रगति के लिए जो विविध साधन खोज निकाले हैं, कृषि के वैज्ञानिक विधियों का समावेश किया है, मानव स्वास्थ्य पर नवीन प्रयोग किए हैं इन सबका लाभ भला अशिक्षित व्यक्ति क्या उठा सकता है ? अतएव अशिक्षित नागरिकों का लोकतंत्र लोकतंत्र का माखौल ही होगा। वास्तव में लोकतंत्र की ईमारत शिक्षा रूपी नींव पर ही खड़ा हो सकती है। अतः लोकतंत्र की सफलता के लिए शिक्षित नागरिकों का होना अत्यन्त आवश्यक है। अतः हम कह सकते हैं कि शिक्षा का अभाव लोकतंत्र के लिए चुनौती है।

5.आतंकवाद लोकतंत्र की चुनौती है। कैसे?

किसी स्थापित व्यवस्था का विनाश कर अव्यवस्था तथा आतंक फैलाना आतंकवाद है। आतंकवाद के जन्म के मूल कारणों में धार्मिक कट्टरता या आर्थिक विषमता होती है। हिंसा किसी भी राजनीतिक व्यवस्था के लिए अच्छी नहीं होती है। लोकतंत्र में हिंसा या आतंक होने से राजनीतिक अस्थिरता एवं असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे लोकतांत्रिक काम-काज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अतः आतंकवाद लोकतंत्र के लिए चुनौती होता जा रहा है।

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