1.क्या होगा यदि हम एक पोषी स्तर के सभी जीवों को समाप्त कर दें (मार डालें)?

यदि एक पोषी स्तर के सभी जीवों को मार दिया जाए, तो इससे पहले वाले स्तर के जीवों की संख्या बहुत अधिक हो जाएगी। जिससे उनका भोजन तीव्रता से खत्म हो जाएगा, जबकि उससे बाद आने वाले पोषी स्तर को भोजन नहीं मिल पाएगा। अत: वे भोजन के अभाव में मर जाएँगे अथवा किसी अन्य स्थान पर चले जाएँगे। इसे एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। यदि सभी शाकाहारी जंतु; जैसे-हिरण, खरगोश आदि मर जाएँगे तो अगले पोषी स्तर वाले जीव शेर, बाघ आदि को भोजन नहीं मिलेगा और वे या तो मर जाएँगे या गाँवों, शहरों की ओर पलायन करेंगे। इसी प्रकार हिरण, गाय, खरगोश आदि नहीं होने पर घास पौधे बहुत अधिक होंगे क्योंकि इसका भक्षण नहीं होगा।
इस तरह हम कह सकते हैं कि आहार श्रृंखला के टूटने से पारितंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो जाएगा।

2.क्या किसी पोषी स्तर के सभी सदस्यों को हटाने का प्रभाव भिन्न-भिन्न पोषी स्तरों के लिए अलग-अलग होगा? क्या किसी पोषी स्तर के जीवों को पारितंत्र को प्रभावित किए बिना हटाना संभव है?

(a) हाँ, किसी पोषी स्तर के सभी सदस्यों को हटाने का प्रभाव भिन्न-भिन्न पोषी स्तर के लिए अलग-अलग होगा। इसे एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है-

स्थिति I-यदि सभी हिरणों को हटा दें तो शेर भूख से मर जाएँगे तथा पादप (घास, पेड़, पौधों) की संख्या बढ़ेगी।
स्थिति II-यदि सभी शेरों को हटा दें तो हिरणों की संख्या बढ़ेगी, जिससे जंगल खत्म हो सकते हैं तथा रेगिस्तान में परिवर्तित हो सकते हैं।

(b) नहीं, किसी पारितंत्र को क्षति पहुँचाए बिना (अर्थात् प्रभावित किए बिना) किसी पोषी स्तर के सभी जीवों को हटाना संभव नहीं है।

3.जैविक आवर्धन (biological magnificatation) क्या है? क्या पारितंत्र के विभिन्न स्तरों पर जैविक आवर्धन का प्रभाव भी भिन्न-भिन्न होगा?

फसलों की सुरक्षा के लिए पीड़कनाशक एवं रसायन जैसे अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों का उपयोग किया जाता है। यह प्रत्येक पोषी स्तर पर जीवों एवं पादपों के शरीर में संचित होते हैं, जिसे जैविक आवर्धन कहते हैं। भिन्न स्तरों पर जैविक आवर्धन भिन्न-भिन्न होता है। स्तरों के ऊपर की तरफ़ बढ़ने पर आवर्धन बढ़ता जाता है। चूंकि आहार श्रृंखला में मनुष्य शीर्षस्थ है। अतः हमारे शरीर में इसकी मात्रा सर्वाधिक होती है।

4.हमारे द्वारा उत्पादित अजैव निम्नीकरणीय कचरे से कौन-सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?


अजैव निम्नीकरणीय कचरों से उत्पन्न होने वाली समस्याएँ निम्न हैं|

  1. चूँकि इनका विघटन नहीं हो पाता है इसलिए लंबे समय तक बने रहने के कारण काफ़ी मात्रा में एकत्र हो जाते हैं। तथा पारितंत्र में असंतुलन पैदा करते हैं तथा पर्यावरण के अन्य सदस्यों को हानि पहुँचाते हैं।
  2. पॉलीथीन की थैलियाँ कुछ पालतू जानवर खा लेते हैं, जिससे उनकी मृत्यु तक हो जाती है।
  3. नालियाँ जाम हो जाती हैं, जिससे मल-मूत्र आदि गंदे पदार्थों का वहन नहीं हो पाता है तथा गंदगी फैलती है और अनेक प्रकार की बीमारियाँ होती हैं।
  4. प्लास्टिक की बोतलें, डिब्बों आदि में जल जमा होने के कारण डेंगू, मलेरिया जैसे खतरनाक रोगों की संभावनाएँ बढ़ती हैं।
  5. दवाइयों के स्ट्रिप्स बोतलों, कीटनाशी एवं रसायन आदि से जल एवं मृदा प्रदूषण होता है।
  6. मिट्टी के अंदर दबे रहने के कारण फसलों की वृद्धि में रुकावट होती है तथा उर्वरा शक्ति कम हो जाती है।
  7. इससे जैविक आवर्धन भी होता है।
  8. इसे जलाने पर हानिकारक गैसें निकलती हैं, जो वायु प्रदूषण करता है।

5.यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय हो तो क्या इनका हमारे पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?

हाँ, यहाँ तक कि यदि उत्पादित सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय हो तब भी इनका हमारे पर्यावरण पर प्रभाव पड़ेगा परंतु लंबे समय के लिए नहीं। अधिक मात्रा में कचरा होने के कारण सूक्ष्म जीव (बैक्टिरिया एवं कवक) सही समय पर इनका विघटन नहीं कर पाएँगे, जिससे ये कचरा जमा हो जाएगा और मक्खियों, मच्छरों आदि को पनपने का अवसर मिलेगा, दुर्गंध फैलेगी, वायु प्रदूषण होगा, बीमारियाँ फैलेंगी, तथा आसपास के लोगों का रहना मुश्किल हो जाएगा। यदि इसका निपटान सही तरीके से होगा; जैसे-जैविक खाद बनाकर, तो कुछ ही समय में ये दुष्प्रभाव ख़त्म हो जाएँगे तथा पर्यावरण को कोई क्षति नहीं होगा।

6.ओजोन परत की क्षति हमारे लिए चिंता का विषय क्यों है? इस क्षति को सीमित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?

स्ट्राटोस्फेयर में ओजोन परत होती है, जो सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरण (UV) से पृथ्वी पर रहने वाले जीवों
को सुरक्षा प्रदान करती है। UV के कारण त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद (cataract), प्रति रक्षा-तंत्र की क्षति तथा पौधों को क्षति पहुँचाती है, जिसके कारण फसलों की उपज कम जो जाती है। क्लोरोफ्लुओरो कार्बन (CFCs) का प्रयोग अग्निशमन यंत्रों एवं रेफ्रीजरेटर (शीतलन) में किया जाता है, जो ओजोन परत को क्षति पहुँचाते हैं। 1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम [UNEP : United Nations Environment Programme] में सर्वानुमति बनी कि CFC के उत्पादन को 1986 के स्तर पर ही सीमित रखा जाए।
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