एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी द्वारा किसी क्षेत्र में अपनी उत्पादन इकाई लगाने के निर्माण पर निम्नलिखित बातों का प्रभाव पड़ता है सस्ते श्रम, सस्ता कच्चा माल, उपभोक्ता बाजार एवं अन्य संसाधन।
कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी लाभ कमाने की दृष्टि से ही किसी अन्य देश में अपनी उत्पादन इकाई लगाती है, अतः वह सर्वप्रथम यह देखती है कि अमुक देश में सस्ते दर पर श्रमिक उपलब्ध हैं या नहीं। जहाँ सस्ते श्रमिक उपलब्ध होंगे वहाँ की वह अपनी इकाई लगायेगी।
दूसरी बात जो बहुराष्ट्रीय कंपनी के निर्णय को प्रभावित करनी है, वह है सस्ता कच्चा माल। जिस देश के बहुराष्ट्रीय कंपनी की इकाई में प्रयुक्त होने वाले कच्चे माल की प्रचुरता होगी और सस्ते में उपलब्ध होंगे वहाँ की वह अपनी इकाई लगायेगी।
तीसरी चीज है बाजार। बहुराष्ट्रीय कंपनी यह देखती है कि जिस इकाई को वह लगाने जा रही है उसके उत्पाद के उपभोक्ता उस देश में काफी संख्या में हैं। अतः वहाँ ही वह अपनी इकाई लगाती है। यदि उपभोक्ता ही न मिले तो उत्पादन किसके लिए होगा।
इनके अतिरिक्त अन्य संसाधनों की उपलब्धता पर भी बहुराष्ट्रीय कंपनी ध्यान देती है जैसे यातायात, शक्ति उस देश के लोगों का जीवन स्तर पर्यावरण आदि।
वैश्वीकरण के कारण बिहार का आर्थिक परिवेश भी बदलता जा रहा है। आर्थिक विकास के लिए अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी अधिक पूंजीनिवेश की आवश्यकता है। वैश्वीकरण का बिहार के जनजीवन पर न केवल सकारात्मक प्रभाव पड़े हैं बल्कि इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी है जिसे हम निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं।
सकारात्मक प्रभाव –
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि-वैश्वीकरण के बाद बिहार के कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। बिहार में खाद्यान्नों का उत्पादन 1977-78 में 102 लाख टन था जो 1996-97 में बढ़कर 141 लाख टन हो गया। इसी तरह 1980-83 की अवधि में बिहार में प्रति हेक्टेयर फसलों का औसत मूल्य 3,680 रु. या जो 1992-95 की अवधि में बढ़कर 5,678 रु. हो गया।
2.निर्यातों में वृद्धि वैश्वीकरण के फलस्वरूप बिहार से किये गये निर्यातों में वृद्धि हुई है। इन निर्यातों में कुछ खाद्य एवं व्यावसायिक फसलों का निर्यात, कुटीर तथा लघु उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं का निर्यात तथा फलों का निर्यात शामिल है। फलों के निर्यात के अन्तर्गत बिहार लीची, आम तथा मखाना के लिए प्रसिद्ध है।
3. विदेशी प्रत्यक्ष विनियोग की प्राप्ति-वैश्वीकरण के फलस्वरूप बिहार में विदेशी प्रत्यक्ष विनियोग भी हुआ है और विदेशी प्रत्यक्ष विनियोग के लिए काफी दिलचस्पी दिखायी गयी है। इससे भविष्य में विदेशी प्रत्यक्ष विनियोग में काफी वृद्धि की आशा की जा सकती है।
4.शुद्ध राज्य घरेलू उत्पादन तथा प्रति व्यक्ति शुद्ध राज्य घरेलू उत्पादन में वृद्धि-वैश्वीकरण के फलस्वरूप चालू मूल्यों पर राज्य के शुद्ध घरेलू उत्पादन तथा प्रति व्यक्ति शुद्ध घरेलू उत्पादन में वृद्धि हुई है। दूसरे शब्दों में इस अवधि में राज्य की कुल आय तथा प्रति व्यक्तिआय में वृद्धि हुई है।
5.निर्धनता में कमी-वश्वीकरण के पश्चात् राज्य में निर्धनता में उल्लेखनीय कमी हुई है। बिहार में निर्धनता की रेखा से नीचे आनेवाली जनसंख्या 1993-94 में 54.96 थी जो 1999-2000 में घटकर, 42.60% हो गयी।
6. विश्वस्तरीय उपभोक्ता वस्तुओं की उपलब्धता वैश्वीकरण के कारण बिहार के बाजारों में विश्वस्तरीय उपभोक्ता वस्तुएं उपलब्ध हो गयी हैं। विभिन्न बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मोबाईल फोन, जूते, रेडिमेड वस्त्र आदि अब बिहार के बाजारों में भी उपलब्ध हैं।
7.रोजगार के अवसरों में वृद्धि–वैश्वीकरण के फलस्वरूप रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है। उच्च शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्राप्त लोगों के लिए विदेशों तथा देश के अन्य भागों में रोजगार के नये अवसर उपलब्ध हुए हैं। वैश्वीकरण का ही प्रभाव है कि बिहार के बहुत सारे सॉफ्टवेयर इंजीनियर आज विदेशों में नौकरी कर रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका एवं इंग्लैंड में बड़ी संख्या में सॉफ्टवेयर इंजीनियर नौकरी कर रहे हैं।
8. बहुराष्ट्रीय बैंक एवं बीमा कम्पनियों का आगमन-वैश्वीकरण का ही प्रभाव है कि बिहार में बहुराष्ट्रीय बैंकों जैसे HSBC बैंक आदि का आगमन हुआ। बिहार में बहुराष्ट्रीय बीमा कम्पनियाँ भारतीय कम्पनियों के साथ मिलकर संयुक्त कम्पनी के रूप में उत्तर रही हैं। जैसे बजाज एलियांज, बिरला सनलाइट, टाटा ए. आई. जी., अवीवा आदि।
नकारात्मक प्रभाव:
(i) कृषि एवं कृषि आधारित उद्योगों की उपेक्षा-बाहर एक कृषि प्रधान राज्य है। यहाँ बड़े पैमाने पर उद्योग-धंधे काफी कम हैं। राज्य में कृषि पर किया गया निवेश संतोषजनक नहीं है। यहाँ कृषि आधारित उद्योगों के विकास की संभावना काफी है। लेकिन इन उद्योगों में वैश्वीकरण के पश्चात् जितना निवेश होना चाहिए था उतना नहीं हुआ है।
(ii) कटीर एवं लघु उद्योग पर विपरीत प्रभाव-बिहार में बड़े पैमाने के उद्योग-धन्धे कम हैं। यहाँ कुटीर एवं लघु उद्योग ज्यादा हैं। वैश्वीकरण के कारण छोटे पैमाने के उद्योगों जैसे कुटीर एवं हस्तशिल्प उद्योग के लिए खतरा हो गया है, क्योंकि उनके द्वारा निर्मित वस्तुओं को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा निर्मित वस्तुओं का सामना करना पड़ता है जो क्वालिटी में इनसे अच्छी एवं सस्ती होती हैं। जैसे–चीन द्वारा निर्मित खिलौने से हमारा बाजार पट गया है। चीनी खिलौनों ने हमारे कुटीर एवं हस्तशिल्प उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।
(iii) रोजगार पर विपरीत प्रभाव-चूंकि बिहार में छोटे पैमाने के उद्योग-धंधे ज्यादा हैं । जैसे- कुटीर एवं हस्तशिल्प उद्योग आदि। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा निर्मित वस्तुओं के आने से इन उद्योगों की बहुत सारी इकाइयाँ बंद हो गयीं। जिसके चलते बहुत सारे श्रमिक बेरोजगार हो गये।
(iv) आधारभूत संरचना के कम विकास के कारण कम निवेश-बिहार में पूँजी निवेश उतना नहीं हुआ है जितना वैश्वीकरण के फलस्वरूप देश के अन्य राज्यों में हुआ है। इसका कारण है कि बिहार में आधारभूत संरचना की कमी है। यहाँ सड़क, बिजली विश्वस्तरीय होटल एवं हवाई अड्डा की कमी है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि वैश्वीकरण के सकारात्मक अथवा लाभकारी प्रभाव इनके नकारात्मक प्रभाव की तुलना में अधिक वजन रखते हैं। वैश्वीकरण का जो भी प्रभाव पड़ा है उससे बिहार को लाभ ही हुआ है।
भारत में वैश्वीकरण के पक्ष में निम्नलिखित तर्क इस प्रकार हैं
वैश्वीकरण का आम आदमी पर अच्छा और बुरा दोनों प्रभाव पड़े हैं। सर्वप्रथम अच्छा प्रभाव निम्न है
1. उपयोग के आधनिक संसाधनों की उपलब्धता- वैश्वीकरण के कारण दुनिया के सभी देशों के उच्चतम उत्पादन लोगों को उपयोग के लिए उपलब्ध हो गया है। उदाहरण के लिए पहले जहाँ आम आदमी रेडियो से मनोरंजन प्राप्त करता था। अब उनके लिए विभिन्न कंपनियों के रंगीन
टेलीविजन जैसी चीजों की उपलब्धता हो गई है।
2. रोजगार की बढ़ी हई संभावना वैश्वीकरण के कारण नए-नए क्षेत्र खुल गए हैं। जिससे कुशल श्रमिकों के लिए अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध हो गए हैं।
3. आधुनिक तकनीक की उपलब्धता वैश्वीकरण के कारण विश्व के विकसित देशों के आधुनिक तकनीक अन्य विकासशील देशों में आसानी से उपलब्ध होने लगे हैं। जिससे आम लोगों के लिए आधुनिकतम तकनीक के उपयोग का दरवाजा खुल गया है। सच कहा जाए तो, भारत जैसे विकासशील देश में आम लोगों पर वैश्वीकरण का बुरा प्रभाव ही पड़ा। वैश्वीकरण से आम लोगों पर निम्नलिखित बुरा प्रभाव पड़ा है
1. बेरोजगारी बढ़ने की आशंका- वैश्वीकरण के कारण आधुनिक संयंत्रों से मशीनी उत्पादन को बढ़ावा मिला है, जिसके कारण समाज के.अधिकतम श्रम शक्ति जो अर्द्धकुशल या अकुशल हैं, ऐसे लोगों में बेरोजगारी के बढ़ने की संभावना हो गई है।
2. उद्योग एवं व्यवसाय के क्षेत्र में बढ़ती हई प्रतियोगिता- विदेशी पूजी एवं विदेशी कंपनियों के बिना किसी प्रतिबंध के आयात होने से आम लोगों में बेरोजगारी फैलने की संभावना बढ़ गई है।
3. श्रम संगठनों पर बरा प्रभाव- श्रमिक संगठनों के द्वारा आम मजदूरों की न्यूनतम माँगों को संगठित रूप से माँग की जाती है जिससे श्रमिकों को सामान्य वेतन एवं सुविधाएं उपलब्ध होने लगती हैं। अब वैश्वीकरण के कारण श्रम कानूनों में लचीलापन आया है जिससे श्रमिक संगठन भी कमजोर हो गया है। इससे आम श्रमिकों को उचित पारिश्रमिक मिलने में कठिनाई आने लगी है।
4. मध्यम एवं छोरे उत्पादकों की कठिनाई- वैश्वीकरण के कारण मध्यम एवं छोटे ‘उत्पादकों के लिए अपने उत्पादन को सक्षम रखने में अनेक कठिनाइयाँ होने लगी हैं। प्रकृति का यह एक सामान्य नियम है कि पानी में बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को खा जाती हैं। उसी तरह वैश्वीकरण के कारण जो बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ देश में आने लगी हैं, उससे मध्यम और छोटे उद्योग और व्यवसाय के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है।
5. कषि एवं ग्रामीण क्षेत्र का संकट वैश्वीकरण के कारण अब देश और विदेश के बड़े-बड़े पूँजीपति फार्म हाऊस बनाने लगे हैं जिसमें कृषि के क्षेत्र में भी अधिक पूंजी निवेश के द्वारा कम श्रम-शक्ति से ही अधिक उत्पादन प्राप्त करने लगे हैं। इस स्थिति में गाँव के मध्यम एवं छोटे श्रेणी के किसानों के लिए अनेक प्रकार के संकट उत्पन्न हो गए हैं। इस प्रकार वैश्वीकरण के आम लोगों पर कुछ अनुकूल एवं अधिक विपरीत प्रभावों को देखने के बाद हम इस निष्कर्ष पर आते हैं कि वैश्वीकरण से आम लोगों को लाभ से अधिक हानि होने की संभावना है। यह सत्य है कि वैश्वीकरण से पूँजी उत्पाद और आय में वृद्धि होगी।
किन्तु वृद्धि का यह लाभ समा के मुट्ठी भर धनी एवं उच्च शिक्षा प्राप्त लोग ही प्राप्त कर सकेंगे। वैश्वीकरण की स्थिति में ऊँ आय के अमीर व्यक्तियों की आय बढ़ती चली जाएगी और 85 प्रतिशत की सर्वाधिक संख्या में आम लोगों का जीवन कठिन हो जाने की संभावना है।
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